यमुनानगर के मुकारबपुर की गलियों में डायरिया का साया:दूषित पानी ने छीनी जिंदगी, गांव में सन्नाटा; ग्राउंड रिपोर्ट

by Carbonmedia
()

यमुनानगर के मुकारबपुर गांव की गलियों में डायरिया फैले एक सप्ताह के करीब हो चुका है। मरीजों की संख्या 100 का आंकड़ा पर कर भले ही नीचे आ गई हो लेकिन गांव में अभी भी सन्नाटा और चिंता का माहौल है। गलियों की हवा में एक अनजाना डर और बेचैनी तैर रही है। यह छोटा सा गांव, जहां कभी बच्चों की हंसी और चौपालों पर बुजुर्गों की बातचीत गूंजती थी, आज डायरिया की चपेट में है। हर घर में चिंता की लकीरें साफ दिखती हैं, और दूषित पानी ने ग्रामीणों की जिंदगी को संकट में डाल दिया है। गांव के नलों से बहता पीला पानी और सड़कों पर जमा गंदगी इस त्रासदी की कहानी बयां करते हैं। स्वास्थ्य विभाग गांव में डेरा डाले हुए है और किसी भी प्रकार की एमरजेंसी के लिए एम्बुलेंस भी तैनात है। वहीं ग्रामीणों की आंखों में बस एक ही सवाल है—यह मुसीबत कब तक? आइए, इस ग्राउंड रिपोर्ट के जरिए हम आपको मुकारबपुर की उन गलियों में ले चलें, जहां हर कदम पर जिंदगी हिम्मत और उम्मीद के साथ एक जंग लड़ रही है। गली में सन्नाटा पसरा, घर मिले बंद दैनिक भास्कर की टीम अग्रसेन चौक से पांवटा नेशनल हाईवे पर करीब आठ किलोमीटर चलने पर बाई ओर बोर्ड पर मुकारबपुर लिखा हुआ देखती है। हाईवे छोड़ गांव की तरफ टर्न लिया। करीब एक किलोमीटर चलकर गांव की एंट्री पर पहुंचे, लेकिन यहां तो कोई आसपास नजर ही नहीं आया। गांव की मुख्य गली से अंदर जाकर देखा तो दोनों तरफ नाली ने निकाली हुई गंदगी फैली हुई है। न तो गली में कोई नजर आया और न ही किसी घर का दरवाजा खुला पाया। गली को क्रॉस करके जब गांव के तालाब वाली साइड पहुंचे तो पानी की पाइपलाइनें दिखती हैं, जिनमें से कई जगह रिसाव साफ नजर आता है और उन्हें ठीक करने में जन स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी लगे हुए हैं। पानी में बदबू थी, हमने शिकायत की, लेकिन नहीं सुनी सड़क के किनारे गंदा पानी जमा है, जिसमें मक्खियां भिनभिना रही हैं। पास खड़े एक व्यक्ति से पूछा तो पता चला कि यही दूषित पानी इस त्रासदी का मुख्य कारण बना है। ग्रामीण रामपाल, जो अपने बीमार बेटे को लेकर स्वास्थ्य केंद्र की ओर जा रहे हैं, बताते हैं, “पिछले कई दिनों से पानी में बदबू थी, हमने कई बार शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब देखो, पूरा गांव बीमार है।” उनकी आवाज में गुस्सा और लाचारी साफ झलकी। गांव के लोग नल का पानी नहीं पी रहे इसलिए प्रशासन ने उनके लिए पीने के पानी के लिए टेंक भरकर खड़ा किया हुआ है, जिसपर कुछ महिलाएं पानी भर रही थीं। उनसे पूछा तो किरणा देवी ने बताया कि नलों में जो पानी आ रहा है वह अभी भी हल्का पीला है। जोकि पीने लायक नहीं है। खुद के लिए तो टेंक से स्वच्छ जल भर रहे हैं, लेकिन पशुओं का क्या उन्हें यह वही नल वाला पानी पिलाने के अलावा हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। कपड़े बर्तन तो हमें अभी भी नलों से आ रहे पानी से करने पड़ रहे हैं। आखिर कब तक हम इसी प्रकार टैंकों से पानी भरकर ले जाएंगे। अब ताे नल से रहे पानी से बर्तन धोने में भी डर लगता है। स्वास्थ्यकर्मी गांव में डेरा डाले हुए गांव में थोड़ी आगे चले तो देखा कि स्वास्थ्य विभाग की टीम बैठी हुई है और सैंपलिंग कर रही है। स्वास्थ्य केंद्र में मौजूद डॉक्टर वागीश गुटैन और उनकी टीम दिन-रात मरीजों का इलाज करने में जुटी है। डॉ. गुटैन बताते हैं कि “हमने अब तक 300 से ज्यादा घरों का सर्वे किया है। 