‘रातों रात लोगों को भेज रहे बांग्लादेश’, मां को असम पुलिस से छुड़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे मुस्लिम शख्स ने कहा

by Carbonmedia
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (30 मई, 2025) को एक व्यक्ति की उस याचिका पर दो जून को सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें उसने दावा किया है कि बांग्लादेश में गुप्त निर्वासन के व्यापक आरोपों के बीच उसकी मां को असम पुलिस ने अवैध रूप से हिरासत में रखा है.


मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई, जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और जस्टिस ए एस चंदुरकर की बेंच ने याचिकाकर्ता युनूस अली का प्रतिनिधित्व कर रहे सीनियर एडवोकेट शोएब आलम की दलीलों पर गौर किया कि उनकी मां को राज्य पुलिस ने हिरासत में लिया है.


मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि याचिका सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की जाएगी. यूनुस अली ने अपनी मां मोनोवारा बेवा की तत्काल रिहाई का अनुरोध किया, जिन्हें 24 मई को बयान दर्ज करने के बहाने धुबरी पुलिस थाने बुलाकर कथित तौर पर हिरासत में लिया गया था.


शोएब आलम ने असम में जारी उस प्रथा के बारे में भी गंभीर चिंता जताई जिसके तहत लोगों को हिरासत में लिया जाता है और रातों-रात बांग्लादेश निर्वासित कर दिया जाता है जबकि उनके कानूनी मामले लंबित रहते हैं. उन्होंने कहा, ‘महिला की ओर से 2017 में एक विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की गई है. नोटिस जारी किए गए हैं और फिर भी लोगों को निर्वासित किया जा रहा है जबकि इस अदालत में सुनवाई अभी भी जारी है.'


उन्होंने कहा, ‘ऐसे कई वीडियो प्रसारित हो रहे हैं, जिनमें दिखाया गया है कि लोगों को रातों-रात पकड़कर सीमा पार भेज दिया गया.’ मोनोवारा 12 दिसंबर, 2019 से उस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जमानत पर थी, जिसमें असम के विदेशी हिरासत शिविरों में तीन साल से अधिक समय बिताने वाले बंदियों को सशर्त रिहाई की अनुमति दी गई थी.


याचिका के अनुसार, जब याचिकाकर्ता ने अगले दिन पुलिस थाने में जाकर अधिकारियों को बताया कि उनका मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है तो उसे उसकी मां से मिलने नहीं दिया गया और उनकी रिहाई से भी इनकार कर दिया गया. याचिका में गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है, जिसने मोनोवारा को विदेशी घोषित करने वाले विदेशी न्यायाधिकरण के फैसले को बरकरार रखा था .


याचिका में अधिकारियों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया कि वे मोनोवारा को धुबरी पुलिस थाने में अवैध हिरासत से तुरंत रिहा करें. इसमें हिरासत में लिए गए व्यक्ति को किसी भी भारतीय सीमा के पार निर्वासित करने या वापस भेजने  पर रोक लगाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

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