Raj And Uddhav Thackeray Rally: महाराष्ट्र में हिंदी की अनिवार्यता को लेकर सरकारी प्रस्ताव वापस लिए जाने के बाद अब शिवसेना (यूबीटी) और MNS की 5 जुलाई को विजय रैली होने जा रही है. करीब 20 साल बाद किसी सियासी मंच पर उद्धव और राज ठाकरे एक साथ दिखाई देंगे. अलग-थलग चल रहे ठाकरे भाइयों के बीच संभावित गठबंधन को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा जारी है.
माना जा रहा है कि उद्धव-राज ठाकरे सुलह से मराठी वोटों का ध्रुवीकरण संभव है और गठबंधन गेमचेंजर साबित हो सकता है. इतने सालों बाद ठाकरे ब्रदर्स के किसी सियासी मंच पर एक साथ आने के पीछे कई और वजहें गिनाई जा रही हैं. इस बात की चर्चा हो रही है कि दोनों का एक दूसरे के साथ आना क्यों जरूरी है. ठाकरे बंधुओं की एकजुटता के संभावित कारणों में कुछ इस प्रकार हैं-
ठाकरे बंधुओं की एकजुटता के संभावित कारण
मराठी अस्मिता की रक्षा: दोनों नेता हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने के फैसले को मराठी पहचान पर हमला मानते हैं
बीजेपी सरकार पर निशाना: दोनों BJP नेतृत्व वाली महायुति सरकार को ‘भाषाई आपातकाल’ थोपने का आरोप लगा रहे हैं
राजनीतिक समीकरण में बदलाव: रैली को निकाय चुनावों से पहले संभावित राजनीतिक गठबंधन की भूमिका माना जा रहा है.
विभाजन से बचने की रणनीति: पहले अलग-अलग प्रदर्शन की योजना थी, लेकिन बाद में एकजुट होकर रैली करने का फैसला हुआ
बाल ठाकरे की विरासत को साथ लेकर चलना: यह रैली मराठी गौरव और संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन की भावना को फिर से जीवित कर सकती है.
जनभावना और कार्यकर्ताओं का दबाव: माना जा रहा है कि दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों की मांग के चलते दोनों दलों के नेताओं में हाल ही में संवाद बढ़ा है.
बीएमसी में उद्धव और राज की हैसियत और चुनौतियां
उद्धव की स्थिति: शिवसेना (UBT) का 2017 में 84 सीटों के साथ दबदबा, अब कमजोर
राज की स्थिति: MNS के 7 पार्षद (2017), अब प्रभाव नगण्य
उद्धव की चुनौतियां: बीजेपी-शिंदे गठबंधन, MVA में सीट बंटवारे की समस्या
राज की चुनौतियां: संगठन और वित्त की कमी, कार्यकर्ताओं का मनोबल कम
बीजेपी का दबाव: शिंदे-फडणवीस की रणनीति दोनों के लिए खतरा
महाराष्ट्र में भाषा विवाद
महाराष्ट्र में 17 अप्रैल में 1 से 5वीं तक के स्टूडेंट्स के लिए तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी अनिवार्य की गई थी. 29 जून 2025 को महाराष्ट्र सरकार 3 लैंग्वेज फॉर्मूला का फैसला ले लिया था. ये फैसला राज्य के सभी मराठी और अंग्रेजी मीडियम स्कूलों पर लागू किया गया था. नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) 2020 के नए करिकुलम को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र में इन क्लासेज के लिए तीन भाषा की पॉलिसी लागू की गई थी.
विवाद बढ़ने के बाद अपडेटेड गाइडलाइंस जारी की गई. मराठी और अंग्रेजी मीडियम में कक्षा 1 से 5वीं तक पढ़ने वाले स्टूडेंट्स तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी के अलावा भी दूसरी भारतीय भाषाएं चुन सकते थे. इसके लिए शर्त बस यह थी कि एक क्लास के कम से कम 20 स्टूडेंट्स हिंदी से इतर दूसरी भाषा को चुनें. ऐसी स्थिति में स्कूल में दूसरी भाषा के शिक्षक भी नियुक्त होंगे. अगर दूसरी भाषा चुनने वाले स्टूडेंट्स का नंबर 20 से कम है तो वह भाषा ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई जानी थी.
पहले राज और उद्धव ठाकरे अलग-अलग करने वाले थे रैली
महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को लेकर जारी विवाद के बीच उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे 5 जुलाई को मुंबई में संयुक्त रैली निकलने वाले थे. लेकिन भाषा की अनिवार्यता का प्रस्ताव वापस लिए जाने के बाद दोनों नेता मराठी विजय रैली निकालने की तैयारी में हैं. इससे पहले उद्धव ने 6 जुलाई और मनसे प्रमुख ने 7 जुलाई को रैली निकालने का ऐलान किया था. एनसीपी (SP) चीफ शरद पवार ने भी ठाकरे भाइयों को समर्थन दिया है. महाराष्ट्र सरकार ने इसी साल 17 अप्रैल में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बना दिया था. विरोध के बाद सरकार ने फैसले में बदलाव किया.
राज ठाकरे कब और क्यों शिवसेना से अलग हुए?
राज ठाकरे ने नवंबर 2005 को शिवसेना से इस्तीफा दिया था. उन्होंने मार्च 2006 को मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की स्थापना की थी. राज ठाकरे के शिवसेना से बाहर निकलने का मुख्य कारण पार्टी के भीतर सत्ता संघर्ष था. राज का उग्र मराठी-हिंदुत्व रुख था जबकि उद्धव ठाकरे का संतुलित दृष्टिकोण था. 2009 के चुनाव में MNS ने 13 सीटें जीतीं थी और शिवसेना के वोट काटे थे.
वो इस बात से नाराज थे कि चचेरे भाई उद्धव ठाकरे को पार्टी के संस्थापक और उत्तराधिकारी के रूप में तैयार किया जा रहा था. बाल ठाकरे की तरह पार्टी का नेतृत्व करने के उद्धव के तरीके से राज संतुष्ट नहीं थे. आंतरिक पारिवारिक गतिशीलता ने भी इसमें एक भूमिका निभाई. अपने चचेरे भाई उद्धव के साथ नेतृत्व को लेकर भी मतभेद रहे. बाद में 2025 में विवाह समारोह में दोनों की मुलाकात के बाद सुलह की अटकलें लगने लगी थीं.