बिहार में अपराध की बहार पर दो लोग मुखर हैं. एक हैं तेजस्वी जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के धुर विरोधी हैं और कह रहे हैं कि अगर उनकी सत्ता होती तो मीडिया उनकी चमड़ी उधेड़ देता. लेकिन तेजस्वी के इस सख्त लहजे से थोड़े ही नरम चिराग पासवान भी हैं जो कहने के लिए तो बिहार चुनाव के लिए बने एनडीए के साझीदार हैं लेकिन जब बात नीतीश कुमार की आती है तो सवाल दागने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं.
ऐसे में एक तरफ विरोधी तेजस्वी और दूसरी तरफ सहयोगी चिराग के चौतरफा हमले में घिरे नीतीश कुमार ने इस अपराध की बहार को छिपाने के लिए ऐसी-ऐसी योजनाओं की बौछार कर दी है कि नीतीश के धुर विरोधी भी नीतीश की सियासत के मुरीद होते नजर आ रहे हैं.
जंगलराज का है नमूनापिछले करीब 20 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार जब बीजेपी के साथ रहते हैं तो वो लालू-राबड़ी के जंगलराज की बात कर ही वोट मांगते हैं और उन्हें वोट मिलते भी हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों से बिहार में जिस तरह के अपराध हो रहे हैं, वो भी जंगलराज का ही तो नमूना है. 24 घंटे से भी कम वक्त में 10-10 हत्याओं को जंगलराज नहीं तो और क्या कहा जाए.
21वीं सदी में किसी परिवार को डायन बताकर उसके घर के पांच लोगों को जिंदा जला दिया जाए तो उसे क्या कहा जाए. जिस राज्य में बीच सड़क पर तीन लोग तलवार से काट दिए जाएं, जिस राज्य में शराब पर बैन हो वहां जहरीली शराब पीकर सैकड़ों लोग मर जाएं तो उसे क्या कहा जाए. क्या जंगलराज कुछ और होता है.
दबती नजर आ रही है पीड़ितों के चीख की आवाजबिहार में इससे भी बदतर स्थिति रही होगी और कभी थी भी, लेकिन 20-25 साल पुरानी अपराध गाथा के नाम पर नए अपराधों की माफी तो नहीं मिल सकती, और ये बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी बखूबी पता है. क्योंकि सुशासन के नाम पर सत्ता में तो वहीं हैं. ऐसे में जब बिहार में बेलगाम अपराध ने राज्य को जंगलराज की तरफ धकेल दिया है, नीतीशे कुमार के रहते बिहार में सुशासन नहीं अपराध की बहार है तो नीतीश ने योजनाओं की ऐसी बौछार कर दी है कि उसके शोर में इन पीड़ितों के चीख की आवाज थोड़ी-थोड़ी दबती नजर आ रही है.
दरअसल जैसे-जैसे बिहार में अपराध का शोर बढ़ता गया, नीतीश कुमार ने उस शोर की आवाज कम करने के लिए ऐसी-ऐसी योजनाओं का ऐलान कर दिया कि लोग अपराध पर बात करते-करते नीतीश के मास्टर स्ट्रोक की भी बात करने को मजबूर हो गए. वरना अपराध की फ़ेहरिस्त तो इतनी लंबी है कि वो हरि अनंत हरि कथा अनंता जैसी है, लेकिन महिलाओं को सरकारी नौकरी में 33 फीसदी आरक्षण और युवा आयोग के गठन के ऐलान में अपराध को ये शोर थोड़ा दबता नजर आ रहा है. इससे पहले भी जब बढ़ते अपराध को लेकर नीतीश कुमार पर सवाल हुए तो उन्होंने ऐसे-ऐसे आयोग का गठन कर दिया कि हर एक बिहारी अपनी सुरक्षा को छोड़कर अपनी-अपनी जाति के लिए बने आयोग और उससे होने वाले नफा-नुकसान का गणित बैठाने में जुट गया.
लेकिन जो जिंदा हैं, उन्हें आगे भी जिंदा रहना है. और इस जिंदगी के लिए बिहार में सुरक्षा चाहिए, जिसे देने में नीतीश कुमार फिलवक्त नाकाम हैं. उनके साथी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार को बदनाम करने की साजिश है, लेकिन अगर मुख्यमंत्री अपने ही खिलाफ होती साजिश को नहीं रोक पाएगा तो सवाल तो उठेगा ही कि नीतीशे कुमार तो हैं, लेकिन क्या बिहार में अब भी बहार है.
बिहार में अपराध की ‘बहार’ पर नीतीश कुमार का ‘मास्टर स्ट्रोक’, क्या दब जाएगी पीड़ितों की चीख?
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