लुधियाना| सिविल लाइन्स स्थित श्री महावीर जैन स्थानक में विराजमान जिनशासन रत्न, हिमाचल केसरी, उपाध्याय भगवन, परम पूज्य जितेन्द्र मुनि ने अपने प्रवचन में चातुर्मास की महिमा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाला यह चातुर्मास आत्मिक उन्नति का सर्वोत्तम अवसर होता है।मुनि ने कहा कि चातुर्मास का मतलब चार महीने आत्मा की ओर लौटने का समय है। यह महीने आत्म-मंथन, आत्म-स्थिरता और धर्म में गहराई से जुड़ने के होते हैं। गुरुदेव ने समझाया कि वर्षा ऋतु जीवों की उत्पत्ति का समय होता है, ऐसे में जीवों की हिंसा से बचने के लिए साधु-संत एक ही स्थान पर ठहरते हैं। यही स्थिरता दो बड़े लाभ देती है। जीव दया और धर्म प्रभावना। उन्होंने कहा कि यह समय सिर्फ साधुओं के लिए नहीं, सभी धार्मिक प्राणियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। आत्मिक प्रगति के लिए यह स्वर्णिम समय होता है। वर्ष के इन चार महीनों को निकाल दिया जाए, तो बाकी समय निरर्थक सा हो जाता है। उन्होंने बताया कि चातुर्मास की परंपरा प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के समय से चली आ रही है। बाकी तीर्थंकरों के समय यह नियम कुछ भिन्न था, वे विवेक के अनुसार यात्रा भी करते थे। आज भी महाविदेह क्षेत्र में यही परंपरा है।इस कार्यक्रम में उपस्थित मधुर वक्ता , व्याकरणाचार्य पूज्य प्रभास श्राने ने भी चातुर्मास की विशेषता पर अपने विचार रखे। उन्होंने उत्तराध्ययन सूत्र के माध्यम से सम्यक्त्व और ज्ञान-प्रगति की ओर प्रेरणा दी।
चातुर्मास आत्मिक साधना का अमूल्य समय : मुनि
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