भारत की वायु शक्ति को मजबूत करने के लिए 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है. लेकिन स्वदेशी AMCA प्रोग्राम अभी तैयार नहीं है, और विदेशी विकल्पों- अमेरिका के F-35 और रूस के Su-57 को लेकर भी तस्वीर साफ नहीं है. ऐसे में भारत की अगली रणनीति पर सबकी निगाहें टिकी हैं.
AMCA अभी सालों दूरभारत का स्वदेशी Advanced Medium Combat Aircraft (AMCA) अभी विकास के शुरुआती चरणों में है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) का कहना है कि इसका प्रोटोटाइप 2027-28 से पहले नहीं आएगा और इसका संचालन 2036 से पहले शुरू नहीं हो पाएगा. इस देरी के कारण भारतीय वायुसेना (IAF) को मौजूदा स्क्वाड्रन की कमी से जूझना पड़ रहा है.F-35: अभी नहीं हुआ कोई औपचारिक प्रस्तावअमेरिकी F-35 लड़ाकू विमान को लेकर काफी चर्चा रही है, लेकिन भारत सरकार या रक्षा विशेषज्ञों ने अभी तक कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है. विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने संसद में बताया कि “F-35 को लेकर अभी तक कोई औपचारिक बातचीत नहीं हुई है.” उन्होंने फरवरी 2025 में प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच हुई बैठक का जिक्र किया, जिसमें अमेरिका ने भारत को F-35 जैसे विमानों की बिक्री नीति पर पुनर्विचार की बात कही थी, लेकिन यह केवल नीति समीक्षा तक ही सीमित था.
F-35 क्यों नहीं है आसान विकल्प?भारत के पास पहले से ही Su-30MKI, राफेल, तेजस, मिराज 2000 और जगुआर जैसे लड़ाकू विमान हैं. IAF के एक वरिष्ठ पायलट ने बताया, ‘कोई भी विमान लेना सिर्फ उड़ाने भर की बात नहीं होती, बल्कि यह देखना होता है कि क्या वह मौजूदा सिस्टम से मेल खाता है. F-35 पूरी तरह अमेरिकी सिस्टम से जुड़ा है, जो भारत की विविध रक्षा संरचना के साथ सामंजस्य बैठाने में मुश्किल पैदा कर सकता है.’
विशेषज्ञ दिनाकर पेरि का कहना है कि F-35 अत्याधुनिक है, लेकिन भारत के लिए यह सबसे अच्छा विकल्प नहीं है. भारत के पास अमेरिकी फाइटर इकोसिस्टम नहीं है और इसे अपनाना बहुत लंबी प्रक्रिया होगी. उन्होंने यह भी कहा कि अगर अमेरिका F-35 को भारत के रूसी, फ्रांसीसी और इजरायली सिस्टम से पूरी तरह से नहीं जोड़ पाता, तो यह विमान अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाएगा.
Su-57: विकल्प तो है, पर समस्या भी बहुतरूस का Su-57 भारत के लिए एक व्यवहारिक विकल्प माना जा रहा है क्योंकि भारत पहले से ही रूसी विमानों का उपयोग करता है. लेकिन इस विकल्प के साथ भी कई चुनौतियां जुड़ी हैं:
अमेरिकी प्रतिबंधों और राजनीतिक दबाव का खतरा
डिलीवरी में देरी
तकनीकी मुद्दों
भुगतान की समस्याएं
रणनीतिक सामंजस्य की कठिनाई
हालांकि, Su-57 के साथ तकनीकी ट्रांसफर और मौजूदा रूसी सिस्टम के साथ बेहतर सामंजस्य जैसे फायदे भी हैं.
IAF में लड़ाकू विमानों की भारी कमीफिलहाल IAF के पास केवल 30-31 स्क्वाड्रन हैं, जबकि जरूरत 42.5 स्क्वाड्रन की है. LCA Mk1A और Mk2 जैसे स्वदेशी विकल्पों से इस कमी को पूरा करने की उम्मीद थी, लेकिन उनकी डिलीवरी में भी देरी हो रही है. ऐसे में भारत के पास 4th Generation Plus (4Gen+) विमान खरीदने का विकल्प बचता है, ताकि AMCA के आने तक की कमी को पूरा किया जा सके.
विशेषज्ञों की सलाह: FGFAs से ज्यादा जरूरी है 4Gen+ और LCAदिनाकर पेरि ने बताया कि ‘IAF की असली समस्या 5वीं नहीं, बल्कि 4th जेनरेशन फाइटर्स की संख्या की है. अभी जो जरूरत है वो है LCA प्रोडक्शन को तेज करना और MRFA (Medium Multi-Role Fighter Aircraft) जैसे प्रोग्राम्स को आगे बढ़ाना.’ चीन और पाकिस्तान जैसे विरोधी देश अपने लड़ाकू विमानों के बेड़े को तेजी से बढ़ा रहे हैं, जिससे भारत के लिए इस गैप को भरना और भी जरूरी हो गया है.