अपने आदेश के बावजूद कैदी की रिहाई में हुई देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया है. कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को कैदी को शुक्रवार (27 जून, 2025) तक 5 लाख रुपए मुआवजा देने को कहा है. मामले की जांच गाजियाबाद के प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट जज को सौंपी गई है. कोर्ट ने कहा है कि जांच में कोई अधिकारी दोषी पाया गया तो मुआवजे की रकम उससे वसूली जाएगी.
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बुधवार, 25 जून को गाजियाबाद जेल के जेलर व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश हों. उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक भी सुनवाई में वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित रहें. बुधवार को सुनवाई शुरू होते ही यूपी की एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद ने कोर्ट को बताया कि कैदी आफताब को मंगलवार रात 8.40 पर रिहा कर दिया गया है.
गरिमा प्रसाद ने देरी की वजह बताते हुए कहा कि 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कैदी ने 27 मई को बेल बांड और श्योरिटी भरी. निचली अदालत से 27 मई को रिहाई का आदेश जारी हुआ, लेकिन इस आदेश में कानून की एक उप धारा का उल्लेख नहीं था. 28 मई को जेलर ने निचली अदालत से आदेश में संशोधन का अनुरोध किया. निचली अदालत ने ऐसा करने में देरी की.
जस्टिस के वी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की अवकाशकालीन बेंच इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हुई. यूपी की वकील ने यह भी कहा कि रिलीज ऑर्डर में लिखी कानून की धाराओं का मिलान कस्टडी ऑर्डर में लिखी धाराओं से करने का आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2012 में दिया था. इसी का पालन हर जेल अधिकारी करता है. इस पर जजों ने कहा कि इस तरह तकनीकी आधार पर किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित नहीं किया जा सकता. हाई कोर्ट ने इस तरह की गैरजरूरी सख्ती के लिए नहीं कहा था.
जजों ने कहा कि 27 मई को जारी रिलीज ऑर्डर में कैदी और पुलिस थाने का विवरण और केस नंबर सही लिखा है. कानून की धाराएं भी लिखी हैं. बस यूपी अवैध धर्मांतरण निषेध कानून की धारा 5 (1) की जगह धारा 5 लिखी है. सिर्फ इतनी सी बात के लिए बेल की शर्तों को पूरा करने के बाद भी याचिकाकर्ता 28 दिन तक व्यर्थ में जेल में पड़ा रहा.
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के जेल महानिदेशक पी एस मीणा से पूछा कि इस तरह की स्थिति से बचने के लिए वह क्या कदम उठाएंगे? क्या वह सुनिश्चित करेंगे कि रिहाई आदेश की मामूली कमियों को अहमियत देकर विचाराधीन कैदियों की रिहाई को अटकाया जाए? इस पर जेल महानिदेशक ने कहा कि वह सभी जेल अधिकारियों की वीडियो कांफ्रेंसिंग से बैठक लेंगे और उन्हें इस बारे में संवेदनशील बनाएंगे.
जजों ने कहा कि अगर इस तरह सुप्रीम कोर्ट तक के आदेशों का पालन रोका जाएगा तो समाज में क्या संदेश जाएगा? कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच में इस बात को भी देखा जाए कि सिर्फ तकनीकी आधार पर कैदी की रिहाई रोकी गई या इसके पीछे किसी अधिकारी की गलत मंशा शामिल थी.
क्या है मामला?आफताब नाम के व्यक्ति पर 3 जनवरी 2024 को गाजियाबाद के वेव सिटी थाने में आईपीसी की धारा 366 (नाबालिग लड़की के अपहरण) और यूपी अवैध धर्मांतरण निषेध कानून की धाराओं के तहत केस दर्ज हुआ. 29 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने उसकी जमानत का आदेश दिया, लेकिन उसकी रिहाई नहीं हुई. आफताब ने दोबारा याचिका दाखिल कर बताया था कि जेलर ने उसे तकनीकी कारणों से रिहा करने से मना कर दिया है.
कैदी की रिहाई में देरी पर नाराज सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को 5 लाख मुआवजा देने को कहा, जिला जज को सौंपी मामले की जांच
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