इटावा की घटना पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का बड़ा बयान- संविधान से भी पहले हमारा धर्म ग्रंथ, पूरे ब्राह्मांड पर…

by Carbonmedia
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Etawah Case: उत्तर प्रदेश के इटावा में कथावाचक से दुर्व्यवहार मामले पर जमकर सियासत की जा रही है. इस बीच सनातन धर्म के सबसे बड़े पद पर आसीन शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का बड़ा बयान सामने आया है. ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य ने इस घटना की निंदा की और कहा हमारी परंपरा में भगवान से संवाद स्थापित करने के लिए ब्राह्मण अधिकृत हुआ है. इसलिए कथा उन्ही के द्वारा की जानी चाहिए. 
ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने एबीपी से बात करते हुए कहा कि ये घटना बहुत निंदनीय है. व्यक्ति किसी भी जाति का हो, उसके साथ इस प्रकार का व्यवहार कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता. लेकिन, घटना के बाद जिस तरह से राजनीति हो रही है लग रहा है कि पहले से ही सोचा समझा मामला है. यह हमारे सनातन धर्म की क्षति है. इसीलिए राजनेताओं को धर्म के मामले में नहीं आना चाहिए.
उन्होंने कहा कि वैसे हमारी परंपरा में तो काकभुशुण्डि ( कौआ) ने भी कथा कही थी. राम कथा का ऐसा महात्म है. भगवत प्रेम में कथा हो रही हो तो कोई भी कथा कह सकता है. लेकिन, सकाम अनुष्ठान के लिए कथा ब्राह्मण द्वारा ही कही जाती है. जिस प्रकार न्यायालय में व्यक्ति अपना मुकदमा लड़ने के लिए एक वकील को अधिकृत करता है. उसी तरह इस विषय में भी अधिकृत व्यक्ति के तौर पर ही कथा कही जाती है. 
ब्राह्मण ही कथा कहने के लिए अधिकृतउन्होंने कहा कि  जैसे न्यायालय से संवाद करने के लिए वकील अधिकृत होता है उसी तरह हमारी परंपरा में भगवान से संवाद स्थापित करने के लिए ब्राह्मण अधिकृत हुआ है.  स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सपा सांसद द्वारा मनुस्मृति को लेकर दिए बयान पर कहा कि हमारे धर्माचार्य संविधान की कथा कहने वाले को तो नहीं रोकते. वो संविधान की कथा कहे उन्हें कौन रोक रहा है. लेकिन, हमारे विषय को संविधान से क्यों जोड़ा जा रहा है. धर्म के विषय में उसी से जुड़ा हुआ व्यक्ति निर्णय लेने के लिए अधिकृत है, संवैधानिक व्यक्ति नहीं. 
शकंराचार्य ने कहा कि हमारे धर्म ग्रंथ से ऊपर संविधान नहीं हुआ, संविधान से भी पहले हमारा धर्म ग्रंथ रहा है. पूरे ब्रह्मांड में हमारा मनुस्मृति लागू है. लेकिन, हम आपके संविधान को आदर दे रहे हैं. जो परंपरा चली आ रही है उसको आप चुटकी बजाकर खत्म करना चाहते हैं. असलियत तो यह है कि संविधान की आड़ में आप राजनीति कर रहे हैं. हिंदू समाज में विभेद करने वाली प्रवृत्ति मत पैदा करिए, घटनाएं होती रहती हैं लेकिन इसे राजनीतिक रंग मत दीजिए. कथा कहने के लिए ऐसे व्यक्ति को बैठाया जाता है जिसके मन में सबके लिए एक समान भावना हो और इसीलिए ब्राह्मण को हमेशा से ही पूजनीय माना जाता है. इसलिए ब्राह्मण ही कथा कहते हैं.
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