लक्ष्मी नारायण को पूजने व सेवा करने पर भगवान की कृपा स्वतः ही होती है : भारद्वाज

by Carbonmedia
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महेंद्रगढ़ | गांव खातोदड़ा में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिन कथा वाचक पंडित कुलदीप भारद्वाज ने भगवान की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठतम लीला रास लीला का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि रास तो जीव का शिव के मिलन की कथा है। यह काम को बढ़ाने की नहीं काम पर विजय प्राप्त करने की कथा है। इस कथा में कामदेव ने भगवान पर खुले मैदान में अपने पूर्व सामर्थ्य के साथ आक्रमण किया, लेकिन वह भगवान को पराजित नहीं कर पाया, उसे ही परास्त होना पड़ा है। रास लीला में जीव का शंका करना या काम को देखना ही पाप है। गोपी गीत पर व्यास ने कहा जब तब जीव में अभिमान आता है भगवान उनसे दूर हो जाता है, लेकिन जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते हैं, उसे दर्शन देते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मणी के साथ संपन्न हुआ, लेकिन रुक्मणी को श्रीकृष्ण द्वारा हरण कर विवाह किया गया। इस कथा में समझाया गया कि रुक्मणी स्वयं साक्षात लक्ष्मी हैं और वह नारायण से दूर रह ही नहीं सकतीं। यदि जीव अपने धन अर्थात लक्ष्मी को भगवान के काम में लगाए तो ठीक नहीं तो फिर वह धन चोरी द्वारा, बीमारी द्वारा या अन्य मार्ग से हरण हो ही जाता है। धन को परमार्थ में लगाना चाहिए और जब कोई लक्ष्मी नारायण को पूजता है या उनकी सेवा करता है तो उन्हें भगवान की कृपा स्वत ही प्राप्त हो जाती है।

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