राम प्रसाद बिस्मिल: काकोरी कांड के नायक, जिन्होंने हिला दी थी ब्रिटिश हुकूमत

by Carbonmedia
()

Ram Prasad Bismil: “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है” जैस शेर लिखकर क्रांतिकारियों में जोश भरने वाले और काकोरी काण्ड ने अंग्रेजों की नीवं हिला देने वाल मां भारती के लाल पंडित राम प्रसाद बिस्लिम की आज 128वीं जयंती हैं. आज ही के दिन उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में 11 जून 1897 पिता मुरलीधर और मां मूलमती के यहां एक साधारण परिवार में बिस्मिल का जन्म हुआ था.
राम प्रसाद बिस्मिल ने भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में न केवल अपने बलिदान से, बल्कि संगठित क्रांति की नींव रखकर इतिहास बना दिया. उनका सबसे चर्चित साहसिक कारनामा, काकोरी कांड, ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़ी चुनौती थी, जिसने अंग्रेजों को डरा दिया था.
काकोरी कांड क्रांतिकारियों की बड़ी चुनौती 9 अगस्त 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के क्रांतिकारियों ने लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन पर डकैती को अंजाम दिया था. इसमें चंद्रशेखर आजाद, अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और अन्य क्रांतिकारियों के साथ राम प्रसाद बिस्मिल ने 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन से ब्रिटिश खजाने को लूट लिया. जिससे तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत हिल गयी थी. अंग्रेजों के लूट के धन का उपयोग हथियार खरीदने और क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए किया जाना था. इस कांड ने ब्रिटिश शासन की जड़ें हिला दीं थीं, क्योंकि यह न केवल एक आर्थिक चोट थी, बल्कि उनकी सत्ता के खिलाफ खुली बगावत थी.
संगठन की स्थापनाराम प्रसाद बिस्मिल ने 1924 में सचिंद्र नाथ सान्याल और जादूगोपाल मुखर्जी के साथ मिलकर ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ की स्थापना की थी.  जिसका उद्देश्य सशस्त्र क्रांति से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना था. बिस्मिल ने संगठन का संविधान लिखा और युवाओं को एकजुट करने के लिए देशभक्ति से भरी कविताएं और साहित्य का सहारा लिया. उनकी पुस्तकें और लेख जैसे ‘बोल्शेविकों की करतूत’ और ‘क्रांतिकारी जीवन’, गुप्त रूप से खूब वितरित किए गए. देखते ही देखते HRA ने पूरे उत्तर भारत में क्रांतिकारी नेटवर्क स्थापित किया, जिसमें शाहजहाँपुर, आगरा और कानपुर जैसे शहर शामिल थे.
अंग्रेजों में खौफ अंग्रेज राम प्रसाद बिस्मिल से इसलिए डरते थे, क्योंकि उनकी रणनीति, संगठन क्षमता और जनता को प्रेरित करने की शक्ति अप्रत्याशित थी. काकोरी कांड के बाद ब्रिटिश पुलिस ने क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए व्यापक तलाशी अभियान चलाया. बिस्मिल जी की गिरफ्तारी के बाद उनके लेख और कविताएं  जब्त की गईं.जोकि उस वक्त जनता में विद्रोह की चिंगारी भड़काने की क्षमता रखतीं थीं.. उनकी ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ जैसी रचना अंग्रेजों के लिए खतरे की घंटी थी.
गोरखपुर में 19 दिसम्बर 1927 में महज तीस साल की उम्र में राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी दे दी गयी थी.

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating / 5. Vote count:

No votes so far! Be the first to rate this post.

Related Articles

Leave a Comment