हाईकोर्ट ने सरकार को 5 लाख का जुर्माना लगाया:CS की एक्सटेंशन और रेरा अध्यक्ष की नियुक्ति पर फटकार, लुका-छुपी का खेल खेल रही सरकार

by Carbonmedia
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हिमाचल हाईकोर्ट ने चीफ सेक्रेटरी प्रबोध सक्सेना के सेवा विस्तार मामले में दायर जनहित याचिका (PIL) का जवाब न देने पर राज्य सरकार पर 5 लाख रुपए की पैनल्टी लगाई है। अदालत ने यह राशि 25 जून तक हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पास जमा करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने एक अन्य मामले में हिमाचल प्रदेश रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण (रेरा) के अध्यक्ष और सदस्य के पद को भी 25 जून तक अधिसूचित करने के आदेश दिए। कोर्ट ने कहा, सरकार लोगों को न्याय न मिले, इसलिए लुकाछिपी का खेल खेल रही है। कभी रेरा के मुख्यालय को धर्मशाला तब्दील करने के बहाने, कभी नियुक्ति का मामला विचाराधीन होने की बात करते हुए रेरा अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति नहीं की जा रही। कोर्ट ने खेद जताते हुए कहा, 9 मई को मामले पर प्रारंभिक सुनवाई के पश्चात राज्य सरकार से पूछा गया था कि रेरा के अध्यक्ष और सदस्यों के पद के संबंध में नियुक्ति अधिसूचित की गई है या नहीं। आज सुनवाई के दौरान सरकार द्वारा कोर्ट को बताया कि एक सदस्य की नियुक्ति की जा चुकी है, जबकि अध्यक्ष और एक अन्य सदस्य की नियुक्ति शीघ्र ही कर दी जाएगी। चीफ सेक्रेटरी की अंतरिम राहत पर 25 को विचार चीफ जस्टिस गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि चीफ सेक्रेटरी के सेवा विस्तार के खिलाफ मांगी गई अंतरिम राहत पर विचार 25 जून को किया जाएगा। अतुल वर्मा ने डाली PIL याचिकाकर्ता अतुल शर्मा ने PIL डालकर मुख्य सचिव के रूप में प्रबोध सक्सेना को 6 महीने का सेवा विस्तार देने वाले 28 मार्च 2025 के आदेश को रद्द करने की मांग की है। प्रार्थी द्वारा कोर्ट के समक्ष रखे तथ्यों के अनुसार 21 अक्तूबर 2019 को विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम राउज एवेन्यू कोर्ट, नई दिल्ली ने प्रबोध सक्सेना के खिलाफ दायर CBI आरोप पत्र का संज्ञान लिया है। सक्सेना पर आपराधिक मुकद्दमा होने के बाद एक्सटेंशन पर सवाल प्रार्थी का कहना है कि 23 जनवरी 2025 को CBI ने पत्र जारी कर इस बात की पुष्टि की है कि प्रबोध सक्सेना के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया है और आपराधिक मुकदमा लंबित है। दागी होने के बावजूद 28 मार्च 2025 को भारत सरकार, कार्मिक मंत्रालय ने प्रबोध सक्सेना को 30 सितंबर 2025 तक मुख्य सचिव के रूप में छह महीने का विस्तार दे दिया। डाउटफुल इंटीग्रिटी वाले अधिकारियों की लिस्ट में नाम नहीं होने पर सवाल प्रार्थी का आरोप है कि आपराधिक मुकदमा लंबित होने के बावजूद, प्रबोध सक्सेना का नाम डाउटफुल इंटीग्रिटी वाले अधिकारियों की लिस्ट में शामिल नहीं किया गया, जो कि संविधान के अनुच्छेद 123 का उल्लंघन है। आरोप है कि प्रबोध सक्सेना को सेवा विस्तार को मंजूरी देते समय केंद्र सरकार के समक्ष पूरी सतर्कता रिपोर्ट नहीं रखी गई थी। नौकरशाहों को एक्सटेंशन के दुरुपयोग पर चिंता जताई प्रार्थी का कहना है कि प्रशासनिक सुधारों पर संसदीय समिति ने भ्रष्टाचार की जांच का सामना कर रहे नौकरशाहों को बचाने के लिए सेवा विस्तार के दुरुपयोग के बारे में चिंता जताई है। यह आरोप लगाया गया है कि मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (वित्त) के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, प्रबोध सक्सेना ने अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग किया। सरकार सेवा विस्तार देने से पहले सीवीसी, राज्य सतर्कता और डीओपीटी के साथ अनिवार्य परामर्श लेने में विफल रही, जिससे डीओपीटी के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ। मामले पर अगली सुनवाई 25 जून को निर्धारित की गई है।

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