सलीम खान ने दोस्त का 90 लाख का कर्ज चुकाया:जावेद अख्तर ने दोस्त पर बेटे का नाम रखा फहरान, बताया क्या हैं दोस्ती के मायने

by Carbonmedia
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सलीम-जावेद की राइटर जोड़ी भले ही सालों पहले टूट चुकी है, लेकिन रिश्तों और दोस्ती के मायने अब भी दोनों के लिए लगभग एक जैसे हैं। फ्रैंडशिप डे के खास मौके पर दोस्ती पर जय-वीरू जैसे किरदार रचने वाले दिग्गज पटकथा लेखक सलीम-जावेद को सालों बाद दैनिक भास्कर में एक साथ पढ़िए- सच्ची दोस्ती की पहचान तब होती है जब दोस्त का दर्द आपको अपना दर्द लगे- सलीम खान सलीम खान ने भास्कर रिपोर्टर अमित कर्ण को दिए इंटरव्यू में दोस्ती पर कहा है, ‘मेरे ख्याल से दोस्ती महज एक रिश्ता नहीं, बल्कि गहरा भावनात्मक बंधन है यह सिर्फ शब्दों का खेल नहीं है कि ‘आपकी तकलीफ, मेरी तकलीफ’, बल्कि यह ऐसी गहरी अनुभूति है, जहां दोस्त की परेशानी अंदर तक छू जाए। अगर आप दोस्त के दुख को महसूस नहीं कर पा रहे हैं, तो शायद वो दोस्ती उतनी गहरी नहीं है, जितनी होनी चाहिए।’ ‘मेरे एक दोस्त ने कड़ी मेहनत से पैसा जोड़ा और मकान बनाया। वो फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन का भी काम करते थे। दोस्ती में बड़ा यकीन करते थे। इंडस्ट्री के ही चंद और लोगों पर उन्हें बड़ा यकीन था कि किसी मुसीबत में उनके साथ खड़े रहेंगे। हालांकि मुझे भरोसा कम था। फिर उन्हें काफी नुकसान हो गया। नौबत आई कि उन्हें घर तक गिरवी रखना पड़ा।’ ‘उस जमाने में वह रकम 90 लाख रुपए थी। एक तय तारीख तक अगर पैसा नहीं चुकाया जाता, तो आशियाना खोना पड़ता। उन्होंने अपने इंडस्ट्री के दोस्तों से मदद मांगी। उन्होंने 10-15 ऐसे दोस्तों के नाम गिनाए, जिनसे उन्हें उम्मीद थी। कुछ ने 10 तो कुछ ने 15 लाख रु. देने का वादा किया, लेकिन मैं व्यक्तिगत अनुभव से जानता था कि लोग पीछे हट जाते हैं। मैंने बिना किसी को बताए अपनी कमाई के एक हिस्से से पैसे जमा करने शुरू कर दिए। 90 लाख रु. जुटा लिए। मैंने अपने मैनेजर के जरिए 90 लाख रु. का चेक उन्हें भिजवाया। चेक देखकर वो हैरान रह गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हुआ। मैं खुश हुआ कि उनका मकान बच गया। यही दोस्ती है। क्या दोस्त के दुख में आप शरीक हैं? या सिर्फ उसकी खुशी में शामिल हैं?’

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