Screen Time Effect on Kids: मम्मी, पहले मोबाइल दो, फिर खाना खाऊंगा!” ये वाक्य अब हर दूसरे घर की आम कहानी बन चुका है. खाना अब स्वाद और भूख से नहीं, बल्कि मोबाइल की स्क्रीन से जुड़ा अनुभव बन गया है. जहां एक समय परिवार साथ बैठकर खाना खाते और बातचीत करते थे, अब वहां हर किसी की नजर एक चमकती हुई स्क्रीन पर होती है. बच्चों में ये आदत इतनी गहराई तक बस गई है कि बिना मोबाइल के वे खाना खाने से साफ इनकार कर देते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये आदत सिर्फ उनकी भूख ही नहीं, बल्कि उनके स्वभाव और सामाजिक व्यवहार को भी प्रभावित कर रही है?
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बच्चों में क्या-क्या दिक्कत हो रही है?
ध्यान की कमी: लगातार स्क्रीन पर ध्यान केंद्रित करने की आदत से बच्चों का फोकस कम होता है.
भावनात्मक असंतुलन: जानकारी के मुताबिक, स्क्रीन टाइम ज्यादा होने से बच्चे चिड़चिड़े और गुस्सैल हो जाते हैं
सामाजिक दूरी: मोबाइल के कारण बच्चे परिवार से बातचीत करने में रुचि नहीं लेते, जिससे वे अकेलापन महसूस करने लगते हैं.
मानव व्यवहार पर प्रभाव
खाने का समय केवल पोषण का नहीं, बल्कि भावनात्मक कनेक्शन का भी समय होता है. जब बच्चा मोबाइल देखते हुए खाना खाता है, तो वह उस कनेक्शन से दूर हो जाता है. धीरे-धीरे ये आदत उन्हें आत्मकेंद्रित बना देती है, जिससे वे समाज और परिवार से कटने लगते हैं. जब बातें नहीं होतीं, भावनाएं नहीं बांटी जातीं, तो बच्चों के अंदर एक प्रकार की बेचैनी पनपने लगती है, जो गुस्से और अकेलेपन में बदल सकती है.
माता-पिता को क्या करना चाहिए?
नो-स्क्रीन डाइनिंग रूल अपनाएं: खाना खाते समय मोबाइल, टीवी सब बंद करें.
खुद टीवी या मोबाइल ज्यादा न देखें: बच्चे वही सीखते हैं जो वे देखते हैं. इसलिए खुद पर भी ध्यान देना होगा.
खाने को इंटरैक्टिव बनाएं: कहानियां सुनाएं, हल्की बातचीत करें.
धीरे-धीरे आदत बदलें: एकदम से न रोकें, धीरे-धीरे स्क्रीन टाइम कम करें.
बचपन की ये छोटी आदतें ही आगे चलकर बच्चे के व्यक्तित्व को आकार देती हैं. मोबाइल के साथ खाना खिलाना आपको आसान रास्ता लग सकता है, लेकिन ये आपके बच्चे को धीरे-धीरे अकेला, गुस्सैल और सामाजिक रूप से कमजोर बना रहा है. क्योंकि बदलते बचपन को संवारने की जिम्मेदारी आज भी मां-बाप की ही है.
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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.