सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट जज के खिलाफ सख्त आदेश वाले मामले को दोबारा सुनवाई के लिए लगाया है. मंगलवार (5 अगस्त, 2025) को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का निपटारा कर दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर इसके शुक्रवार (8 अगस्त, 2025) को एक बार फिर सुनवाई के लिए लगने की जानकारी दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे. बी. पारडीवाला और आर. महादेवन की बेंच ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार के बारे में सख्त आदेश दिया था. जजों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से कहा था कि वह जस्टिस प्रशांत कुमार को किसी वरिष्ठ जज के साथ डिवीजन बेंच में बैठाएं. अगर उन्हें कभी सिंगल बेंच में बैठाना जरूरी भी हो, तो कोई आपराधिक मामला न सुनने दें.
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सिविल विवाद में आपराधिक केस दर्ज होने को सही ठहराने वाले जस्टिस प्रशांत कुमार के फैसले से नाराज जजों ने कहा था, “हमने अब तक इससे खराब आदेश नहीं देखा. आदेश देने वाले जज ने न्याय का मजाक बनाया है. कभी-कभी यह सोचना पड़ता है कि ऐसे आदेश कानून की जानकारी के अभाव में दिए जाते हैं या किसी बाहरी कारण से.”
किस मामले में हाई कोर्ट के जज ने सुनाया था फैसला
जिस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई थी, वह दो कंपनियों के बीच का व्यापारिक विवाद था. एक पक्ष ने दूसरे पक्ष की तरफ से भुगतान न मिलने पर कानपुर में आपराधिक केस दर्ज करवा दिया था. दूसरी कंपनी ने आपराधिक केस दर्ज होने को हाई कोर्ट में चुनौती दी. लेकिन जस्टिस प्रशांत कुमार ने उसकी याचिका खारिज कर दी. 5 मई, 2025 को दिए आदेश में उन्होंने कहा कि शिकायतकर्ता एक छोटी कंपनी है. सिविल मुकदमा लंबे समय तक चलता है. इस तरीके से उसे पैसा मिलने में बहुत समय लग जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को दिए निर्देश
हाई कोर्ट के जज के फैसले से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने बिना नोटिस जारी किए उसे रद्द कर दिया. जजों ने मामला वापस हाई कोर्ट भेज दिया और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से कहा गया है कि वह इसे किसी दूसरे जज के पास सुनवाई के लिए लगाएं. साथ ही, जस्टिस प्रशांत कुमार के बारे कहा कि जब तक वह पद पर हैं, उन्हें कभी भी कोई आपराधिक मामला न सुनने दिया जाए.
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज को दिए गए सख्त निर्देश पर SC के कई जजों ने जताई चिंता
बताया जा रहा है कि इस सख्त फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के कई जजों ने चिंता जताई थी. उनका मानना था कि किसी हाई कोर्ट जज के बारे में ऐसा न्यायिक आदेश देना उचित नहीं. हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं. कोई जज किस तरह के मामले सुनेगा, वह एकल बेंच में बैठेगा या किसी और जज के साथ, यह सब तय करना हाई कोर्ट चीफ जस्टिस का विशेषाधिकार है. ऐसे में उन्हें निर्देश जारी करना सही नहीं. शायद यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर मामले को विचार के लिए लगाया है.
यह भी पढ़ेंः तहव्वुर राणा को मिली परिवार से बात करने की इजाजत, पैरवी के लिए निजी वकील रख सकेगा 26/11 आतंकी हमले का मास्टरमाइंड
हाई कोर्ट जज को आपराधिक मुकदमों से हटाने वाले फैसले में SC कर सकता है बदलाव, कल दोबारा होगी सुनवाई
0