65 की डायरिया की पुष्टि हुई थी, जिनमें से आठ की हालत गंभीर थी। अब बहुत से मरीज ठीक हो चुके हैं। स्थिति काफी हद तक सामान्य है। स्वास्थ्य केंद्र के बाहर एक एम्बुलेंस खड़ी है, जो किसी भी आपात स्थिति के लिए तैयार है। डॉक्टरों ने बताया कि पानी में क्लोरीन डालकर उसे साफ करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, लेकिन अभी भी 16 बैक्टीरियोलॉजिकल टेस्ट और 9 स्टूल सैंपल की रिपोर्ट का इंतजार है। ये रिपोर्ट यह स्पष्ट करेगी कि क्या यह डायरिया है या कोई और गंभीर बीमारी, जैसे हैजा। एक दुखद नुकसान, व्यक्ति की मौत गांव के माहौल को और भारी बनाती है 42 वर्षीय जसवंत सिंह की मौत की खबर। उनके घर में जाकर देखा तो परिवार के लोग शोक में डूबा हुआ पाया। बेटे नितिन ने बताया कि ” पापा तो बिल्कुल ठीक थे। अचानक उल्टी-दस्त शुरू हुए, और फिर… वो चले गए।” गांव में यह खबर आग की तरह फैली, और लोगों में दहशत और बढ़ गई। जसवंत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार है, जो इस मौत के सटीक कारण को उजागर करेगी। गांव में जागरूकता और उम्मीद स्वास्थ्य विभाग की टीमें गांव में डोर-टू-डोर सर्वे कर रही हैं। वे लोगों को साफ पानी उबालकर पीने और हाथ धोने की सलाह दे रही हैं। प्रशासन अब चिंता न करने की बात कह रहा है, लेकिन गांव में डर का माहौल है। बीमार बच्चे स्कूल नहीं जा रहे, और कई परिवार गांव छोड़कर रिश्तेदारों के पास जाने की सोच रहे हैं। ग्रामीण शीला ने बताया कि उनकी बेटी शीतल को उल्टी दस्त लगे हुए थे। तीन चार दिन पहले ही उसकी तबीयत बिगड़ी थी। अब हालत में सुधार है, लेकिन कमजोरी काफी आ चुकी है। अब तो पानी का गिलास भी हाथ में लेने से डर लगता है। एक के बाद एक सभी बीमार होते चले गए ग्रामीण गुरमीत ने बताया कि उसकी पत्नी की तबीयत काफी खराब हो चुकी थी। बड़ी मुश्किल से तबीयत में सुधार आया, जिसके बाद उसकी बेटी बीमार पड़ गई। डाक्टर के पास लेकर गया तो उसने पानी की ही समस्या बताई। बेटी की हालत थोड़ी ठीक हुई तो बेटे को उल्टी दस्त लग गए। अब उसके पेट में भी अजीब सा महसूस होने लगा है। संकट अभी खत्म नहीं हुआ मुकारबपुर की गलियों और लोगों के हालात देखते हुए यह तो साफ हो गया कि संकट अभी खत्म नहीं हुआ है। पाइपलाइन का रिसाव भले ही ठीक कर दिया गया हो, लेकिन ग्रामीणों का भरोसा टूट चुका है। स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि स्थिति अब नियंत्रण में है, लेकिन हर नया मरीज इस दावे पर सवाल उठा रहा है। गांव के लोग अब सिर्फ साफ पानी और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग कर रहे हैं।

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating / 5. Vote count:

No votes so far! Be the first to rate this post.

Related Articles

Leave a Comment