हिमाचल प्रदेश में लगातार आपदाओं से हो रहे भारी नुकसान को देखते हुए सरकार निर्माण कार्यों के नियम सख़्त करने के बारे में विचार कर रही है. शहरों के साथ-साथ सरकार अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी सुरक्षा मानकों के तहत मकान बनाने के नियम लागू कर सकती है, ताकि नदी-नालों के किनारे, और बादल फटने सहित भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में बेतरतीबन निर्माण को रोका जा सके.
नगर और ग्राम नियोजन मंत्री राजेश धर्माणी ने बताया कि राज्य सरकार लगातार आ रही आपदाओं से नुकसान को कम करने के लिए तीन-स्तरीय नीति पर काम कर रही है. इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में मकान, पुल और अन्य ढांचों के निर्माण से पहले अनिवार्य रूप से जोखिम आंकलन और तकनीकी जांच करवाना जरूरी होगा.
एक सेफ्टी काउंसिल गठित करने पर विचार
इसको लेकर सरकार एक सेफ्टी काउंसिल गठित करने पर विचार कर रही है, जो भवनों, पुलों और अन्य ढांचों की सुरक्षा, डिजाइन और लोक निर्माण विभाग के मानकों के अनुपालन की प्रमाणिकता देगी.मंत्री ने बताया कि जलवायु परिवर्तन और कार्बन उत्सर्जन भी आपदाओं के बड़े कारण हैं, हालांकि हिमाचल में कार्बन उत्सर्जन अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है.
इसलिए, राज्य को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए उठाए जा रहे कदमों का उचित मुआवजा मिलना चाहिए. धर्माणी ने बताया कि टाउन प्लानिंग एक्ट के तहत निदेशक के अधिकार शहरी निकायों में आयुक्तों और कार्यकारी अधिकारियों को, विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (SADA) में उपायुक्तों और एसडीएम को प्रदान कर दिए गए हैं.
मार्च 2026 तक हिमाचल को “ग्रीन स्टेट” बनाने की घोषणा
धर्माणी ने बताया कि अब यही अधिकार ग्रामीण क्षेत्रों में नियमों के पालन के लिए पंचायत सचिवों को भी दिए जाएंगे. 1,000 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्र वाले प्लॉट पहले से ही टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (TCP) एक्ट के अंतर्गत आते हैं और सभी योजना क्षेत्रों में नियमों का सख्ती से पालन कराया जाएगा.
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मार्च 2026 तक हिमाचल को “ग्रीन स्टेट” बनाने की घोषणा की है, और सरकार को इस लक्ष्य की प्राप्ति का विश्वास है. धर्माणी ने भूकंप के खतरे पर भी गंभीर चिंता जाहिर की, क्योंकि हिमाचल भूकंपीय जोन-4 और 5 में आता है.
अधिकांश भवन भूकंप-रोधी नहीं हैं – धर्माणी
धर्माणी ने बताया कि हिमाचल में अधिकांश भवन भूकंप-रोधी नहीं हैं. ऐसे भवनों में रिट्रोफिटिंग की जरूरत है, क्योंकि भीषण भूकंप से बड़े पैमाने पर जन-धन हानि हो सकती है. उन्होंने भूमि पूलिंग पर जोर देते हुए कहा कि आवासीय, वाणिज्यिक, पर्यावरणीय और सामाजिक योजनाओं के लिए अलग-अलग क्षेत्र चिन्हित होने चाहिए, ताकि अव्यवस्थित निर्माण रोका जा सके.
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने तथा अव्यवस्थित, असुरक्षित निर्माण रोकने के लिए जनता का सहयोग आवश्यक है. हिमाचल प्रदेश में कुल 1,483,280 मकान हैं. यह जानकारी 2011 की जनगणना के अनुसार है. हिमाचल प्रदेश की कुल जनसंख्या 6,864,602 है, जो अब 75 लाख को पार कर गई है, जिसमें 3,481,873 पुरुष और 3,382,729 महिलाएं हैं.
5 हजार से अधिक भूस्खलन की घटनाएं दर्ज
राज्य का कुल क्षेत्रफल 55,673 वर्ग किलोमीटर है. राज्य में 16,807 गांव हैं, जो विभिन्न पर्वत श्रृंखलाओं और घाटियों में फैले हुए हैं. हिमाचल प्रदेश में 45% से अधिक क्षेत्र भूस्खलन, बाढ़ और हिमस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है. वन रिकॉर्ड के अनुसार कुल वन क्षेत्र 37,033 वर्ग किलोमीटर है.
इसमें से 16,376 वर्ग किलोमीटर ऐसा क्षेत्र है जहां पहाड़ी चरागाह वाली वनस्पतियां उपलब्ध हैं. हिमाचल प्रदेश में आठ साल के दौरान (2018 से लेकर अब तक) बादल फटने की 148 घटनाएं हो चुकी हैं. इसके अलावा 294 बार अचानक बाढ़ और 5 हजार से अधिक भूस्खलन की घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं.
हिमाचल में सख्त होंगे निर्माण नियम, आपदाओं से निपटने के लिए सरकार का बड़ा कदम
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