UP News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोहर्रम के मौके पर संभल जिले में बड़े ताजिए के आयोजन को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. कोर्ट ने याचिका को केवल एक काल्पनिक आशंका करार देते हुए इसमें हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और याचिका को निस्तारित कर दिया.
यह आदेश न्यायमूर्ति एम.के. गुप्ता और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की खंडपीठ ने याची आफताब हुसैन और एक अन्य द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया. याचिका में कहा गया था कि याची को इस वर्ष 6 जुलाई को मोहर्रम के अवसर पर 54 फीट लंबा और 15 फीट चौड़ा ताजिया निकालने की अनुमति नहीं दी जा रही है, जबकि विगत वर्ष वह इसी तरह का ताजिया निकाल चुका है.
कोर्ट ने माना नहीं है कोई लिखित रोकसुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याची द्वारा दी गई दलीलों में ऐसा कोई पुख्ता आधार नहीं है जिससे यह माना जा सके कि प्रशासन ने ताजिया निकालने पर किसी प्रकार की रोक लगाई है. कोर्ट ने इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि याची ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि पुलिस अथवा प्रशासन की ओर से कोई लिखित आदेश पारित नहीं किया गया है, जिसमें इस वर्ष ताजिया निकालने से स्पष्ट रूप से रोका गया हो.
याची द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों में केवल कोतवाली थाना क्षेत्र की ओर से जारी 22 जून 2025 की नोटिस का उल्लेख था, जिसमें यह कहा गया था कि मोहर्रम के अवसर पर जुलूस निकालते समय ऐसा कोई भी कार्य न किया जाए जिससे शांति-व्यवस्था या कानून व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े. इसमें ताजिया निकालने पर कोई प्रत्यक्ष प्रतिबंध नहीं लगाया गया था.
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कोर्ट ने दिया आवेदन की सलाहकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याची यदि इस वर्ष भी ताजिया निकालना चाहता है तो वह संबंधित सक्षम अधिकारी के समक्ष पूर्व वर्षों की भांति विधिवत अनुमति हेतु आवेदन कर सकता है. इस प्रक्रिया में प्रशासन यथोचित निर्णय ले सकता है. कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह केवल अनुमानों और आशंकाओं के आधार पर हस्तक्षेप नहीं कर सकता.
काल्पनिक आशंका पर याचिका दाखिल करना अव्यवहारिक – कोर्टकोर्ट ने कहा कि न्यायालय का समय और संसाधन वास्तविक, तर्कसंगत और तथ्यों पर आधारित मामलों में ही लगाया जाना चाहिए. बिना किसी लिखित या ठोस निषेध के सिर्फ आशंका के आधार पर याचिका दाखिल करना न्याय की प्रक्रिया के दुरुपयोग के समान है. ऐसे मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप की कोई ठोस आवश्यकता नहीं बनती.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट संदेश गया है कि धार्मिक या सामाजिक आयोजनों को लेकर यदि कोई प्रशासनिक प्रतिबंध न हो, तो सिर्फ आशंका के आधार पर न्यायालय का दरवाजा खटखटाना अनुचित है. साथ ही, कोर्ट ने यह रास्ता भी खोल दिया कि याची विधिसम्मत तरीके से अनुमति लेकर आयोजन कर सकता है, जिससे संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी सुरक्षित रहे और कानून-व्यवस्था भी बनी रहे.
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