कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष के परिदृश्य में चीन एक ऐसा कारक है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
थरूर ने इस बात पर जोर दिया कि भारत और चीन के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने की कवायद इस संघर्ष से पहले, पिछले कुछ महीनों में अच्छी प्रगति करती प्रतीत हो रही थी. अमेरिका में सर्वदलीय संसदीय दल का नेतृत्व कर रहे थरूर ने कहा, ‘मैं स्पष्ट तरीके से अपनी बात कहूंगा. हम जानते हैं कि चीन का पाकिस्तान में बहुत बड़ा हित है.'
उन्होंने गुरुवार (5 जून, 2025) को यहां भारतीय दूतावास में थिंक टैंक के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के दौरान यह टिप्पणी की. शशि थरूर ने कहा कि ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के तहत सबसे बड़ी एकल परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा है और 81 प्रतिशत पाकिस्तानी रक्षा उपकरण चीन से आए हैं.
उन्होंने कहा, ‘यहां रक्षा शायद गलत शब्द है. कई मायनों में आक्रमण करने के उपकरण (सही शब्द है)….’ थरूर ने कहा, ‘पाकिस्तान के साथ हमारे संघर्ष की स्थिति में चीन को नजरअंदाज करना बिल्कुल असंभव कारक है.
उन्होंने कहा कि जून 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़पों के बाद से चीन और भारत के बीच तनाव के बावजूद चीन के साथ रिश्तों में जमी बर्फ पिछले साल सितंबर में वास्तव में पिघलने लगी थी और यह कवायद इस त्रासदी (भारत-पाकिस्तान संघर्ष) के होने से पहले अच्छी प्रगति कर रही थी.
शशि थरूर ने कहा कि फिर पाकिस्तान के लिए व्यावहारिक समर्थन के मामले में, यहां तक कि सुरक्षा परिषद में भी, ‘हमने एक बहुत अलग चीन देखा.’ उन्होंने कहा, ‘पड़ोस के संदर्भ में हमारे सामने क्या चुनौतियां हैं, इसे लेकर हमें कोई भ्रम नहीं है लेकिन मैं आप सभी को याद दिलाना चाहता हूं कि भारत ने अपने विरोधियों के साथ भी संवाद के माध्यम खुले रखने का रास्ता हमेशा चुना है.'
उन्होंने कहा, ‘हमने विकास, वृद्धि और व्यापार पर ध्यान केंद्रित करने की यथासंभव कोशिश की है. चीन के साथ हमारा व्यापार अब भी रिकॉर्ड स्तर पर है. ऐसा नहीं है कि हम शत्रुता का रुख अपना रहे हैं, लेकिन अन्य मौजूदा स्थितियों के बारे में जागरूक नहीं होना हमारी नासमझी होगी.'
पाकिस्तान वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है. पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ‘जम्मू कश्मीर में आतंकवादी हमले’ पर 25 अप्रैल को एक प्रेस वक्तव्य जारी किया था, जिसमें सदस्यों ने इस हमले की ‘‘अत्यंत कड़े शब्दों में’’ निंदा की थी.
प्रेस वक्तव्य में कहा गया था, ‘सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने आतंकवाद के इस निंदनीय कृत्य के अपराधियों, आयोजकों, वित्तपोषकों औऱ प्रायोजकों को जवाबदेह ठहराने और उन्हें न्याय के कटघरे में लाने की आवश्यकता पर जोर दिया.’ हालांकि, प्रेस वक्तव्य में हमले के लिए जिम्मेदार समूह के रूप में ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ का उल्लेख नहीं किया गया. पाकिस्तान चीन के समर्थन से इसका नाम हटाने में कामयाब हो गया.
भारत और चीन ने पिछले साल अक्टूबर में पूर्वी लद्दाख में अंतिम दो टकराव बिंदुओं देपसांग और डेमचोक से सैन्य बलों को पीछे हटाने के समझौते को अंतिम रूप दिया था. समझौते को अंतिम रूप दिए जाने के कुछ दिनों बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने रूस के कजान में वार्ता की तथा संबंधों को बेहतर बनाने के लिए कई निर्णय लिए.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पिछले साल नवंबर में रियो डी जेनेरियो में जी-20 शिखर सम्मेलन के इतर चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की थी और इस साल फरवरी में जोहनिसबर्ग में दोनों की फिर से मुलाकात हुई थी.
थरूर से ‘काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस’ में बातचीत के दौरान संघर्ष में भारत के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल किए गए चीनी सैन्य उपकरणों के बारे में सवाल किया गया और यह पूछा गया कि क्या इसे लेकर कोई पुनः मूल्यांकन किया गया.
थरूर ने कहा, ‘सच कहूं तो जब लड़ाई जारी थी, तब पुनर्मूल्यांकन किया गया था.’ उन्होंने कहा कि जब भारत ने देखा कि पाकिस्तानी चीनी प्रौद्योगिकी का उपयोग करके क्या करने की कोशिश कर रहे हैं, उदाहरण के लिए तुरंत प्रतिक्रिया देने वाले और चीनी विशेषज्ञता वाले ‘किल चेन’ का इस्तेमाल जिसमें रडार, जीपीएस, विमान और मिसाइल सभी एक साथ जुड़े हुए हैं, इसे देखकर ‘हमने चीजों को बस अलग तरीके से किया. अन्यथा, हम 11 पाकिस्तानी वायु सेना अड्डों को निशाना नहीं बना पाते और हम चीन द्वारा मुहैया कराई गई हवाई सुरक्षा को भेद नहीं पाते.'
थरूर ने कहा, ‘इसलिए यह स्पष्ट है कि लड़ाई के दौरान आकलन किए जा रहे थे और हम अपनी रणनीतियों को फिर से तैयार कर रहे थे ताकि हम यथासंभव प्रभावी कदम उठा सकें.’ उन्होंने कहा, ‘यह सच्चाई है कि चीन का पाकिस्तान में बहुत बड़ा हित है, ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ पर सबसे बड़ी एकल परियोजना पाकिस्तान में है- वह है ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’, इसलिए हमें इस बात को लेकर कोई भ्रम नहीं है कि चीन पाकिस्तान के प्रति कितनी प्रतिबद्धता महसूस करता है.'