हिसार जिले के हांसी में प्रशासन द्वारा बेसहारा पशु मुक्त शहर बनाने का दावा सिर्फ कागजों तक सीमित रह गया है, वास्तविकता इसके विपरीत है। प्रशासन की निर्धारित दूसरी डेटलाइन भी बीत चुकी है। हालात अब भी वैसे ही हैं। सड़कें आज भी गोवंश के आवागमन से जाम हैं। अधिकारी फिर से डेटलाइन बढ़ाने की तैयारी में हैं। गोवंश पकड़ने का टेंडर हुआ था जारी नगर परिषद ने 2500 बेसहारा पशुओं को पकड़ने के लिए 1800 रुपए प्रति पशु की दर से टेंडर जारी किया था, लेकिन अब तक आधे पशु भी काबू में नहीं आए हैं। इस गति से अगले छह महीनों में भी यह अभियान पूरा होता नहीं दिखाई दे रहा है। सैनिटरी इंस्पेक्टर संजय सिंह के अनुसार हर रोज औसतन 30 पशु पकड़े जाते हैं। पिछले एक सप्ताह से बारिश के कारण यह कार्य रुका हुआ है। पहले भी दो बार बढ़ चुकी डेटलाइन प्रशासन पहले भी दो बार डेटलाइन बढ़ा चुका है। अब दूसरी डेटलाइन के गुजरने को भी दस दिन हो चुके हैं, लेकिन कोई ठोस प्रगति नजर नहीं आ रही है। वार्ड पांच से पार्षद और कांग्रेस नेता नितेश शर्मा ने नगर परिषद अध्यक्ष और अधिकारियों पर आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि इस पूरे प्रकरण में भ्रष्टाचार की गंध आती है। उनका आरोप है कि 10 पशु पकड़कर 20 पशुओं का बिल बनाया जाता है। बेकार पशुओं को छोड़ दिया जाता है-पार्षद साथ ही पशु मालिकों से मिलीभगत के चलते दुधारू पशुओं को नहीं पकड़ा जाता। बेकार पशुओं को पकड़कर छोड़ दिया जाता है। नितेश शर्मा ने कहा कि अगर भगवान ना करें कि अध्यक्ष या अधिकारियों के साथ आवारा पशुओं से कोई हादसा होता है, तो इन्हें समझ आएगी कि यह कितना गंभीर मुद्दा है। कई लोग आवारा पशुओं के हमले का शिकार हो चुके हैं। ऐसे में नगर परिषद अध्यक्ष का चुप रहना पूरे घोटाले को मौन स्वीकृति देता है। निगरानी, जवाबदेही और समाधान जरूरी केवल टेंडर जारी करना ही काफी नहीं होता, उसे अमल में कैसे लाया जाए, इस पर सतत निगरानी और जवाबदेही तय होनी चाहिए। साथ ही स्थानीय निकायों को मौसमी बाधाओं का ऑप्शनल समाधान भी तैयार रखना चाहिए। हांसी का आवारा पशु मुक्त शहर बनाने का सपना फिलहाल आवारा ही घूम रहा है। अब देखना होगा कि प्रशासन तीसरी डेडलाइन तय करता है या फिर कार्य में ठोस बदलाव लाकर वादे को जमीन पर उतारने का साहस दिखाता है।
हांसी में बेसहारा गोवंश मुक्त शहर का सपना अधूरा:प्रशासन की दूसरी डेटलाइन भी निकली, टेंडर और टैगिंग फेल
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