सनी देओल को फिल्म में देखकर गोविंदा समझ बैठे:18 साल तक फिल्में देखने पर पाबंदी थी, ‘भूल चूक माफ’ के लेखक की दिलचस्प कहानी

by Carbonmedia
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हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘भूल चूक माफ’ को खूब पसंद किया जा रहा है। इस फिल्म की कहानी हैदर रिजवी ने फिल्म के डायरेक्टर करण शर्मा के साथ मिलकर लिखी है। आईटी सेक्टर में जॉब कर चुके हैदर रिजवी को पहले फिल्मों के बारे में कितनी जानकारी थी, इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने सनी देओल की फिल्म ‘योद्धा’ देखकर उन्हें गोविंदा समझ बैठे। हाल ही में हैदर रिजवी ने दैनिक भास्कर से बातचीत की। पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ खास अंश .. फिल्म ‘भूल चूक माफ’ का आइडिया किसका था? यह आइडिया तो फिल्म के डायरेक्टर करण शर्मा का था। उन्होंने जब मुझसे फिल्म का फिल्म का आइडिया शेयर किया था। तो मुझे बहुत दिलचस्प लगा। यह फिल्म टाइम लूप पर है। दुनिया भर में टाइम लूप पर बहुत सारी फिल्में बनी हैं। बॉलीवुड में भी 2-3 फिल्में बनी हैं, लेकिन कामयाब नहीं हो पाई। हमारे लिए चुनौती थी कि कहानी को ऐसे पेश किया जाए कि दर्शकों को अजीब ना लगे। 13 दिन तक हमने मिलकर कहानी की फाइनल ड्रॉप तैयार की, और 15वें दिन कहानी लेकर दिनेश विजन के सामने थे। कहानी का बैकड्रॉप बनारस ही क्यों चुना? करण ने कहानी का बैकड्रॉप बनारस चुनने को कहा था, लेकिन जब मैं बनारस का नाम सुनता हूं तो बहुत ज्यादा उत्साहित हो जाता हूं। हमारा गांव बनारस के 100 किलोमीटर के ही आस पास है। वहां कोई बीमार होता था तो बीएचयू ही लेकर आते थे। बनारस को बचपन से लेकर जवानी तक देखते आए हैं। बनारस का ह्यूमर ऐसा है कि आपस में दो लोगों को झगड़ते देखकर हंसी ही आएगी। वहां की बैकड्रॉप पर डायलॉग लिखने के लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती है। बनारसी डायलॉग लिखते ही अपने आप ह्यूमर आ जाता है। इसलिए मेरी भी दिलचस्पी कहानी को बनारस में लाने की हो गई। आपने फिल्म की कहानी करण शर्मा के साथ लिखी हैं, कभी स्क्रिप्ट पर कोई टकराव तो नहीं हुआ? हम दोस्त पहले है, इसलिए स्क्रिप्ट पर कोई टकराव नहीं हुआ। इंडस्ट्री में लेखक और निर्देशक अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। निर्देशक को ‘कैप्टन ऑफ द शिप’ कहा जाता है, और हमने उसी तालमेल के साथ काम किया। एक बार जब स्क्रिप्ट करन के पास पहुंच गईं तो हमने सब उनके ऊपर छोड़ दिया था। फिल्म की कहानी को लेकर राजकुमार राव का कुछ सुझाव था? दिनेश विजन को कहानी सुनाने से लेकर फाइनल स्क्रिप्ट मेल करने तक किसी ने कुछ भी बदलाव नहीं करवाए। हालांकि ऐसा बहुत कम होता है। जब पहली बार राजकुमार राव को स्क्रिप्ट सुनाने गया था तब थोड़ा नर्वस था। स्क्रिप्ट सुनने के बाद राजकुमार पूरी तरह से करेक्टर में घुस गए थे। उन्होंने रंजन बनाकर ऐसा डायलॉग बोला, जिसके बारे में मैंने भी नहीं सोचा था। ‘भूल चूक माफ’ से पहले की जर्नी कैसी रही? मैंने गुरुग्राम और दिल्ली में आईटी सेक्टर में जॉब की। 2011 में पापा को बताया कि अब जॉब छोड़ रहा हूं। क्या करूंगा यह मत पूछना। सोच लिया था कि राइटर ही बनना है, लेकिन किस फील्ड में राइटिंग करनी है, पता नहीं था। उस समय फिल्मों के बारे में नहीं सोचा था। फिल्मों का शौक फिर कब लगा? 18 साल तक फिल्में देखने की अनुमति हमारे घर में नहीं थी। इंजीनियरिंग के दौरान पहली फिल्म ‘योद्धा’ देखी थी। सनी देओल को गोविंदा समझ रहा था। इससे आप समझ सकते है कि फिल्मों की कितनी नॉलेज रही होगी। जब फिल्में देखने लगा तो फिल्मों का ऐसा चस्का लगा कि कई बार तो तीन शो लगातार देखे। वहीं से राइटिंग की तरफ मेरा झुकाव होता चला गया। मुंबई कब आए? कोविड से पहले मुंबई आ गया था। लाफ्टर चैलेंज वालों को मेरे बारे में पता चला कि मेरा ह्यूमर अच्छा है। उन्होंने मुझसे संपर्क किया और वह शो मैंने लिखी। उसके लिए मुझे बहुत अच्छे पैसे भी मिले। मेरा कभी ऐसा स्ट्रगल नहीं रहा कि हवाई चप्पल पहनकर मुंबई आ गया। दिल्ली से अपनी कार ड्राइव करके आया था। 6 महीने लाफ्टर चैलेंज में निकल गए। आपके ह्यूमर वाला अंदाज कैसे पता चला लाफ्टर चैलेंज वालों को? 92.7 बिग एफएम पर मेरे लिखे ह्यूमर के पंचेज आते थे। उसके सारे नेशनल शोज मैं डिजाइन करता था। रेडियो पर दिन भर कुछ ना कुछ आता रहता था। वहीं से किसी ने लाफ्टर चैलेंज वालों को बताया होगा। खैर, मुंबई आने के बाद सबसे बड़ा योगदान अनुभव सिन्हा और सुभाष कपूर का मिला। इनको दिल्ली से ही जानता था। अनुभव सिन्हा उस समय ‘अभी तो पार्टी शुरू हुई है’ बना रहा थे। उनके साथ जुड़ा और फिल्म को अपने सामने बनते देखा। वहां से मुझे फिल्म लेखन की बारीकियां समझ में आई। फिर जब सुभाष कपूर के साथ बैठा तो उन्होंने मुझे कमर्शियल राइटिंग करनी सिखाई।

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