मुंबई में एक बिहारी दंपति ने बचाई मराठी शख्स की जिंदगी, जानें क्यों चर्चा में आया ये मामला?

by Carbonmedia
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Maharashtra News: महाराष्ट्र की राजनीति में हमने कई बार परप्रांतीय का मुद्दा देखा है, कई बार हिंदी मराठी भाषा का विवाद भी होते देखा है. इसी सब राजनीति से ऊपर मानवता है इसका उदाहरण मुंबई के कांदिवली इलाके में देखने को मिला, जहां एक बिहारी ने मराठी शख्स की जान बचाई वो भी उस समय जब वो एक सड़क हादसे में खून से लतपत दर्द से कराह रहा था.


सुनील डाफले, जो कि मराठी हैं और मुंबई से सटे मीरारोड इलाके में रहते हैं. सुनील पेशे से एक प्राइवेट कंपनी में एक्सेल शीट का काम करते हैं. 29 मई की रात वो अपने पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कांदिवली इलाके में आये थे और कार्यक्रम से निकल कर देर रात अपने घर मीरारोड वापस जा रहे थे उसी समय उनकी बाइक स्पीड ब्रेकर पर फिसल गई और उनका भयानक सड़क हादसा हो गया.


गुजर रहे शख्स ने उनकी बचाई जान
सुनील ने ABP न्यूज़ से बातचीत की और बताया कि उनके सर पर चोट लग गई थी, उनका बहुत ही खून बह रहा था उल्टी हो रही थी और उसी समय वहां से गुजर रहे शख्स ने उनकी जान बचाई. सुनील ने आगे कहा कि एक बाइक पर पति पत्नी सवार थे उनकी पत्नी गर्भवती हैं, इसके बावजूद वो वहां रुके उन्होंने मेरा खून साफ किया मेरी उल्टी साफ की और CPR दिया. इतना ही नही मुझे लेकर अस्पताल भी गए और मेरे घर वालों को सूचित भी किया.


सुनील ने बताया कि, डॉक्टर ने कहा कि खून ज्यादा बह रहा था और ब्लड क्लॉट भी हो सकता था जिससे जान को भी खतरा था. वो पति पत्नी भगवान का रूप लेकर मेरे पास आये और उन्होंने मेरी जान बचाई.


’एक भारतीय की जान एक भारतीय ने बचाई'
सुनील ने आगे कहा कि राजनेता अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने के लिए ऐसे मुद्दे उठाते हैं पर यहां जब मैं जख्मी अवस्था में था उस समय मुझसे किसी ने किस राज्य से हो क्या नाम है कुछ नहीं पूछा और मेरी मदद की और उनकी बदौलत मैं जिंदा हूँ. मैं इतना ही कहूंगा कि एक भारतीय की जान एक भारतीय ने बचाई.


आपको बता दें कि मनीष कुमार सोनी जो कि एक निजी कंपनी में कंटेंट प्रोड्यूसर है उनकी पत्नी स्वेता सोनी गर्भवती हैं और दोनों ही बिहार के पटना के रहने वाले हैं.


’108 पर कॉल कर एम्बुलेंस बुलाने की कोशिश की पर किसी ने जवाब नहीं दिया'
मनीष ने ABP न्यूज़ से कहा कि स्वेता गर्भवती है और इसी वजह से उसको कभी कभी कुछ चटपटा खाने का मन होता है, जिसकी वजह से उस दिन हम देर रात घर से निकले और हमारे सामने हमने एक्सीडेंट होता देखा. स्वेता ने कहा तुरंत मदद कीजिए. मैं उस शख्स के पास गया पानी से उनका खून साफ किया और उस समय मुझे उनकी जान बचानी थी तो उस समय मुझे जो कुछ समझ आया मैंने वो सब किया. उस समय मैने 108 पर कॉल कर एम्बुलेंस बुलाने की कोशिश की पर किसी ने जवाब नहीं दिया, फिर मैंने 102 पर कॉल किया वहां कहा गया कि 108 पर कॉल करिए. फिर मुझे लगा कि ये सब करने से समय बर्बाद होगा और हमने वहां लोगों की मदद ली और उन्हें एक ऑटो रिक्शा में बैठाया.


मनीष ने आगे कहा कि हम उन्हें शताब्दी अस्पताल लेकर गए, स्वेता ने बताया कि मैंने तुरंत उनके बाइक से चाबी निकाल ली और लोगों की मदद से उस बाइक को पास में पार्क करवाया, उस इलाके को मैं जानती हूं इस वजह से हमने तय किया कि शताब्दी सबसे नजदीक है और वहां लेकर गए.


स्वेता ने कहा कि उनका फ़ोन मेरे पास था हमने इमरजेंसी नंबर पर कॉल किया और वो कॉल उनकी फॅमिकी के सदस्य को लगा, हमने उन्हें जानकारी दी और उसके बाद परिवार से पूरा संपर्क करते रहे और उन्हें अपडेट देते रहे.


मनीष ने आगे कहा कि यह देश मेरा है और मैं कहीं भी रह सकता हूँ और मेरा मानना है कि यहां मानवता सबसे बड़ी चीज है और मैंने जो भी इस तरह की राजनीति देखी है वो नेताओं के भाषण में या तो फिर न्यूज़ चैनल में. मेरे सर्कल में भी मुझे कभी परप्रांतीय होने का अहसास नहीं हुआ और किसी को होना भी नहीं चाहिए. हमे राजनीति करने वालों की बातों से हटकर मानवता को हमेशा प्राथमिकता देनी चाहिए.


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