बाढ़ में बह जाएगा भारत का ये हिस्सा, तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर! 20 सालों में 4 डिग्री बढ़ा हिमालय का पारा, वजह चौंका देगी

by Carbonmedia
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Glaciers Melt: हिमालय का तापमान पिछले दो दशकों में तेजी से बढ़ा है और ग्लेशियर तेजी से पिछल रहे हैं. इसका खुलासा क्लाइमेट ट्रेंड्स की नई स्टडी में हुआ है. अध्ययन में पाया गया कि ब्लैक कार्बन उत्सर्जन ने दो दशकों में हिमालय की बर्फ की सतह के तापमान को 4 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ा दिया और इसकी वजह से ग्लेशियर के पिघलने की स्पीड बढ़ गई है.


बायोमास और जीवाश्म ईंधन के जलने से होने वाले उत्सर्जन की वजह से पूर्वी हिमालय सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है. विशेषज्ञों ने ब्लैक कार्बन को तत्काल कम करने का आह्वान किया है. इस स्टडी को दिल्ली स्थित रिसर्च कंसल्टेंसी क्लाइमेट ट्रेंड्स ने किया है और इसका टाइटल हिमालयी ग्लेशियरों पर ब्लैक कार्बन का प्रभाव: 23-वर्षीय रुझान विश्लेषण रखा गया. निष्कर्ष 30 मई, 2025 को नई दिल्ली में जारी किए गए.


जानें क्यों महत्वपूर्ण है ये स्टडी?


स्टडी में बताया गया है कि किस तरह से ब्लैक कार्बन उत्सर्जन हिमालय में ग्लेशियरों के पिछलने को तेज कर रहा है. ये एक ऐसा क्षेत्र है जो साउथ एशिया के लगभग 2 अरब लोगों को मीठे पानी की आपूर्ति करता है. आईएसबी के एसोसिएट प्रोफेसर और आईपीसीसी के लेखक अंजल प्रकाश ने इस निष्कर्ष पर बताया कि सतह के तापमान में वृद्धि से दो अरब लोगों के लिए पानी की आपूर्ति को खतरा है.


उन्होंने कहा, “ब्लैक कार्बन के कारण बर्फ की सतह का रंग काला होने से एल्बेडो कम हो जाता है, जिससे अधिक गर्मी हो जाती है और ग्लेशियर तेजी से गायब हो जाते हैं. बायोमास जलने और जीवाश्म ईंधन से ब्लैक कार्बन को टारगेट करके एक त्वरित जलवायु शमन रणनीति कुछ ही सालों में इस क्षेत्र को ठंडा करने में मदद कर सकती है.”


कैसे कम होगा ब्लैक कार्बन?


उन्होंने रसोई चूल्हे, कृषि और परिवहन से होने वाले उत्सर्जन पर तत्काल कार्रवाई करने का आह्वान किया और कहा कि ब्लैक कार्बन को कम करने से जलवायु को तुरंत फायदा होगा, बेशकीमती जल संसाधनों का संरक्षण होगा और कमजोर समुदायों की सुरक्षा होगी. बर्फ की सतह के तापमान में इजाफा होने से क्षेत्र में जल सुरक्षा, कृषि और जलवायु स्थिरता को खतरा है. चूंकि ब्लैक कार्बन एक अल्पकालिक प्रदूषक है, इसलिए इसे कम करना वार्मिंग को धीमा करने, ग्लेशियरों को संरक्षित करने और वायु गुणवत्ता में सुधार करने का एक त्वरित, प्रभावी तरीका है.


हाल ही में आई एक रिपोर्ट से पता चला है कि 2000 से 2023 के बीच हिमालय के ग्लेशियर 5 से 21 प्रतिशत तक सिकुड़ गए हैं, जो मुख्य रूप से मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के कारण है.


ब्लैक कार्बन क्यों है गंभीर खतरा?


ब्लैक कार्बन बर्फ पर हीट लैंप की तरह काम करता है. यह सतह को काला कर देता है, पिघलने की प्रक्रिया को तेज कर देता है और एक खतरनाक फीडबैक लूप को सक्रिय कर देता है. अच्छी बात यह है कि ब्लैक कार्बन वातावरण में कुछ दिनों या हफ्तों तक ही रहता है. उत्सर्जन को कम करने से इस क्षेत्र को कुछ सालों में ही ठंडा किया जा सकता है, इसके लिए दशकों का इंतजार करने की जरूरत नहीं.


स्टडी में भारत, नेपाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में फैले इंडो-गंगा मैदान (आईजीपी) को हिमालय के ग्लेशियरों को प्रभावित करने वाले ब्लैक कार्बन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत के रूप में पहचाना गया है. यह क्षेत्र बायोमास जलाने, जीवाश्म ईंधन के दहन और खुले में जलाने जैसी गतिविधियों की वजह से योगदान देता है. भारत और नेपाल मिलकर मध्य हिमालय में लगभग 69% ब्लैक कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं. इसमें चीन भी पीछे नहीं है.


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