Voter List Revision Campaign: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा शुरू किए गए मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान पर सियासी घमासान शुरू हो गया है. विपक्षी दलों ने इसे लेकर केंद्र की सरकार और चुनाव आयोग पर तीखा हमला बोला है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के सांसद सुदामा प्रसाद ने इसे बीजेपी का ‘आखिरी ब्रह्मास्त्र’ करार दिया है.
सुदामा प्रसाद ने रविवार (29 जून, 2025) को पटना में एक बयान में कहा, “बीजेपी की सत्ता फिसल रही है. जनता और मतदाता उनके खिलाफ हैं. सरकार ने न रोजगार दिया, न लोगों की इज्जत की रक्षा की, न ही देश की सीमाओं को सुरक्षित किया.”
उन्होंने आगे कहा, “बिहार में एनडीए सरकार का जाना तय है और हताशा में यह कदम उठाया गया है. सुदामा प्रसाद ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ‘वोटबंदी’ की कोशिश करती है, तो जनता सड़कों पर उतरने को तैयार है.”
उपराष्ट्रपति के बयान पर आपत्ति
सुदामा प्रसाद ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के हालिया संविधान संबंधी बयान को भी गलत ठहराया. उन्होंने कहा, “उपराष्ट्रपति संवैधानिक पद पर बैठकर गैर-संवैधानिक बातें कर रहे हैं. उन्हें ऐसी बातें कहने से पहले अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए.” यह बयान विपक्ष के उस रुख को दर्शाता है, जिसमें वे सरकार और संवैधानिक संस्थाओं पर लगातार सवाल उठा रहे हैं.फर्जी वोटिंग रोकने के लिए अभियान
दरअसल चुनाव आयोग ने बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) शुरू किया है. इसका मकसद राज्य के हर मतदाता की पात्रता की जांच करना और सूची को अपडेट करना है. आयोग का कहना है कि इससे फर्जी वोटिंग पर रोक लगेगी. इस अभियान में राजनीतिक दलों और जिला प्रशासन का सहयोग लिया जा रहा है. आयोग ने इसके लिए बूथ स्तर पर कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई है. पहले से मौजूद 77,895 बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) के अलावा 20,603 नए बीएलओ नियुक्त किए गए हैं.
इसके साथ ही, चुनाव आयोग ने एक लाख से ज्यादा स्वयंसेवकों को भी इस अभियान में शामिल किया है. ये स्वयंसेवक बुजुर्ग, दिव्यांग, बीमार, गरीब और कमजोर वर्ग के मतदाताओं की मदद करेंगे. इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी पात्र मतदाता वोट देने से वंचित न रहे.विपक्ष का आरोप- सरकार के इशारे पर अभियान
विपक्षी दलों का आरोप है कि यह अभियान सरकार के इशारे पर हो रहा है ताकि कुछ खास मतदाताओं को सूची से हटाया जा सके. वहीं, सरकार और चुनाव आयोग का कहना है कि यह एक नियमित प्रक्रिया है, जिसका मकसद स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है. इस विवाद ने बिहार की सियासत को और गरमा दिया है, और आने वाले दिनों में यह मुद्दा और तूल पकड़ सकता है.
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