Punjab: बंटवारे के दौरान एक मुस्लिम ने बचाई थी राम कृष्ण की जान, 102 साल में ली अंतिम सांस

by Carbonmedia
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Punjab Latest News: पटियाला जिले के धैंथल गांव में 102 वर्षीय राम कृष्ण सिंह ने मंगलवार (1 जुलाई) को अपनी अंतिम सांस ली. वे 1947 के विभाजन के चश्मदीद गवाहों में से एक थे. उनके जीवन में एक ओर सांप्रदायिक हिंसा की भयावहता थी, तो दूसरी ओर मानवीय साहस और करुणा की मिसाल भी.
24 साल की उम्र में उन्होंने वो दौर देखा जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ और पंजाब में हिंसा भड़क उठ. अगस्त 1947 में, जब वे और उनका परिवार सुरक्षित स्थान पर चले गए थे, तब उनके पिता जीओना सिंह को भीड़ ने मार डाला, क्योंकि उन्होंने अपना पुश्तैनी घर छोड़ने से इनकार कर दिया था.
विभाजन से बाद भाईचारा नफरत में बदल गया- राम कृष्ण सिंह
राम कृष्ण सिंह ने 4 साल पहले टाइम ऑफ इंडिया के मुताबिक, ‘आजाद बोल पंजाबी’ नाम के वेब चैनल को दिए इंटरव्यू में बताया था कि विभाजन से पहले गांव में मुस्लिमों की संख्या अधिक थी, लेकिन हिंदू और सिख परिवार भी थे और सभी एक-दूसरे के घर खेलते थे. अचानक वह भाईचारा नफरत में बदल गया. जब तनाव बढ़ा, तो राम कृष्ण अपने परिवार के साथ तुल्लेवाल गांव चले गए लेकिन उनके पिता और एक बुजुर्ग निहंग घर की रखवाली के लिए रुक गए. जैसे ही मुस्लिम परिवार पाकिस्तान की ओर जाने लगे, गांव में एक हिंसक भीड़ ने प्रवेश किया और जीओना सिंह की हत्या कर दी.
‘एक मुस्लिम ग्रामीण ने बचाई राम कृष्ण की जान’
राम कृष्ण के पोते और पटियाला में सहायक जनसंपर्क अधिकारी हरदीप सिंह गहिर ने बताया कि दादा जी अपने पिता की खोज में वापस गांव लौटे थे, लेकिन उन्हें भयावह सच्चाई का सामना करना पड़ा. उन्होंने बताया, “निहंग बाबा ने बताया कि उन्हें जीओना सिंह का अंतिम संस्कार तंदूर में उपले जलाकर करना पड़ा क्योंकि उस समय शव यात्रा निकालना भी जानलेवा था.” इस बीच, राम कृष्ण की जान एक मुस्लिम ग्रामीण ने बचाई. जब एक हथियारबंद भीड़ ने उन्हें घेर लिया था, तभी एक मुस्लिम युवक ने जान जोखिम में डालकर उनकी रक्षा की. राम कृष्ण अपने जीवन के आखिरी दिनों तक उस घटना को भावुकता से याद करते रहे.
विभाजन के बाद उनका जीवन पूरी तरह बदल गया. राम कृष्ण की मां उस समय गर्भवती थीं और दो महीने बाद एक बेटी मोहिंदर कौर का जन्म हुआ. उन्होंने 30 साल की उम्र तक शादी नहीं की, क्योंकि परिवार को फिर से खड़ा करने में सालों लग गए. वे अपने पिता की तरह बढ़ई का काम करते रहे, और अब उनके बेटे बलविंदर सिंह इस परंपरा को आधुनिक तकनीकों के साथ आगे बढ़ा रहे हैं. 
परिवार के मुताबिक, “राम कृष्ण सिंह का जीवन इतिहास की सबसे क्रूर सच्चाइयों का साक्षी रहा, लेकिन वे हमेशा यह दिखाते रहे कि नफरत के दौर में भी इंसानियत की झलक कई पीढ़ियों तक प्रेरणा बन सकती है.”

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