बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनाली बेंद्रे बनीं टीवी होस्ट:बोलीं- होस्टिंग सिर्फ मजाक नहीं, एक बड़ी जिम्मेदारी है; OTT v/s थिएटर पर भी दी राय

by Carbonmedia
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बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनाली बेंद्रे इन दिनों कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी के साथ रियलिटी शो पति, पत्नी और पंगा को होस्ट कर रही हैं। यह पहला मौका है जब सोनाली बतौर होस्ट नजर आ रही हैं। दैनिक भास्कर से बातचीत में सोनाली ने होस्टिंग के अपने पहले अनुभव को लेकर खुलकर बात की। साथ ही उन्होंने 90 के दशक के सिनेमा और आज की फिल्मों के बीच के फर्क को भी समझाया। जब आपने पहली बार पति, पत्नी और पंगा के बारे में सुना, तो आपके मन में क्या विचार आया? जब मैंने पहली बार पति, पत्नी और पंगा के बारे में सुना, तो सबसे पहले मेरे मन में यही ख्याल आया कि क्या ये लोग शादी में यकीन करते हैं या नहीं। क्योंकि अगर पंगा ही करना है और शादी में विश्वास नहीं है, तो फिर इसका मकसद क्या है? इसलिए मेरा पहला सवाल भी यही था कि क्या आप शादी में विश्वास रखते हैं? जब उन्होंने कहा कि हां, हम शादी में यकीन रखते हैं, तब मुझे लगा कि ठीक है, अब हम आगे बात कर सकते हैं। वहीं से मुझे समझ में आया कि इस कॉन्सेप्ट का मतलब प्यार भरी नोकझोंक से है। और जैसा कि हम सभी जानते हैं, ऐसी कोई शादी नहीं होती जिसमें नोकझोंक या पंगे न हों।असल में यही छोटी-छोटी तकरारें होती हैं जो यह दिखाती हैं कि आप एक-दूसरे को मानते और समझते हैं। मेरे ख्याल से यह शादी का सबसे खूबसूरत हिस्सा होता है। आपके अनुसार एक शादीशुदा रिश्ते में नोकझोंक किस हद तक होनी चाहिए? मुझे लगता है कि यह निर्णय पति-पत्नी को मिलकर करना चाहिए कि वे अपनी शादी में नोकझोंक को किस हद तक स्वीकार करना चाहते हैं। हर व्यक्ति का स्वभाव अलग होता है। कुछ लोग ज्यादा खुलकर बात करते हैं और टकराव भी होता है, जबकि कुछ शांत और संयमित होते हैं। इसलिए नोकझोंक की सीमा एक तय पैमाने पर नहीं तय की जा सकती। यह पूरी तरह आपके पार्टनर पर निर्भर करता है। क्या शो में आप सिर्फ होस्ट करेंगी या जोड़ियों को किसी तरह का टारगेट भी देंगी? नहीं, सिर्फ होस्टिंग ही नहीं, इस शो में जोड़ियों को कई तरह के टारगेट्स भी दिए जाएंगे। दरअसल, शो के जरिए हम उनका एक तरह से रियलिटी चेक करते हैं। अगर किसी जोड़ी को लगता है कि उनका रिश्ता बिल्कुल परफेक्ट है, तो हम उन्हें उनके रिश्ते का एक दूसरा पहलू दिखाते हैं। कई बार जोड़ियां अपनी सच्चाई जानती हैं, लेकिन कई बार हम उन्हें ऐसे सरप्राइज दे देते हैं, जिनकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होती। कुल मिलाकर, यह एक फन शो है। आप मुनव्वर फारूकी के साथ शो होस्ट करने वाली हैं, तो क्या आपने अब तक उन्हें रोस्ट किया है? अब तक तो मुनव्वर को रोस्ट करने का मौका नहीं मिला है, लेकिन अब जब हम एक ही मंच पर हैं, तो ये मेरे लिए एक मजेदार चैलेंज है। वैसे भी, इतने तगड़े रोस्टर को रोस्ट करना आसान नहीं होता, लेकिन इस बार मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मुनव्वर को भी उनकी ही स्टाइल में जवाब दिया जाए। होस्ट के तौर पर काम करना कितना चुनौतीपूर्ण है? जब मैं एक जज की कुर्सी पर बैठती हूं, तो मेरा फोकस सिर्फ उस एक्ट को आंकने पर होता है। लेकिन एक होस्ट के तौर पर जिम्मेदारी कहीं ज्यादा होती है। आपको न सिर्फ माहौल बनाना होता है, बल्कि हर सिचुएशन को संभालते हुए कॉमेडी को उस मुकाम तक ले जाना होता है, जहां दर्शकों को मजा भी आए और कंट्रोल भी बना रहे। फिलहाल मेरे लिए सबसे बड़ा चैलेंज यही है कि कैसे हर पल को एंटरटेनिंग बनाते हुए उसे बैलेंस में रखा जाए। 90 के दशक की फिल्मों और आज की फिल्मों में आप क्या अंतर देखती हैं? मेरे ख्याल से 90 के दौर में फिल्में बनाने के अवसर सीमित थे। उस समय थिएटर ही मुख्य माध्यम था और केवल वही फिल्में बनती थीं जो बड़े दर्शक वर्ग को आकर्षित कर सकें। लेकिन जब से मल्टीप्लेक्स और बाद में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स आए हैं, तब से चीजें काफी बदल गई हैं। आज छोटी से छोटी कहानी के लिए भी एक खास जगह बन गई है, जो पहले नहीं थी। कहानियां तो पहले भी होती थीं, लेकिन उन्हें लोग अक्सर किताबों में तलाशते थे। अब वही कहानियां हमें अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर देखने को मिल जाती हैं, जैसे ओटीटी, इंस्टाग्राम रील्स या यूट्यूब शॉर्ट्स पर। क्या आपको लगता है कि ओटीटी के आने से थिएटर्स को नुकसान पहुंच रहा है? मुझे नहीं लगता कि ओटीटी के आने से थिएटर्स को पूरी तरह नुकसान हुआ है। कई ऐसी फिल्में होती हैं, जिन्हें लोग अब भी बड़े पर्दे पर देखने का अनुभव लेना चाहते हैं। दरअसल, हर कहानी की अपनी एक जगह होती है। कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जिनका असली मजा सिर्फ सिनेमाहॉल में ही आता है। सबसे अच्छी बात यह है कि आज की ऑडियंस काफी समझदार हो गई है। उसे यह पता है कि कौन-सी कहानी ओटीटी पर देखी जा सकती है और कौन-सी फिल्म थिएटर में देखने लायक है।

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