महोबा: इमाम हुसैन की याद में निकली ऐतिहासिक दुलदुल सवारी, हजारों की भीड़ उमड़ी

by Carbonmedia
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UP News: महोबा में चरखारी कस्बे में 169वीं दुलदुल सवारी का भव्य आयोजन हुआ. मुहर्रम की सातवीं तारीख को निकलने वाली यह सवारी इमाम हुसैन की शहादत की याद में आयोजित की जाती है, जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि गंगा-जमुनी तहज़ीब और हिंदू-मुस्लिम एकता की जीवंत मिसाल भी है.
इस ऐतिहासिक आयोजन में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और अन्य राज्यों से लगभग 50,000 श्रद्धालु शामिल हुए.
दुलदुल सवारी का इतिहास और महत्व
इस परंपरा की शुरुआत 1856 में चरखारी स्टेट के राजा मलखान जू देव ने की थी. तब से यह सवारी हर साल बिना रुके श्रद्धा और एकता के साथ निकल रही है. इस वर्ष सवारी का शुभारंभ एडीएम रामप्रकाश और एएसपी वंदना सिंह ने प्रतीकात्मक घोड़े ‘दुलदुल’ को जलेबी खिलाकर और माला पहनाकर किया.
इस मौके पर एडीएम महोबा रामप्रकाश एडीएम ने कहा कि  दुलदुल सवारी धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का अनूठा संगम है, जो हमें सामाजिक समरसता का संदेश देता है.
वहीं एएसपी वंदना सिंहने बताया कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुचारु आयोजन के लिए 11 थानों की पुलिस और अतिरिक्त बल तैनात किया गया,.
सवारी का मार्ग और अनूठी परंपराएं
मुकेरीपुरा मुहाल से शुरू होकर यह सवारी विभिन्न इमाम चौकों से होकर गुजरी. श्रद्धालु प्रतीकात्मक घोड़े ‘दुलदुल’ को जलेबी का प्रसाद खिलाते हैं, जिसके बारे में मान्यता है कि यदि घोड़ा प्रसाद स्वीकार करता है, तो श्रद्धालु की मुराद पूरी होती है.एक खास परंपरा में श्रद्धालु घोड़े के शरीर में लगे प्रतीकात्मक तीरों पर नींबू चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं. मुराद पूरी होने पर अगले साल चांदी या सोने का नींबू चढ़ाया जाता है. दिल्ली से आई श्रद्धालु सैयदन ने कहा कि इस सवारी में शामिल होना मेरे लिए आध्यात्मिक अनुभव है. यह हमें इमाम हुसैन के बलिदान से जोड़ता है.
हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक
चरखारी की दुलदुल सवारी हिंदू-मुस्लिम एकता की अनुपम मिसाल है. स्थानीय स्वर्ण व्यवसायी चांदी के नींबू उपलब्ध कराते हैं, जबकि हिंदू समुदाय के लोग जलेबी की दुकानें लगाकर भाईचारे का संदेश देते हैं.

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