कमाई का नया साधन बनेगी मूंगफली की खेती, इन शहरों में योगी सरकार ने तैयार किया खाका

by Carbonmedia
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Uttar Pradesh News: उत्तरप्रदेश में अब मूंगफली की खेती किसानों के लिए कमाई का नया साधन बनेगी. योगी सरकार ने UP‑AEGIS परियोजना के तहत झाँसी जिले को मूंगफली का विशेष क्लस्टर बनाने का खाका तैयार कर दिया है. इसका सीधा लाभ बुंदेलखंड के सातों जिलों झांसी, जालौन, ललितपुर, महोबा, हमीरपुर, बांदा और चित्रकूट को मिलेगा. कृषि विभाग का आंकड़ा कहता है कि पिछले दस साल में प्रदेश में मूंगफली की पैदावार ढाई गुना बढ़ी है; 2013‑16 में जहां उत्पादन का हिस्सा 2 फीसद था, वहीं आज यह 4.7 फ़ीसद के आसपास पहुंच गया है.
मूंगफली की फसल से किसानों को कई लाभ मिलेगें. पोषक तत्वों का खजाना हर 100 ग्राम मूंगफली में करीब 25 ग्राम प्रोटीन, 50 ग्राम स्वास्थ्य‑वर्धक वसा, विटामिन‑E, फोलेट और मैग्नीशियम मिलता है. इसीलिए इसे “गरीबों का बादाम” भी कहते हैं. बहुउपयोगी फसल भुनकर खाएं, तेल निकालें, नमकीन बनाएं या मिठाई—हर रूप में मांग बनी रहती है. व्रत‑उपवास में भी इसका खूब इस्तेमाल होता है. जमीन को आराम मूंगफली तना और जड़ में नाइट्रोजन जमाती है, जिससे अगली फसल के लिए मिट्टी उपजाऊ होती है.
बुंदेलखंड पर खास जोरगुजरात देश का 47 प्रतिशत मूंगफली उगाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के पास सबसे बड़ा घरेलू बाज़ार है. झांसी क्लस्टर तैयार होने के बाद यहां से एक्सपोर्ट की राह भी खुलेगी. विश्व बैंक समर्थित UP‑AEGIS प्रोजेक्ट खेती की नई तकनीक, बीज और सिंचाई पद्धति किसानों तक पहुंचाएगा. इसमें किसान उत्पादक संगठन (FPO) और सहकारी समितियों को भी जोड़ा जाएगा, ताकि भंडारण और मार्केटिंग आसान हो सके. सरकार ने ₹6,783 प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है. नैफेड और NCCF जैसी एजेंसियाँ मैनपुरी, हरदोई, इटावा, फर्रुखाबाद, कन्नौज, अलीगढ़, कासगंज, औरैया, बदायूं, एटा, उन्नाव, लखनऊ, कानपुर देहात‑नगर और श्रावस्ती में सीधे किसानों से खरीद करेंगी.
 इससे बिचौलियों पर अंकुश लगेगा और दाम में पारदर्शिता आएगी. 2013‑16 में यूपी की औसत उपज 809 किलो/हेक्टेयर थी—देश के औसत (1542 किलो) से बहुत कम. नई बीज किस्में, ड्रिप‑सिचाई और कीट‑नियंत्रण से यह फासला अब घटकर 1688 किलो/हेक्टेयर तक पहुंच चुका है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि जुलाई‑अगस्त बुआई समय पर हो, सही मात्रा में जिप्सम और सूक्ष्म पोषक मिलें तो प्रति हेक्टेयर 2200‑2400 किलो ठिकाने से निकाले जा सकते हैं.
आगे की योजनाहर ब्लॉक में किसान पाठशाला लगेगी, जहां वैज्ञानिक कम लागत में ज्यादा उपज के गुर सिखाएंगे. जिसके लिए जगह-जगह प्रशिक्षण कैंप लगाए जाएगें. वहीं तिलहन पर ध्यान देते हुए तेल मिल इकाई झांसी ललितपुर सीमा पर प्राइवेट पब्लिक मॉडल से एक अत्याधुनिक तेल मिल प्रस्तावित है, ताकि स्थानीय प्रसंस्करण को बढ़ावा मिले और रोजगार के रास्ते खुले. इसके अलावा निर्यात के लिए कानपुर और लखनऊ के ड्राई‑पोर्त से मूंगफली दाना व तेल विदेश भेजने का कॉरिडोर विकसित किया जा रहा है.
सरकार को उम्मीद है कि 2027 तक यूपी का मूंगफली उत्पादन हिस्सा 7 फीसद तक पहुंच जाएगा. इससे न सिर्फ़ किसानों की आमदनी दोगुनी दिशा में जाएगी, बल्कि प्रदेश “तिलहन आत्मनिर्भरता” के लक्ष्य के करीब भी पहुंचेगा. इस पर बांदा के युवा किसान राजू पाल कहते हैं, “पहले हम तिल्ली और बाजरा बोते थे, बाज़ार नहीं मिलता था. पिछले साल 2 बीघा में मूंगफली लगाई; सरकारी खरीद केंद्र पहुंचा तो सीधा पेमेंट खाते में आ गया. इस बार 5 बीघा बोऊंगा.” कृषि विशेषज्ञ मानते हैं कि जब सिंचाई कम हो और जमीन बालुई हो, तब मूंगफली सबसे मुफीद है और बुंदेलखंड की यही पहचान है.

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