पंचकूला में PPP में गरीब को दिखाया गाड़ी मालिक:राशन कार्ड किए रद्द, गलत डेटा चढ़ाने से उठानी पड़ रही दिक्कत

by Carbonmedia
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हरियाणा में परिवार पहचान पत्र (पीपीपी) प्रणाली में गलत डेटा एंट्री से गरीब परिवारों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सीटू के जिला सचिव लच्छी राम शर्मा ने इस मुद्दे को उठाया है। शर्मा ने एक प्रेस बयान में बताया कि पंचकूला जिले में कई गरीब परिवारों के राशन कार्ड रद्द कर दिए गए हैं। बताया गया कि उनके परिवार पहचान पत्र में उनके नाम पर गाड़ी दर्ज है। हालांकि वास्तविकता में इन परिवारों ने कभी गाड़ी खरीदी ही नहीं है। सरकार नहीं ले रही सुध सीटू के जिला सचिव ने कहा कि इस समस्या को लेकर सरकार को कई बार लिखित शिकायतें दी गई हैं। परिवार पहचान पत्र में मौजूद त्रुटियों से आम जनता, विशेषकर मजदूर वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है, लेकिन सरकार की तरफ से अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। गाड़ियों का मालिकाना हक दूसरों का खरोग गांव के सतपाल मजदूरी कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं और उनकी तीन बेटियां हैं, जिन्हें राशन डिपो से वापस लौटा दिया गया। जब वह सीएससी सेंटर पहुंचे, तो बताया गया कि उनके नाम पर गाड़ी है, जो पंचकूला सेक्टर 14 के पते पर रजिस्टर्ड है, जबकि सतपाल का इस पते या गाड़ी से कोई लेना-देना नहीं। गांव गझान भोज बालग के किशोरी लाल ने बताया कि उनकी पत्नी हरदेवी के नाम गाड़ी दर्ज है, मालिकाना हक हरी सिंह के नाम से है। सरकारी योजनाओं से किया बाहर लच्छी राम शर्मा ने बताया कि इसी तरह के मामले समलेहरी, गजान, वरवाला और मोरनी के कई गांवों से सामने आ रहे हैं। गलत जानकारी के कारण गरीबों को सरकारी योजनाओं से बाहर कर दिया गया है। बोर्ड में पंजीकरण भी अटका उन्होंने बताया कि निर्माण मजदूरों के लिए जो व्यवसाय संबंधित रिक्वेस्ट अतिरिक्त उपायुक्त के पास डाली गई थी, उन्हें सात महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी अभी तक अप्रूव नहीं किया गया। जिनका पंजीकरण हो चुका है, उन्हें परिवार पहचान पत्र में ‘कंस्ट्रक्शन वर्कर’ नहीं दिखाए जाने के कारण कोई सुविधा नहीं मिल रही। 9 जुलाई को होगा विशाल प्रदर्शन लच्छी राम शर्मा ने सरकार को चेताते हुए कहा कि यदि इन त्रुटियों को जल्द दूर नहीं किया गया तो 9 जुलाई को पंचकूला उपायुक्त कार्यालय पर पात्र लोगों के साथ एक विशाल प्रदर्शन किया जाएगा।यह मामला एक बार फिर सवाल खड़ा करता है कि क्या सरकार की तकनीकी व्यवस्थाएं गरीबों के हक छीनने का जरिया बनती जा रही हैं? जब सिस्टम ही ग़लत जानकारी दे, तो इंसाफ की उम्मीद कहां से करें?

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