Uttarakhand News: उत्तराखंड के चमोली जिले का सबसे पिछड़ा गांव सरकोट आज विकास की नई गाथा लिख रहा है. ये सब संभव हो पाया मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की पहल से, जिसने इस गांव में फिर लोगों को बसाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए मशरूम की खेती और बागवानी का सहारा दिया. कभी पलायान से सुनसान गांव आज गुलजार है और चहल-पहल से भर चुका है.
गढ़वाल हिमालय की गोद में बसा एक छोटा-सा गांव सरकोट. अब उत्तराखंड के ग्रामीण विकास की नई मिसाल बनकर उभर रहा है. कभी यही गांव पलायन की पीड़ा और खामोशी से जूझ रहा था, लेकिन आज यही गांव उम्मीद, प्रयास और बदलाव की कहानी कह रहा है, और इस बदलाव की कहानी की शुरुआत हुई मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की एक पहल से.
पुनरोद्धार योजना में चुना गया
सरकोट को मुख्यमंत्री ग्रामीण पुनरोद्धार योजना के अंतर्गत चुना गया. आमतौर पर ऐसी योजनाएं केवल कागज़ों तक सीमित रह जाती हैं, लेकिन सरकोट के मामले में स्थिति अलग रही. यहां योजनाओं ने ज़मीन पर आकार लिया और सरकारी घोषणाएं सिर्फ़ भाषणों तक सीमित नहीं रहीं. यहां हकीकत में योजनाओं को जमीन पर उतारा गया. खुद सीएम धामी ने इस गांव के विकास को अपनी निगरानी में जमीन तक पहुंचने में पहल की.
सरकोट गांव की पहचान पहले वीरानी और खाली होते घरों से होती थी. गांव के युवाओं ने शहरों की ओर रुख किया था और बुज़ुर्ग बंद दरवाज़ों के साए में अकेले रह गए, लेकिन अब वही गांव सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ रहा है. धीरे धीरे यहीं गांव पहाड़ के लिए विकास का मॉडल बनकर सामने आ रहा है.
मुख्यमंत्री धामी की पहल के बाद सबसे पहले गांव की सड़कों की मरम्मत हुई. बिजली-पानी की व्यवस्था दुरुस्त की गई और सरकारी अधिकारी केवल निरीक्षण के लिए नहीं बल्कि स्थानीय लोगों की बात सुनने के लिए गांव में पहुंचने लगे. धीरे धीरे विकास की नई किरन इस गांव तक पहुंचने लगी. आज इस गांव को विकास का मॉडल माना जा रहा है.
मशरूम की खेती और बागवानी ने बदला
यहां बता दें कि इस गांव के परिवर्तन की सबसे अहम कड़ी रही मशरूम की खेती गांव में युवाओं और महिलाओं को आधुनिक तरीके से मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया. शुरुआत में कुछ ट्रे में उपज उगाई गई, लेकिन धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ता गया.आज सरकोट के मशरूम गैरसैंण के बाजारों तक पहुंच रहे हैं और गांव की अर्थव्यवस्था को सुधार रहे हैं.
कई युवा गांव लौटे और उन्होंने इस बदलाओं को अपनी आंखों से दिखाया. स्थानीय युवक दीपक ने बताया कि ये केवल मशरूम की खेती नहीं है. यह यहीं रहकर भविष्य बनाने की शुरुआत है. अब हमें बाहर नहीं जाना पड़ता, क्योंकि अब गांव में काम है इस लिए अब पलायन का सवाल ही नहीं होता.
यहां मशरूम ही नहीं, गांव के लोगों ने फलदार पौधों की बागवानी की दिशा में भी कदम बढ़ाया है. सेब, बेर, आड़ू जैसे फलों के पेड़ अब छतों और खाली पड़ी ज़मीन पर लगाए जा रहे हैं. यह पहाड़ की मिट्टी में बोए गए नए सपनों के बीज हैं जो धीरे धीरे बढ़ते जा रहे है और एक दिन यही सपने फलों के रूप में पूरे होंगे.
राजनितिक इच्छाशक्ति ने बदला
वहीं कुछ लोगों का मानना है कि योजनाओं से कुछ नहीं होता, अगर राजनीतिक इच्छा शक्ति और कुछ करने की सोच हमारे नेताओं में न हो. पुष्कर सिंह धामी ने हमे उम्मीद दिलाई है ओर इस उम्मीद से ही इस गांव में बड़ा बदलाव आया है.
यह बात बहुत हद तक सही भी है. अक्सर योजनाएं कागज़ पर बनती हैं और ज़मीन तक नहीं पहुँचतीं, लेकिन सरकोट में बदलाव की शुरुआत हो चुकी है और अब यह ज़रूरी है कि सिस्टम उस रफ्तार को बनाए रखे.
सरकोट जो कभी पलायन और चुप्पी की मिसाल बन गया था, आज उत्तराखंड के ग्रामीण विकास के लिए एक प्रोटोटाइप बनकर उभर रहा है. गांव लौटे युवाओं की आंखों में चमकती उम्मीद में है.सरकोट ने दिखाया है कि अगर इच्छाशक्ति हो और योजनाएं सही तरीके से लागू हों, तो पहाड़ का कोई भी गाँव अपनी किस्मत खुद बदल सकता है.
उत्तराखंड की हरियाली में सरकोट अब सिर्फ़ एक गांव नहीं है यह एक संदेश है पहाड़ के तमाम गांवों को ज़िंदा रखने के लिए बस थोड़ी सी कोशिश, थोड़ी सी नीति, और बहुत सारी साझेदारी आप की किस्मत बदल सकती है और यहीं करके दिखाया है उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने.
सीएम धामी ने बदली सरकोट गांव की तस्वीर, मशरूम और फलों के लिए देश-दुनिया में नाम
2