यमुनानगर में पहुंचे भाकियू अध्यक्ष गुरनाम चढूनी:बोले- भारतीय किसान पहले ही वेंटिलेटर पर, सस्ते आयात से हो जाएगा खत्म; अमेरिका की तरह कॉरपोरेट आधारित हो जाएगी खेती

by Carbonmedia
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यमुनानगर में भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) की जिला कार्यकारिणी की आम बैठक आयोजित की गई, जिसमें यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने भाग लिया। इस दौरान चढूनी ने देश में सस्ते आयात के बढ़ते खतरे और इसके भारतीय किसानों पर पड़ने वाले प्रभावों पर गंभीर चिंता व्यक्त की। चढूनी ने कहा कि सरकार कुछ ऐसी नीतियों पर काम कर रही है, जिसके तहत गेहूं, सेब और दूध सहित सात फसलों को विदेशों से आयात करने की योजना है। इस बारे उच्चस्तरीय अधिकारियों का प्रतिनिधिमंडल पहलगाम अटैक से पहले का विदेश यात्रा पर गया हुआ है। वहीं वाणिज्य मंत्री भी वहां जाकर आ चुके हैं और 10 जुलाई तक इस मुद्दे पर अंतिम फैसला हो सकता है। चढूनी ने आरोप लगाया कि सरकार इस जानकारी को जनता से छिपा रही है। किसानों की आजीविका खतरे में पड़ेगी उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अमेरिका जैसे देशों या उन देशों से सस्ती फसलों का आयात शुरू हुआ, जहां उत्पादन अधिक और लागत कम है, तो भारतीय किसानों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी। चढूनी ने कहा, “भारत में पहले से ही खेती मुनाफे का सौदा नहीं है। हमारा किसान पहले से ही वेंटिलेटर पर है। सस्ता आयात होने से किसान पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा।” चढूनी ने जोर देकर कहा कि भारतीय किसानों के पास खेती के अलावा रोजगार के अन्य विकल्प सीमित हैं, और अधिकांश किसान छोटे जोत (दो-दो एकड़) के मालिक हैं। उन्होंने आशंका जताई कि सस्ते आयात के कारण भारत में खेती का ढांचा अमेरिका की तरह कॉरपोरेट आधारित हो सकता है, जहां बड़े-बड़े फार्म कॉरपोरेट्स के नियंत्रण में होंगे। इससे छोटे और मझोले किसानों का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। आंदोलन की तैयारी और रणनीति बैठक में किसानों के हितों की रक्षा के लिए एक बड़े आंदोलन की आवश्यकता पर बल दिया गया। चढूनी ने कहा कि सभी किसान संगठनों और राजनीतिक दलों को एक मंच पर आना होगा, क्योंकि यह मुद्दा सिर्फ किसानों तक सीमित नहीं है, बल्कि आने वाले समय में यह समाज के हर वर्ग को प्रभावित करेगा। उन्होंने गांव-गांव में कमेटियां गठित करने और संगठन को मजबूत करने की रणनीति पर जोर दिया। चढूनी ने बताया कि सरकार के साथ इस मुद्दे पर चर्चा के लिए बैठक की जाएगी, लेकिन उससे पहले किसानों के बीच जागरूकता फैलाने और संगठित होने की तैयारी की जा रही है। इसके बाद आंदोलन की अगली रणनीति तय की जाएगी।

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