हिमाचल हाईकोर्ट ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित करने की नीति को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए कि वह सरकारी भूमि पर अतिक्रमण को कानून के अनुसार हटाना सुनिश्चित करें। अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध उपयुक्त कार्यवाही शुरू करने के बाद ऐसी कार्यवाही को यथासंभव शीघ्रता से 28 फरवरी, 2026 को या उससे पहले, उसके तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाएं। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंदर नेगी की खंडपीठ ने पूनम गुप्ता द्वारा दायर जनहित याचिका को स्वीकारते हुए यह आदेश जारी किए। कोर्ट ने फैसले में कहा कि राज्य सरकार का कर्तव्य सुशासन करना है। सुशासन में अतिक्रमण से निपटने वाले मौजूदा क़ानूनों का कार्यान्वयन शामिल है। ऐसे क़ानून के प्रावधानों को लागू कराने में सरकार की विफलता, शासन में विफलता के समान है। कोर्ट ने अवैध को वैध करने के लिए बनाई जाने वाली नीतियों पर कहा कि यह बेईमानी और कानून के उल्लंघन को बढ़ावा देती है। कोर्ट ने सरकार द्वारा अतिक्रमण कर कानून का उल्लंघन करने वालों को माफ करने की नीति को मनमाना ठहराते हुए कहा कि असमान लोगों के साथ समान व्यवहार करके, राज्य सरकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन कर रहा है। कोर्ट बोला- न्यायालय मूक दर्शक नहीं बन सकता कोर्ट ने कहा, ऐसे में न्यायालय मूकदर्शक नहीं बन सकता और यह सुनिश्चित करने के लिए अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन करने के लिए बाध्य है कि सत्ता के गलियारों में बेईमान तत्वों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति का दुरुपयोग न हो और सार्वजनिक भूमि हड़पने के कृत्यों की उचित जाँच की जाए और उचित उपचारात्मक कार्रवाई की जाए। भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए असंवैधानिक कोर्ट ने कहा, हिमाचल प्रदेश भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए स्पष्ट रूप से मनमानी और असंवैधानिक है और इसके परिणामस्वरूप, हिमाचल प्रदेश भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए और उसके अंतर्गत बनाए गए नियम (धारा 163-ए) रद्द किए जाते हैं। इस धारा के तहत सरकार ने अपने पास अतिक्रमणों को नियमित करने की शक्तियां प्राप्त कर ली थी जबकि मूल रूप से बनाए गए कानून के तहत ऐसा नहीं किया जा सकता था। कोर्ट ने आदेश दिए कि हिमाचल प्रदेश राज्य में सरकारी भूमि पर किए गए अतिक्रमणों की व्यापकता को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार को “आपराधिक अतिक्रमण” से संबंधित कानून में संशोधन पर विचार करना चाहिए और इसे उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और उड़ीसा राज्यों में किए गए राज्य संशोधनों के अनुरूप लाना चाहिए। मुख्य सचिव को अनुपालना के लिए कहा कोर्ट ने महाधिवक्ता को निर्देश दिया कि वे इस निर्णय की प्रति हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव और सभी संबंधितों को तत्काल अनुपालन हेतु प्रेषित करें,और उन राजस्व अधिकारियों के विरुद्ध कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करने के निर्देश दें जिनके अधिकार क्षेत्र में भूमि पर अतिक्रमण की अनुमति दी गई है। कोर्ट ने पाया कि उन दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जिन्होंने मिलीभगत से पूरे राज्य में इस तरह के अतिक्रमण होने दिए। ऐसा नहीं है कि हजारों अतिक्रमण रातोंरात हो गए। अधिकारी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहे। 2002 में नियमितीकरण नीति के तहत मांगे थे आवेदन उल्लेखनीय है कि राज्य की वर्ष 2002 में जारी नियमितीकरण नीति के तहत सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वालों लोगों से आवेदन मांगे गए थे। इसके तहत 15 अगस्त 2002 तक 1,67,339 आवेदनों में 24,198 एकड़ (1 एकड़ में लगभग 12 बीघा) सरकारी भूमि पर कब्जों के नियमितीकरण की मांग की गई थी। इसके बाद सरकार वर्ष 2017 में भी 5 बीघा तक की सरकारी भूमि पर अतिक्रमणों को नियमित करने के लिए ड्राफ्ट नियम राजपत्र में प्रकाशित कर लाए थे। इन ड्राफ्ट नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सरकार सरकार ने स्पष्ट किया था कि सरकार के समक्ष ऐसे अवैध कब्जों को नियमित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
हाईकोर्ट ने अवैध कब्जे रेगुलर करने वाली नीति निरस्त की:भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए संवैधानिक, सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाने के आदेश
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