बिहार में वोटर लिस्ट के जांच-सुधार अभियान पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी, सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को करेगा सुनवाई

by Carbonmedia
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बिहार में मतदाता सूची की जांच और सुधार के मसले पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है. कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है. गुरुवार (10 जुलाई, 2025) को मामले पर सुनवाई होगी. कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में कहा गया है कि चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (विशेष सघन पुनरीक्षण) अभियान के चलते लाखों लोगों का नाम वोटर लिस्ट से हट जाने की आशंका है.
इस मामले में अब तक 5 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हो चुकी हैं. ये याचिकाएं एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, आरजेडी सांसद मनोज झा और बिहार के पूर्व विधायक मुजाहिद आलम ने दाखिल की हैं. याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग के आदेश को मनमाना और निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करने वाला बताया है.
सोमवार (7 जुलाई, 2025) को सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल समेत कुछ अन्य वकील याचिकाकर्ताओं की तरफ से जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस जोयमाल्या बागची की अवकाशकालीन बेंच के सामने पेश हुए. उन्होंने कहा कि बिहार के 8 करोड़ मतदाताओं की जांच इतने कम समय मे संभव नहीं है. जो भी लोग फॉर्म नहीं भर पाएंगे, उनका नाम मतदाता सूची से बाहर हो जाएगा. इस प्रक्रिया पर तुरंत रोक जरूरी है. इस पर कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के लिए सहमति दे दी.
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि मतदाता की पुष्टि के लिए जिस तरह के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, वह अव्यवहारिक है. करोड़ों मतदाताओं की पुष्टि से जुड़ी जांच-सुधार की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए बहुत कम समय रखा गया है. ऐसे में यह साफ है कि बहुत से मतदाताओं का नाम वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएगा. ये लोग बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान से वंचित रह जाएंगे इसलिए, 24 जून 2025 को जारी चुनाव आयोग के आदेश को तत्काल निरस्त करने की जरूरत है.
28 जून से बिहार में मतदाता पुनरीक्षण अभियान शुरू हो चुका है. यह 30 सितंबर तक पूरा हो जाएगा. इसके बाद नई मतदाता सूची जारी होगी. बिहार में आरजेडी और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियां इस अभियान को अलोकतांत्रिक बताते हुए विरोध कर रही हैं. अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है.
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संविधान का अभिन्न हिस्सा है. चुनाव आयोग का फैसला उसे प्रभावित कर रहा है. याचिकाओं में दावा किया गया है कि विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 के खिलाफ है. साथ ही यह जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950 और रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 के प्रावधानों के भी विरुद्ध है.

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