फेफड़ों का कैंसर दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौतों का एक प्रमुख और बेहद घातक कारण है. इसके आंकड़े इतने चौंकाने वाले हैं कि किसी की भी रूह कांप सकती है. यह सिर्फ धूम्रपान करने वालों की बीमारी नहीं है, बल्कि बढ़ते वायु प्रदूषण और अन्य कारकों के कारण धूम्रपान न करने वाले लोग भी इसकी चपेट में आ रहे हैं.
फेफड़ों के कैंसर के भयावह आंकड़ेविश्व स्तर पर मौतों का सबसे बड़ा कारण: फेफड़ों का कैंसर दुनिया भर में कैंसर से संबंधित मौतों का सबसे बड़ा कारण है. अनुमान है कि हर साल 1.8 मिलियन (18 लाख) से ज्यादा लोगों की मौत फेफड़ों के कैंसर से होती है. 2020 में, कुल कैंसर मौतों का लगभग 18% फेफड़ों के कैंसर के कारण हुआ था.
नए मामलों की संख्या: 2020 में, दुनिया भर में 2.2 मिलियन (22 लाख) से ज्यादा लोगों में फेफड़ों के कैंसर का निदान किया गया था. यह संख्या 2040 तक तेज़ी से बढ़कर 3.6 मिलियन से ज़्यादा होने का अनुमान है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है.
कम जीवित रहने की दर: फेफड़ों के कैंसर का पता चलने के बाद जीवित रहने की दर बहुत कम होती है. आमतौर पर, सभी फेफड़ों के कैंसर रोगियों में से केवल 15% लोग ही निदान के पांच साल तक जीवित रह पाते हैं, क्योंकि अक्सर इसका पता तब चलता है जब बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है.
ये हैं चिंताजनक तथ्य धूम्रपान प्रमुख कारण, लेकिन एकमात्र नहीं: फेफड़ों के कैंसर के 85% से ज़्यादा मामलों का कारण धूम्रपान होता है. हालांकि, वायु प्रदूषण, आनुवंशिक परिवर्तन, निष्क्रिय धूम्रपान (सेकंड हैंड स्मोक), कार्यस्थल पर एस्बेस्टस या डीज़ल निकास जैसे रसायनों के संपर्क में आना, और कुछ फेफड़ों की बीमारियां भी इसके अन्य महत्वपूर्ण कारक हैं.
धूम्रपान न करने वाले भी प्रभावित: चौंकाने वाली बात यह है कि धूम्रपान न करने वाले लोगों में भी फेफड़ों का कैंसर तेज़ी से बढ़ रहा है. भारत में हुए एक शोध के अनुसार, लगभग 50% फेफड़ों के कैंसर के रोगी धूम्रपान न करने वाले थे. इनमें से 70% 50 साल से कम उम्र के थे और 30 वर्ष से कम आयु के 100% रोगी नॉन-स्मोकर थे. महिलाओं में भी फेफड़ों के कैंसर के मामलों में वृद्धि देखी गई है, जिनमें से कई धूम्रपान नहीं करती थीं.
देर से निदान: इस बीमारी को शुरुआती चरणों में पहचान न पाना इसे और भी गंभीर बना देता है, क्योंकि अक्सर लक्षण स्पष्ट होने तक कैंसर काफी फैल चुका होता है.
बचाव और जागरूकता है जरूरीफेफड़ों के कैंसर के बढ़ते आंकड़े हमें यह समझने पर मजबूर करते हैं कि यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है. धूम्रपान छोड़ना सबसे पहला और महत्वपूर्ण कदम है. इसके अलावा, वायु प्रदूषण से बचाव, नियमित स्वास्थ्य जांच और शुरुआती लक्षणों (जैसे खांसी जो ठीक न हो, सांस लेने में तकलीफ, छाती में बार-बार संक्रमण, खांसी में खून आना) पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है.
दुनिया भर में 1अगस्त को “वर्ल्ड लंग कैंसर डे” के रूप में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य इस घातक बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाना है. आइए, हम सभी मिलकर इस “साइलेंट किलर” के खिलाफ जागरूकता फैलाएं और अपने फेफड़ों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें.
ये भी पढ़ें: महंगे एयर फ्रेशनर छोड़िए, इन देसी तरीकों से करिए घर को फ्रेश; काम आएंगे ये टिप्स
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.