हिसार के संघ कार्यकर्ता श्रीनिवास की आपातकाल की कहानी:बोले-4 माह थाने में रहा, पत्र बांटने पर मारपीट, संविधान की हत्या होते देखी

by Carbonmedia
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हरियाणा के हिसार जिले में वेयर हाउसिंग कॉरपोरेशन के पूर्व चेयरमैन व वरिष्ठ भाजपा नेता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित स्वयंसेवक श्रीनिवास गोयल ने आपातकाल के काले अध्याय को याद करते हुए बताया कि कैसे उस समय उन्होंने संविधान की हत्या होते देखी और स्वयं अत्याचार भी झेले। उन्होंने कहा कि आज भी जब वह उस दौर को याद करते हैं, तो उनकी आत्मा कांप उठती है। पुलिस की नजर से बचते रहे श्रीनिवास गोयल आपातकाल के समय आदमपुर की एक कॉटन फैक्ट्री में पर चेजर के पद पर कार्यरत थे। उस समय संघ के निर्देश पर उन्हें और कस्तूरी लाल को उन परिवारों की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिनके सदस्य आपातकाल में जेल भेज दिए गए थे। वह गुप्त रूप से पुलिस की नजर से बचते हुए इन परिवारों की सहायता में लगे रहे। सरकार के काले कारनामों का खुलासा उन्होंने बताया कि 3 दिसंबर 1975 को तड़के 4 बजे उन्हें उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब वे भगत राम की दुकान पर ‘दर्पण पत्रक’ वितरित कर रहे थे। यह पत्रक संघ द्वारा प्रकाशित था। जिसमें आपातकाल के दौरान सरकार के काले कारनामों का खुलासा किया जाता था। सरकार को डर था कि ऐसे पत्रक जनता को जागरूक कर देंगे और उनके खिलाफ आक्रोश भड़का सकते हैं। गिरफ्तार कर पुलिस ने बेरहमी से पीटा श्रीनिवास गोयल ने बताया कि गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उन्हें बेरहमी से पीटा। थाना प्रभारी मेहता द्वारा की गई पिटाई से उनके मुंह और कानों से खून निकल आया। इसके बावजूद पुलिस ने उनका कोई चालान नहीं किया और बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के उन्हें चार महीनों तक थाने में ही अवैध रूप से रखा गया। प्रचारकों की जानकारी देने का डाला दबाव उन्होंने आगे कहा कि उन पर प्रतिदिन मानसिक और शारीरिक अत्याचार किए जाते रहे और संघ के जिला प्रचारक जगदीश मित्तल व प्रेम गोयल के बारे में जानकारी देने के लिए दबाव डाला जाता रहा, लेकिन उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया। उनका अपराध सिर्फ इतना था कि उन्होंने ‘दर्पण पत्रक’ बांटा, जो जनता को सच्चाई से अवगत कराने का माध्यम था। एसपी के हस्तक्षेप से मिली रिहाई परिवार के लोग भी चार महीनों तक चिंता में रहे और क्षेत्र में श्रीनिवास गोयल के साथ हुई ज्यादती की चर्चाएं थी, लेकिन उस समय कोई भी खुलकर कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता था, क्योंकि बोलने वालों को भी पुलिस उठा लेती थी और उनका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता था। चार महीने बाद, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सतदेव सिंह के हस्तक्षेप से उन्हें रिहाई मिली। आज भी जब याद करते है, रूह कांप उठती है श्रीनिवास गोयल का कहना है कि यह अनुभव आज भी उनकी स्मृतियों में जीवित है और जब भी उस दौर को याद करते हैं, रूह तक कांप उठती है। आज संविधान की बात करने वाले वही लोग हैं, जिन्होंने आपातकाल में उसकी हत्या की थी। उस समय देश एक खुली जेल बन चुका था, आमजन भय में जी रहा था। आज का भारत अलग है, यहां गरीब की आवाज मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक पहुंचती है।

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