गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों को मोबाइल और इंटरनेट का ज्यादा समय मिलने से उनकी आदतें बदल रही हैं। शहर में काउंसलर्स के पास लगातार ऐसे पैरेंट्स पहुंच रहे हैं, जिनके बच्चे मोबाइल की लत का शिकार हो चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे जरूरी है कि पैरेंट्स खुद भी मोबाइल कम इस्तेमाल करें और आदर्श प्रस्तुत करें। धीरे-धीरे मोबाइल से दूरी बनाकर, सकारात्मक विकल्प देकर बच्चों को डिजिटल डिटॉक्स की ओर लाया जा सकता है। अगर स्थिति नियंत्रण से बाहर लगे तो तुरंत विशेषज्ञ से संपर्क करें, क्योंकि कई मामलों में शुरुआत में ध्यान न देने पर स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर दिखने लगता है। मोबाइल छीनने पर बच्चे चिल्लाने लगते या फिर फोन तोड़ देते हैं केस 1 : रातभर गेम, दिनभर थकान :12 साल का पढ़ाई में अच्छा करने वाला बच्चा छुट्टियों के दौरान रात को देर तक मोबाइल पर ऑनलाइन गेम खेलने लगा। दिन में सुस्ती, सिरदर्द और गुस्सा आम हो गया। मां ने बताया कि वह सुबह उठने से भी मना करता था और होमवर्क से दूरी बना ली थी। जब मोबाइल छीना गया तो उसने चिल्लाना शुरू कर दिया और 2 दिन तक किसी से बात नहीं की। फिर काउंसलिंग से सुधार आया। केस 2 : खाना-पीना बंद किया : 14 साल की एक टीनएज लड़की रील्स और चैटिंग में घंटों बिताने लगी। पिता ने मोबाइल टाइम लिमिट किया तो बच्ची ने खुद को कमरे में बंद कर लिया और दो दिन तक कुछ खाया-पीया नहीं। स्कूल के प्रोजेक्ट के नाम पर मोबाइल मांगती थी और असल में सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती थी। इसके बाद परेशान पेरेंट्स काउंसलर्स से मदद लेने पहुंचे, ताकि उसकी लत छूट सके। केस 3 : हर बात पर गुस्सा: एक 9 साल का बच्चा कार्टून और मोबाइल गेम्स में इतना खो गया कि पैरेंट्स के रोकने पर चीखने-चिल्लाने लगता था। एक दिन पिता ने गुस्से में मोबाइल लेने की कोशिश की तो उसने जोर से दीवार पर फेंक दिया। जब उससे पूछा गया कि वह ऐसा क्यों कर रहा है, तो उसने जवाब दिया बिना मोबाइल सब बोरिंग लगता है। इसके बाद पैरेंट्स ने गंभीरता से लेते हुए डिजिटल डिटॉक्स का सहारा लिया। सीनियर काउसंलर वर्षा बिसारिया ने बताया कि इस तरह की स्क्रीन लत बच्चों में ‘डिजिटल डोपामिन रश’ बनाती है, जिससे वे बार-बार मोबाइल की तरफ भागते हैं। जब उन्हें ये नहीं मिलता तो गुस्सा, चिड़चिड़ापन और डिप्रेशन जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। बच्चों को विकल्प देने होंगे आउटडोर खेल, आर्ट, म्यूजिक या फैमिली टाइम। स्क्रीन टाइम कम करना एक प्रक्रिया है, एकदम से रोकने पर रिएक्शन ज्यादा होता है। डिजिटल डिटॉक्स केवल मोबाइल छीनना नहीं, बल्कि सही गाइडेंस और नियमित प्रयासों से संभव है।
धीरे-धीरे मोबाइल से दूरी बच्चों को डिजिटल राहत दिलाएगी
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