बांके बिहारी मंदिर से ग्राउंड रिपोर्ट: विकास बनाम विरासत की लड़ाई, क्या गोस्वामी परिवारों के पास रुपया पैसा मंदिर कोष से आया?

by Carbonmedia
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उत्तर प्रदेश के वृंदावन में स्थित प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर को लेकर इन दिनों बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. राज्य सरकार मंदिर के आस-पास 500 करोड़ रुपये की लागत से एक भव्य कॉरिडोर बनाने की योजना पर काम कर रही है. इस योजना के तहत मंदिर के आसपास की संकरी गलियों को हटाकर चौड़ी सड़कें बनाई जाएंगी, पार्किंग एरिया बनाया जाएगा और श्रद्धालुओं के लिए बेहतर सुविधाएं दी जाएंगी.
क्या है कॉरिडोर की योजना?

कुल 5 एकड़ ज़मीन पर कॉरिडोर बनाया जाएगा
37,000 स्क्वायर मीटर में पार्किंग
800 स्क्वायर मीटर में दुकानें
चौड़ी सड़कें, नए रास्ते और साफ-सुथरी व्यवस्था

सरकार का कहना है कि इससे श्रद्धालुओं को मंदिर पहुंचने में आसानी होगी और भीड़भाड़ से राहत मिलेगी.
क्या है विवाद?
इस जमीन पर सौ सालों से ज्यादा समय से स्थानीय लोग रह रहे हैं. यहाँ करीब 300 मकान और 100 दुकानें हैं जो इस कॉरिडोर के दायरे में आ रही हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके घर और रोज़गार पर संकट आ गया है.
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दुकानदार क्या कहते हैं?
कुछ दुकानदारों ने कहा कि अगर सही मुआवज़ा मिला तो वे हटने को तैयार हैं, लेकिन कई लोग इसे अपनी पहचान और इतिहास से जुड़ा मानते हैं. दुकानदारों में से एक ने कहा कि ‘हम यहाँ 40 साल से दुकान चला रहे हैं. यही हमारी रोज़ी-रोटी है’सरकार अगर हमें कहीं दूर भेज देगी, तो व्यापार कैसे होगा? बिहारी जी जैसा चाहेंगे, वैसा ही होगा.’
गोस्वामी परिवार का विरोध
मंदिर की सेवा करने वाला गोस्वामी परिवार इस योजना के खिलाफ है. उनका कहना है कि वे पीढ़ियों से ठाकुर जी की सेवा कर रहे हैं और उन्हें वहाँ से हटाना अनुचित होगा.सारिका गोस्वामी कहती हैं, ‘हमारा सब कुछ बिहारी जी के लिए है. हम यहीं रहना चाहते हैं और यहीं सेवा करना चाहते हैं.’अनुराधा गोस्वामी बताती हैं, ‘मैं रोज़ तीन बार ठाकुर जी की आरती करती हूँ. अगर दूर भेज दिया गया तो सेवा कैसे होगी?’निखिल गोस्वामी कहते हैं, ‘लोग कहते हैं कि हमारे पास बहुत पैसा है, लेकिन हमारे घर साधारण हैं. मंदिर का पैसा मंदिर में ही लगता है.’
श्रद्धालुओं की राय
श्रद्धालुओं की राय भी बंटी हुई है. कुछ को लगता है कि कॉरिडोर जरूरी है, ताकि भीड़ और गंदगी से राहत मिले, वहीं कुछ का कहना है कि मंदिर की पुरानी पहचान को बरकरार रखना चाहिए. यहाँ बहुत गंदगी है, सीवर का पानी बह रहा है. ‘दर्शन तो अच्छे हुए लेकिन सुविधाएं कम हैं. बांके बिहारी जी का अनुभव शांतिपूर्ण होना चाहिए, मॉल जैसा नहीं.’
कोर्ट में मामला
इस पूरे मामले की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट में हो रही है. कोर्ट ने एक सेवानिवृत्त हाई कोर्ट जज की अध्यक्षता में कमेटी बनाने का सुझाव दिया है. साथ ही मंदिर मैनेजमेंट कमेटी ने राज्य सरकार के फैसले का विरोध करते हुए याचिका दाखिल की है.
बांके बिहारी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, वृंदावन की संस्कृति और आस्था का प्रतीक है. अब सवाल यह है कि क्या विकास के नाम पर वर्षों पुरानी विरासत और परंपरा को बदला जा सकता है? सरकार और जनता के बीच संतुलन बनाना अब सबसे बड़ी चुनौती है.

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