महोबा के सुगिरा गांव में 200 साल से कायम हिंदू मुस्लिम एकता, मोहर्रम पर उठते हैं दो ताजिए

by Carbonmedia
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UP News: महोबा की कुलपहाड़ तहसील में बसा सुगिरा गांव मोहर्रम के अवसर पर हिंदू-मुस्लिम एकता की जीवंत मिसाल पेश करता है. यहां हर साल दसवीं मोहर्रम पर दो ताजिए निकाले जाते हैं— एक हिंदू समुदाय द्वारा और दूसरा मुस्लिम समुदाय द्वारा. यह 200 साल पुरानी परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि गंगा-जमुनी तहजीब और सामुदायिक सौहार्द का प्रेरणादायक उदाहरण भी है.
गांव के बुजुर्गों के मुताबिक, इस परंपरा की नींव सुगिरा नरेश राव महिपत जूदेव ने रखी थी, जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. अंग्रेजों द्वारा भूरागढ़ किले में उनकी फांसी के बाद, गांववासियों ने उनकी इस परंपरा को जीवित रखने का संकल्प लिया. तब से लेकर आज तक, हिंदू और मुस्लिम समुदाय कंधे से कंधा मिलाकर मोहर्रम मनाते हैं. हिंदू समुदाय इमाम हसन और हुसैन की शहादत को उतनी ही श्रद्धा के साथ याद करता है, जितना मुस्लिम समुदाय.
हिंदू-मुस्लिम समुदाय का योगदान
ग्रामीण देवेंद्र यादव बताते हैं कि हमारे गांव में हिंदू समुदाय पूरी श्रद्धा के साथ एक ताजिया तैयार करता है और जुलूस निकालता है. दूसरा ताजिया मुस्लिम समुदाय की ओर से निकलता है. यह परंपरा हमारी एकता और भाईचारे का प्रतीक है. वहीं  मुस्लिम समुदाय के अकबर अली मंसूरी कहते हैं कि हमारे हिंदू भाई इमाम हुसैन की कुर्बानी को दिल से समझते और सम्मान देते हैं. यह सिर्फ धर्म की बात नहीं, बल्कि इंसानियत और त्याग की भावना का सम्मान है. दोनों समुदाय न केवल मोहर्रम, बल्कि एक-दूसरे के सभी त्योहारों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं.
गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक
सुगिरा गांव की यह परंपरा उस समय और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, जब देश के कई हिस्सों में धार्मिक भेदभाव और तनाव की खबरें सामने आती हैं. सुगिरा का मोहर्रम मातम का नहीं, बल्कि मजहबी मेल-मिलाप और सौहार्द का प्रतीक बन चुका है. यह गांव साबित करता है कि धर्म के नाम पर दीवारें नहीं, बल्कि प्रेम और एकता के पुल बनाए जा सकते हैं.
सुगिरा की प्रेरणा
सुगिरा गांव की यह अनूठी परंपरा दिखाती है कि धर्म और आस्था के आधार पर समाज को जोड़ा जा सकता है. यह गांव उन लोगों के लिए एक सबक है जो धार्मिक आधार पर विभाजन पैदा करने की कोशिश करते हैं. सुगिरा का मोहर्रम सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि प्यार, एकता और इंसानियत का उत्सव है.

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