वो दुर्लभ बीमारी, जिसकी वजह से मर जाते हैं मासूम, अब 19 महीने के इस भारतीय बच्चे ने उसे दी मात

by Carbonmedia
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Singapore News: सिंगापुर में भारतीय मूल का 19 महीने का एक बच्चा ‘स्टेम-सेल ट्रांसप्लांट’ के बाद एक दुर्लभ जानलेवा आनुवंशिक विकार से पूरी तरह से उबर गया है. मीडिया में इस बारे में आई खबर से यह जानकारी मिली. ‘द स्ट्रेट्स टाइम्स’ अखबार की खबर के मुताबिक, मन्नत सिंह नाम का यह बच्चा सिर्फ छह दिन का था तभी उसे गंभीर संयुक्त प्रतिरक्षाविहीनता (SCID) का पता चला था. एससीआईडी के कारण सामान्य बुखार भी उसके लिए खतरनाक हो सकता था.
पहला बच्चा जिसे जन्म के समय (SCID) का चला पता
मन्नत सिंगापुर का पहला बच्चा है जिसे जन्म के समय एससीआईडी ​​का पता चला था. एससीआईडी ​​के लक्षण उभरने से पहले 2023 में उसका स्टेम-सेल ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया गया था. अखबार ने बताया कि मन्नत अब स्वस्थ है. मन्नत को ‘आर्टेमिस एससीआईडी’ ​​था, जो कि ‘रिसेसिव रेडियोसेंसिटिव एससीआईडी’ ​​का एक दुर्लभ रूप है. इसका मतलब था कि उसका विकिरण से इलाज नहीं किया जा सकता था या उसकी कुछ स्कैन जांच भी नहीं करवाई जा सकती थीं.
अखबार की खबर के मुताबिक, इलाज नहीं होता तो मन्नत शायद अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाता. उसकी 39 साल की मां हरमिंदर कौर एक नर्स हैं जबकि उसके 39 साल के पिता हरमिंदर सिंह एक आईटी कंसल्टेंट हैं. कौर अपने नन्हे बेटे की इस बीमारी से बहुत चिंतित और डरी रहती थीं.
उनके पति हरमिंदर सिंह ने कहा, ‘‘परिस्थितियां उसके बिल्कुल खिलाफ थीं, हमारी मनोदशा बिल्कुल ठीक नहीं थी.’’ कौर ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि अब जीवन सामान्य हो गया है और हमने अतीत को पीछे छोड़ दिया है.’’ मन्नत के रोग के बारे में केके वीमेन्स एंड चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल (केकेएच) में ‘राष्ट्रीय विस्तारित नवजात स्क्रीनिंग’ (एनईएनएस) कार्यक्रम के माध्यम से पता चला था.
इलाज योग्य गंभीर शिशु रोगों को शामिल किया
यह कार्यक्रम 2006 में शुरू हुआ था जिसका उद्देश्य सिंगापुर में पैदा होने वाले सभी शिशुओं की चयापचय और आनुवंशिक बीमारियों की जांच करना था. कार्यक्रम का विस्तार करते हुए 2019 में इसमें एससीआईडी और सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी पांच और इलाज योग्य गंभीर शिशु रोगों को शामिल किया गया था.
केकेएच में रुमेटोलॉजी और इम्यूनोलॉजी सेवा की सलाहकार डॉ बियांका चैन ने कहा कि एससीआईडी ​​के लिए एकमात्र वास्तविक इलाज एक स्वस्थ दाता से अस्थि मज्जा प्रतिरोपण है. एक स्वस्थ दाता के अस्थि मज्जा से स्टेम कोशिकाएं संक्रमण से लड़ने वाली टी-कोशिकाओं में विकसित हो सकती हैं, जो एससीआईडी ​​​​से पीड़ित शिशुओं को एक कार्यशील प्रतिरक्षा प्रणाली बनाने में मदद करती हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘बच्चे में कोई और संक्रमण होने से पहले रोग का पता चलने से तीन से चार महीने के अंदर इलाज के सफल होने की उम्मीद ज्यादा रहती है. ऐसे में जन्म के समय एससीआईडी ​​स्क्रीनिंग महत्वपूर्ण हो जाती है.’’

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