वाराणसी में चाची की कचौड़ी और पहलवान की लस्सी की दुकान पर एक्शन, बुलडोजर से हुई ध्वस्त

by Carbonmedia
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UP News: वाराणसी अपने खानपान के लिए पूरे विश्व में मशहूर है. खासतौर पर यहां की मिठाइयां कचौड़ी लस्सी और दूध से बने हुए आइटम लोग खूब चाव से खाना पसंद करते हैं. इसी बीच वाराणसी के एक बुलडोजर कार्रवाई की चर्चा सुर्खियों में है. दरअसल 17 जून की रात्रि को PWD की तरफ से सड़क चौड़ीकरण के लिए लंका क्षेत्र के तकरीबन 30 से अधिक दुकानों पर बुलडोजर कार्रवाई की गई. इन दुकानों में मशहूर पहलवान लस्सी और चाची की कचौड़ी की दुकान भी शामिल रहा. इससे पहले इन्हें जिला प्रशासन की तरफ से नोटिस देकर अवगत कराया गया था. बुलडोजर कार्रवाई के बाद लोगों में इस बात की चर्चा हैं की अब बनारस की मशहूर पहलवान लस्सी और चाची की कचौड़ी खाने को नहीं मिलेगी.
वाराणसी के लंका स्थित पहलवान लस्सी दुकान की ध्वस्तिकरण कार्रवाई के बाद मौके पर मौजूद दुकानदार बृजेश यादव ने एबीपी न्यूज से बातचीत के दौरान कहा कि यह दुकान लगभग 100 साल से यहां पर थी. जो भी प्रशासनिक  कार्रवाई हुई है वह नियमों के अनुसार हुई है, इसमें कोई भी कुछ नहीं कर सकता. हमने प्रशासन से समय मांगा था, उन्होंने दो-चार दिन का समय दिया और इस अवधि में हमने दुकान खाली कर दिया.
वहीं जब उनसे आगे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि आधी उमर निकल गई, आधी उम्र बची है. जो जानते हैं वही कार्य कर पाएंगे. किसी का हाथ पैर जोड़कर हिसाब किताब बनाएंगे. सब कुछ जल्दी ठीक हो जाए यही आशा करते हैं. इस कार्रवाई के बाद आपको कितनी तकलीफ हो रही है इस पर जवाब देते हुए कहा कि हम जितना इसके बारे में सोचेंगे उतना उदास होंगे, हमारा मानना है कि हमें आगे बढ़ना चाहिए. याद करने और रोने से कोई लाभ हो जाए तो बताइए.
विकास और जाम से निजात के लिए चौड़ीकरण जरूरी 
बुलडोजर कार्रवाई के बाद सोशल मीडिया से लेकर बनारस के लंका चौराहे तक लोगों के बीच चर्चाओं का दौर तेज रहा. जहां एक तरफ कुछ लोग इन पुरानी दुकानों के स्वाद और ठहाकों को याद कर रहे थे. वहीं दूसरी तरफ एक पक्ष का यह भी कहना था कि इस क्षेत्र में भीषण जाम की स्थिति रहती है और इस जाम से निजात के लिए चौड़ीकरण अभियान आवश्यक था. वहीं लंका के इस लस्सी और कचौड़ी की दुकानों की बात कर लें तो राजनीति फिल्म और कला क्षेत्र से जुड़े हुए दिग्गज यहां पर पहुंचकर इन लजीज खानपान का स्वाद लेते भी नजर आ चुके हैं. हालांकि अब बनारसीपन का एहसास कराने वाली यह पुराने दुकान लोगों को उस जगह पर नहीं देखने को मिलेंगे.

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