शिअद को मुद्दा .. मजीठिया पोल खोलते थे, इसलिए कार्रवाई

by Carbonmedia
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अकाली दल को मुद्दा मिलेगा कि सरकार बदले की कार्रवाई कर रही है। क्योंकि मजीठिया बार–बार सरकारी की नाकामियों से लेकर मंत्रियों पर हमले कर रहे थे। अकाली दल यह कह कर समर्थन जुटाने का प्रयास करेगा कि बिक्रम की आवाज दबाने के​ लिए यह कार्रवाई की गई है। इस मुद्दे को लेकर अकाली दल एकजुट हो सकता है। . दिसंबर 2013 : जगदीश भोला ने ड्रग्स रैकेट में मजीठिया का नाम लिया। . 20 दिसंबर 2021 : कांग्रेस सरकार में मोहाली क्राइम ब्रांच ने मजीठिया पर एनडीपीएस की एफआईआर की। . 24 फरवरी 2022: मजीठिया को पंजाब पुलिस ने गिरफ्तार किया। . 10 अगस्त 2022: हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत दी। . 17–18 मार्च 2025: ड्रग केस की एसआईटी के सामने पेश हुए। . 25 अप्रैल 2025 : सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार की जमानत रद्द करने की याचिका खारिज की। . 19 जून 2025: पंजाब के मंत्री रवजोत सिंह ने मजीठिया के खिलाफ तस्वीरें शेयर करने पर कंप्लेंट दी। अमृतसर। नशे के विरुद्ध मुहिम के तहत बिक्रम सिंह मजीठिया को पकड़ कर सरकार ने अकाली दल को माझा में नेतृत्वविहीन स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। बीते साल विरसा सिंह वल्टोहा के इस्तीफे के बाद माझा में बिक्रम सिंह मजीठिया ही अकाली दल के सर्वेसर्वा रह गए थे। मगर अब उनकी गिरफ्तारी ने वर्करों को दिशाविहीन कर दिया है। क्योंकि माझा में शिअद की राजनीति बिक्रम से ही चलती है। यह स्थिति 1966 में पंजाबी सूबा बनने के बाद पहली बनी है। इससे पहले में माझा में अकाली दल के पास एक से ज्यादा प्रभावशाली नेता रहे हैं। शुरुआत में जत्थेदार मोहन सिंह तुड़ जो अकाली दल के अध्यक्ष रहे। वह एमपी भी रहे। 10 साल तक अध्यक्ष भी रहे। इसके बाद प्रेम सिंह लालपुरा एसजीपीसी के अध्यक्ष रहने के साथ ही उन्होंने एमपी का चुनाव भी जीता था। मेजर सिंह ऊबोपुर, सुरिंदर सिंह कैरों भी माझा के कद्दावर अकाली नेता थे। फिर प्रकाश सिंह बादल के समय माझा में अकाली दल के एक से ज्यादा जरनैल थे। इनमें रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, डॉ. रतन सिंह अजनाला और आदेश प्रताप सिंह कैरों शामिल रहे। फिर बिक्रम मजीठिया माझा के जरनैल बने। विरसा सिंह वल्टोहा ने शिअद में अपना वर्चस्व स्थापित किया, मगर अब आदेश प्रताप सिंह कैरों, रत्न सिंह अजनाला और विरसा सिंह वल्टोहा को पार्टी से बाहर हैं। वहीं ब्रह्मपुरा अब इस दुनिया में नहीं। अब बिक्रम भी कोर्ट कचहरी के चक्कर में फंस गए हैं। ऐसे में अगर मजीठिया को जल्द जमानत नहीं मिलती तो माझा में अकाली दल और कमजोर होगा। दूसरी तरफ अगर जल्द जमानत मिल जाती है तो शिअद सरकार पर बदले की कार्रवाई का आरोप लगा घेर सकती है। जो कि पार्टी को मजबूत करने मदद हो सकता है।

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