वीर भूमि महोबा में रविवार को उत्तर भारत का सबसे प्राचीन और भव्य 844वां कजली मेला धूमधाम से शुरू हुआ. उद्घाटन समारोह में सदर विधायक राकेश गोस्वामी, एमएलसी जीतेन्द्र सिंह सेंगर, डीएम और एसपी ने संयुक्त रूप से फीता काटा. नगर पालिका अध्यक्ष ने सभी अतिथियों को पगड़ी पहनाकर ऐतिहासिक शोभायात्रा का शुभारंभ कराया.
हवेली दरवाजे से निकली यह शोभायात्रा देखते ही बन रही थी, हाथी पर सवार आल्हा, घोड़े पर बैठे उदल, और वीर गाथाओं से सजी झांकियों ने लोगों को इतिहास के उस गौरवपूर्ण दौर में पहुंचा दिया. लगभग एक सैकड़ा घोड़े नृत्य करते हुए आगे बढ़े, तो आल्हा के ओजस्वी स्वर फिजाओं में गूंज उठे.
इतिहास के पन्नों में दर्ज है युद्ध
इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि सन 1182 ईस्वी में सावन पूर्णिमा को कीरत सागर किनारे चंदेल और पृथ्वीराज चौहान की सेनाओं के बीच महोबा के कीरत सागर तट पर भीषण युद्ध हुआ.
वीर आल्हा-ऊदल ने चौहान की सेना को खदेड़कर विजय प्राप्त की, और इसके अगले दिन बहनों ने भाइयों को राखी बांधी. तभी से यह पर्व महोबा में “विजय पर्व” के रूप में मनाया जाता है. यहां रक्षाबंधन सावन पूर्णिमा पर नहीं, बल्कि भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा को मनाने की परंपरा है, जो आज भी पूरे उत्साह से निभाई जाती है.
इस मौके पर डीएम ने क्या बताया
डीएम गजल भारद्वाज ने बताया कि एक सप्ताह मंच से संस्कृतिक कार्यक्रम होंगे. इस मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम, कवि सम्मेलन और लोक नृत्य होंगे, बुंदेली गायन होंगे. मेला सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है.
जहां हर धर्म और समुदाय के लोग कजलियों को सम्मानपूर्वक विसर्जित करते हैं. तकरीबन 15 दिन तक मेला सजा रहेगा जिसमें उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से लोग भी मेले में शामिल होते है.
मेले में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर एसपी ने दी यह जानकारी
सुरक्षा व्यवस्था को लेकर एसपी प्रबल प्रताप सिंह ने बताया कि मेला को एक जोन, दो कार्डन और सात सेक्टर में विभाजित है, दो कंपनी पीएसी, एक प्लाटून फ्लड पीएसी और 500 पुलिसकर्मी तैनात हैं. चार सीओ इसकी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, जबकि एडिशनल एसपी वंदना सिंह स्वयं निगरानी कर रही हैं. मेले में एक अस्थायी थाना और चार चौकियां बनाई गई है, ताकि दूर-दराज से आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
महोबा का कजली मेला केवल एक ऐतिहासिक आयोजन नहीं, बल्कि वीरता, भाईचारे और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक है. 844 वर्षों से चली आ रही यह परंपरा आज भी उसी उत्साह और श्रद्धा के साथ निभाई जा रही है, जिसमें इतिहास की गौरवगाथा, सांप्रदायिक सौहार्द और जनसंपर्क का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. विजय पर्व के रूप में मनाया जाने वाला यह मेला आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का अमूल्य माध्यम है.
महोबा में धूमधाम से शुरू हुआ उत्तर भारत का सबसे प्राचीन 844वां कजली मेला, भाई-बहन के प्रेम का है प्रतीक
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