133 साल बाद पूर्वजों की दहलीज छूने नीदरलैंड से बलिया आया परिवार, हाथ लगी मायूसी, बताई दर्दनाक दास्तां

by Carbonmedia
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पूर्वजों की यादों से जुड़ी निशानियों को देखने और उनकी चौखट छूने की ख्वाहिश लेकर नीदरलैंड से यहां आये एक परिवार को मायूस होकर लौटना पड़ा. बलिया के बेल्थरा रोड स्थित सीयर गांव से करीब 133 साल पहले अच्छे रोजगार की आस में सूरीनाम गए सुंदर प्रसाद की पांचवीं पीढ़ी की नुमाइंदगी करने वाले जितेंद्र छत्ता अब नीदरलैंड में रहते हैं.
जितेंद्र हाल ही में अपनी पत्नी शारदा रामसुख, बेटे शंकर और बेटी ऐश्वर्या के साथ बेल्थरा रोड स्थित सीयर गांव में अपने परदादा के घर का पता लगाने और उनके स्थानीय रिश्तेदारों से मुलाकात करने की आस लेकर आए थे, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें निराशा हाथ लगी. वे मंगलवार को नीदरलैंड लौट गये.
अपने पूर्वजों की जड़ों को फिर से तलाशने की जितेंद्र की यह कोशिश इस दफा भले ही नाकाम हो गई हो, लेकिन उनकी बेटी ऐश्वर्या को अब भी उम्मीद है कि वह इस काम को जरूर पूरा करेंगी.
यहां से दर्दनाक कहानी की शुरुआत हुई
जितेंद्र ने बताया कि बेल्थरा रोड ही वह जगह है, जहां से उनके पूर्वजों के परदेस जाने की दर्दनाक कहानी की शुरुआत हुई थी.
उन्होंने बताया कि बेल्थरा रोड क्षेत्र के सीयर गांव से वर्ष 1892 में उनके परदादा सुंदर प्रसाद को तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत के कारिंदे बेहतर जीवन के सपने दिखाकर सूरीनाम ले गए थे. उन्होंने कहा कि उस वक्त 35 वर्ष के रहे प्रसाद के साथ उनकी पत्नी अनरुजिया और तीन वर्षीय पुत्र दुःखी बेल्थरा रोड से रेलवे मार्ग से कोलकाता और वहां से पानी के जहाज द्वारा सूरीनाम गये थे.
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जितेंद्र के मुताबिक, ‘सूरीनाम पहुंचने के बाद अंग्रेजों ने उनके परदादा और परदादी से मजदूरी कराई. लगातार शोषण का शिकार हुए सुंदर प्रसाद सात वर्ष बाद ही चल बसे. उनके एक वर्ष बाद पत्नी अनरुजिया ने भी दुनिया छोड़ दी.’
उन्होंने बताया, उनके पुत्र दुखी के बाद उनके बेटे कल्याण छत्ता ने और उसके उपरांत कल्याण के बेटे पृथ्वीराज छत्ता और फिर पृथ्वीराज के बेटे धर्मपाल छत्ता ने वंश को आगे बढ़ाया.’
धर्मपाल छत्ता बाद में नीदरलैंड चले गये
सूरीनाम 1954 से 1975 तक नीदरलैंड साम्राज्य के अंतर्गत एक स्वशासी देश था, लेकिन 1975 में उसे पूरी स्वतंत्रता मिल गई और आज यह एक स्वतंत्र देश है.
जितेंद्र ने बताया कि उनके पिता धर्मपाल छत्ता बाद में नीदरलैंड चले गये और उन्होंने भारत आने के बजाय नीदरलैंड में ही रहना पसंद किया.
जितेंद्र ने कहा कि वह पिछले 30 वर्षों से अपने पूर्वजों की वंशावली को खंगाल रहे थे तथा उनकी ख्वाहिश थी कि वह अपने पूर्वजों की मिट्टी को चूमें और सिर-माथे लगाएं.
उन्होंने कहा, ‘हमारी इस ख्वाहिश को तीन साल पहले मेरे बेटे शंकर ने पंख दिए. शंकर ने पता लगाया कि उसके परदादा बेल्थरा रोड के सीयर गांव के रहने वाले थे.’
जितेंद्र छत्ता ने बताया कि अपने परदादा के मकान को तलाशने और उनके स्थानीय रिश्तेदारों से मुलाकात करने की ख्वाहिश लेकर वह नौ अगस्त को अपनी पत्नी शारदा रामसुख, पुत्री ऐश्वर्या और पुत्र शंकर के साथ दिल्ली पहुंचे. उन्होंने कहा कि वहां से परिवार ने अयोध्या जाकर श्री राम मंदिर का दर्शन किया. इसके बाद वे अपने पूर्वजों की धरती बेल्थरा रोड पहुंचे.
नहीं पता चला पूर्वजों का
जितेंद्र ने बताया कि उन्होंने तीन दिनों तक अपने परदादा सुंदर प्रसाद की दहलीज तलाशने की भरपूर कोशिश की. उन्होंने स्थानीय पुलिस और लोगों से संपर्क किया, साथ ही नगर पंचायत से संबंधित लोगों से बातचीत की और पुराने दस्तावेजों को भी खंगाला, मगर उन्हें अपने परदादा के किसी भी वंशज या पुश्तैनी घर का पता नहीं लगा.
तमाम कोशिशें के बावजूद कोई कामयाबी नहीं मिलने पर जितेंद्र और उनका परिवार बेहद भारी मन से मंगलवार को नीदरलैंड लौट गया. हालांकि जितेंद्र की बेटी ऐश्वर्या ने कहा कि वह फिर भारत आएंगी और अपने पूर्वजों की तलाश का काम जरूर पूरा करेंगी.
बहरहाल, जितेंद्र का हाल कुछ इस तरह बयां किया जा सकता है कि ‘जो चमन खिजाँ से उजड़ गया, मैं उसी की फस्ले-बहार हूँ.’

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