पंचायत सचिव को मिलती है इतनी सैलरी, जानिए इनके पास होते हैं कौन-कौन से काम

by Carbonmedia
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गांवों में विकास की असली रफ्तार वहीं से शुरू होती है जहां ग्राम पंचायत की बैठकें होती हैं, सरकारी योजनाएं जमीन पर उतरती हैं और ग्रामीणों को जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं. इन सबके केंद्र में होता है पंचायत सचिव, वह शख्स जो गांव की सरकार और प्रशासन के बीच सेतु का काम करता है. पंचायत सचिव का पद जितना जिम्मेदारी भरा होता है, उतना ही इसमें प्रशासनिक अनुशासन और लेखा-जोखा का महत्व भी होता है. आइए विस्तार से समझते हैं कि पंचायत सचिव के काम क्या होते हैं और इस पद पर सरकारी सेवा में आने वालों को कितनी तनख्वाह मिलती है.
क्या होते हैं पंचायत सचिव के कार्य और जिम्मेदारियां
पंचायत सचिव की नियुक्ति राज्य सरकार के पंचायती राज विभाग के तहत होती है. वह किसी एक या एक से अधिक ग्राम पंचायतों का प्रभारी होता है और गांव से जुड़े लगभग हर प्रशासनिक पहलू में उसकी सीधी भूमिका रहती है.इसके अलावा पंचायत सचिव ग्राम सभा और ग्राम पंचायत की बैठकों का आयोजन भी कराता है, नोटिस जारी करता है और बैठकों में होने वाले फैसलों का लेखा-जोखा रखता है. इतना ही नहीं. मनरेगा, पीएम आवास योजना, जल जीवन मिशन, स्वच्छ भारत अभियान जैसी तमाम योजनाओं का लाभ ग्रामीणों तक पहुंचाना और उनके रिकॉर्ड को दुरुस्त रखना पंचायत सचिव की ही जिम्मेदारी होती है. वहीं जन्म/मृत्यु प्रमाण पत्र, निवास, जाति प्रमाण पत्र जैसे जरूरी कागजों की आवेदन प्रक्रिया में पंचायत सचिव ग्रामीणों की मदद करता है.
कितनी होती है पंचायत सचिव की सैलरी
पंचायत सचिव की सैलरी राज्य सरकार तय करती है और यह हर राज्य में थोड़ा-थोड़ा अलग हो सकती है. लेकिन सामान्य तौर पर देखा जाए तो अधिकतर राज्यों में पंचायत सचिव को शुरुआत में 21,700 से 26,300 रुपये के बीच बेसिक पे मिलता है, जो सातवें वेतन आयोग के अनुसार पे लेवल-3 या लेवल-5 के तहत आता है. इस बेसिक पे के साथ महंगाई भत्ता (DA), हाउस रेंट अलाउंस (HRA), ट्रैवल अलाउंस (TA) और अन्य सरकारी भत्ते मिलाकर कुल सैलरी 28,000 से 35,000 रुपये मासिक के बीच हो जाती है. जैसे-जैसे सेवा अवधि बढ़ती है, वेतनमान में नियमित इन्क्रीमेंट और प्रमोशन के जरिए यह सैलरी 50,000 से 60,000 रुपये प्रति माह तक पहुंच सकती है.
कुछ राज्यों में पंचायत सचिवों की शुरुआत संविदा (contract) के तौर पर होती है, जिसमें पहले कुछ वर्षों तक 20,000 से 25,000 रुपये तक फिक्स सैलरी दी जाती है और उसके बाद स्थायी नियुक्ति पर पूर्ण वेतनमान और भत्ते लागू होते हैं. इसके अलावा कई राज्यों में इन्हें पेंशन, प्रोविडेंट फंड, मेडिकल सुविधा और ट्रांसफर-अन्य लाभ भी मिलते हैं, जिससे यह नौकरी न सिर्फ आर्थिक रूप से स्थिर मानी जाती है बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा वाली भी होती है.
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