पश्चिम बंगाल: 25 साल बाद एक साथ मिड-डे मील खाएंगे बच्चे, धर्म के आधार पर बंटे थे रसोई-बर्तन

by Carbonmedia
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पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्धमान जिले के एक प्राथमिक विद्यालय में कई सालों से अलग-अलग समुदायों के छात्रों के लिए अलग-अलग खाना बनाने का मामला सामने आने के बाद अब हड़कंप मच गया है. जिला प्रशासन के आदेश के बाद स्कूल अधिकारियों ने बुधवार (25 जून, 2025) को इस प्रथा को समाप्त कर दिया.
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से लगभग 150 किलोमीटर दूर पूर्वस्थली ब्लॉक में स्थित किशोरीगंज मनमोहनपुर प्राथमिक विद्यालय में 72 छात्र हैं, जिनमें 29 मुस्लिम और 43 हिंदू बच्चे पढ़ते हैं. 
स्कूल ने साल 2000 से ही मिड डे मील बनाने के लिए अलग-अलग रसोई और बर्तन बनाए रखे थे. इसके साथ ही दो रसोइए भी थे. हालांकि बच्चों का भोजन एक ही गैस कनेक्शन पर पकाया जाता था, लेकिन छात्रों को उनके धर्म के आधार पर अलग-अलग कक्षाओं में भोजन परोसा जाता था.
जिला मजिस्ट्रेट ने दिए जांच के आदेशजिला प्रशासन को जब इस मामले की जानकारी मिली तो जांच के आदेश दिए गए. पूर्व बर्धमान की जिला मजिस्ट्रेट आयशा रानी ने कहा, “हमने स्कूल में जांच दल भेजा है. रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाएगी.” स्थिति को संभालने के लिए बुधवार को हेडमास्टर ने स्कूल में 2 घंटे से अधिक समय तक बैठक की, जिसमें शिक्षक, ग्रामीण, पंचायत सदस्य, जिला प्रशासन के प्रतिनिधि और पुलिस भी शामिल हुई.
एक अधिकारी के अनुसार इस प्रथा को अब बंद कर दिया गया है और यह निर्णय लिया गया है कि अब दोनों रसोइये मिलकर मिड डे मील तैयार करेंगे. सभी समुदायों के बच्चों को एक साथ भोजन परोसा जाएगा. इसके अलावा स्कूल में मिड डे मील पकाने के लिए जल्द ही एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) का गठन किया जाएगा.
‘पिछले 25 सालों से चल रही थी ये प्रथा’वहीं इस मामले को लेकर नसरतपुर ग्राम पंचायत (जीपी) के प्रधान कानन बर्मन ने कहा कि ग्रामीणों के साथ बैठक में स्कूल के शिक्षक, प्रशासन और पुलिस भी मौजूद थे. हम सभी ने स्पष्ट किया है कि इस तरह की प्रथा की अनुमति नहीं दी जाएगी. यह तय किया गया है कि दोनों रसोइए (मुस्लिम और हिंदू) एक ही बर्तन का उपयोग करके एक साथ मिड डे मील तैयार करेंगे.
नियमों के अनुसार बच्चों को उनके धर्म की परवाह किए बिना एक-दूसरे के बगल में बिठाकर भोजन परोसा जाएगा. इससे पहले दिन में स्कूल के मौजूदा अधिकारियों और रसोइयों ने दावा किया कि यह व्यवस्था साल 2000 से लागू है, जब मध्याह्न भोजन योजना शुरू की गई थी. ये भी पढ़ें:
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