भारत में नेपाली नागरिकों से करा रहे बंधुआ मजदूरी:यूपी-बिहार से 60 से ज्‍यादा लोग रेस्‍क्‍यू; नेपाल सरकार को जारी करनी पड़ी एडवाइजरी

by Carbonmedia
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नेपाल सरकार ने अपने नागरिकों को भारत में नौकरी के ऑफर एक्सेप्ट करने को लेकर एडवाइजरी जारी की है। नेपाल सरकार ने कहा कि भारत में अगर नौकरी करने जा रहे हैं तो सतर्क रहें और अपराधियों के चंगुल में फंसने से बचें। दरअसल, हाल ही में भारत के उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार से नेपाल के 60 लोगों को रेस्क्यू किया गया है। नौकरी का झांसा देकर इन्हें यहां लाया गया और यहां इनसे बंधुआ मजदूरी कराई गई और अमानवीय परिस्थितियों में रखा गया। इन्हें भारतीय अधिकारियों, NGO कर्मचारी और भारत स्थित नेपाल एम्बैसी के अधिकारियों ने रेस्क्यू किया था। झांसा देकर लाए गए लोगों में कुछ नाबालिग भी थे। क्रिएटिव 1 मुझे एक दोस्त ने फोन किया था। वो उस समय खुद ही भारत में बंधक बनाया जा चुका था लेकिन मुझे बता नहीं पाया। प्रोसेसिंग फीस के नाम पर मुझसे 15,000 रुपए भी वसूले गए। यहां आने के बाद हमें खाने के लिए केवल चावल-पानी और उसमें हल्दी-नमक डाल के दिया जाता था। कभी-कभार उसके साथ आलू भी देते थे। हमें जमीन पर सोना पड़ता था और धमकाया जाता कि यह सब किसी से न कहें। —————————- ‘भारतीय एजेंसियों से पूरा सहयोग मिला’ भारत में नेपाल के एम्बैस्डर शंकर पी शर्मा ने बताया, ‘काठमांडू ने नागरिकों के लिए एक एडवाइजरी जारी की है जिसमें उन्हें भारत से मिल रहे नौकरी के ऑफर्स को लेकर सचेत रहने के लिए कहा गया है। नेपाली नागरिकों को रेस्क्यू करने के लिए भारतीय एजेंसियों ने हमारा पूरा सहयोग किया।’ माना जा रहा है कि अभी भी हजारों नेपाली भारत में फंसे हुए हैं। इसे लेकर जांच की जा रही है। जल्द ही बाकी लोगों को भी रेस्क्यू किया जाएगा। पिछले हफ्ते उत्तराखंड से 57 नेपाली नागरिकों को रेस्क्यू किया गया था। इनमें 12 नाबालिग शामिल थे। उत्तराखंड पुलिस का रेस्क्यू में अहम योगदान उत्तराखंड के होम सेक्रेटरी शैलेश बगौली ने कहा, ‘ऐसे मामलों में नेपाल जैसे पड़ोसी देशों के साथ उत्तराखंड सरकार हमेशा खड़ी रही है और आगे भी खड़ी रहेगी। हम वो सभी कदम उठाएंगे जिससे आने वाले समय में हमारे राज्य में इस तरह के केस न हो।’ क्रिएटिव 2 उन लोगों ने मुझे 7 महीनों तक कमरे में बंद रखा। मुझे पीटा और मुझसे मेरे दोस्तों को फोन करके उन्हें यहां बुलाने के लिए कहा गया। मुझे लगा मैं कभी घर नहीं लौट पाऊंगा। ———————- उत्तराखंड पुलिस का कहना है कि मार्केटिंग फर्म की आड़ में इन लोगों को यहां लाया गया। रुद्रपुर और काशीपुर के आम से दिखने वाले घरों में इन्हें बंधक बनाया गया था। इनसे कहा गया था कि पैकेजिंग के लिए या अकाउंटेंट के काम के लिए इन्हें ले जाया जा रहा है लेकिन यहां उनके साथ मारपीट की गई और नेपाल से दूसरे लोगों को लाने के लिए कहा गया था। उत्तराखंड पुलिस एक रेड के दौरान काशीपुर के एक घर में पहुंची। यहां 35 युवा एक खाली कमरे में बैठे हुए थे। कमरे की सभी खिड़कियां बंद थीं और बेडशीट्स से उन्हें ब्लॉक किया गया था। कमरे के एक कोने में प्लास्टिक की प्लेटों का ढेर लगा हुआ था जहां घंटो पुराना चावल बदबू मार रहा था। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान किसी भी बंधक ने कुछ नहीं कहा। एक पुलिसवाले ने उनमें से एक के कंधे पर हाथ रखकर जब कहा, ‘आप लोग अब सुरक्षित हैं’, तो बंधकों में से कुछ रोने लगे। भागे हुए बंधक ने बुलाई थी पुलिस काशीपुर में बनाए गए नेपाली बंधकों में से एक युवा भागकर नेपाल पहुंच गया और वहां पुलिस को सारी बात बताई। इसके बाद ही नेपाली पुलिस, NGO और उत्तराखंड की पुलिस एक्टिव हुई और रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया। भागे हुए बंधक को वापस भारत लाया गया और उसने इस पूरे रेस्क्यू में पुलिस की मदद की। उसी ने पुलिस को बाकी बंधकों तक पहुंचाया। भागे हुए बंधक ने बताया कि जैसे ही ये लोग भारत आते हैं उनसे फोन, पैसे वगैराह छीन लिए जाते हैं और इन्हें बंधक बना लिया जाता है। इसके बाद मारपीट कर इन्हें बंधक बना लिया जाता और इनपर अपनी तरह दूसरे नेपाली युवाओं इस जाल में फंसाने के लिए बुलाने का दबाव बनाया जाता। ———————— ऐसी ही और खबरों के लिए पढे़ं… यूनिवर्सिटी ने दलित असिस्‍टेंट प्रोफेसर की कुर्सी हटाई: जमीन पर बैठने को मजबूर; 20 साल से बिना पूरे वेतन के पढ़ा रहे बीते दिनों एक तस्‍वीर सोशल मीड‍िया पर वायरल हुई जिसमें एक व्‍यक्‍ति जमीन पर कम्‍प्‍यूटर और फाइलें लगाकर काम कर रहा है। ये शख्‍स आंध्र प्रदेश की SVV यूनिवर्सिटी के असिस्‍टेंट प्रोफेसर डॉ रवि वर्मा हैं। डॉ वर्मा दलित समाज से आते हैं। आरोप है कि यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ने उनकी कुर्सी हटा दी, जिसके विरोध में वे जमीन पर ही बैठकर काम करने लगे। पूरी खबर पढ़ें…

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