पंजाब के प्रगतिशील किसान अमन सिद्धू का नायाब तरीका…:खारे पानी की जमीन पर ‘लस्सी’ से उगाई फसलें; जैविक खेती को मिली नई राह

by Carbonmedia
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पंजाब के जिस गांव का जमीनी पानी खारा हो, टीडीएस 1500 तक, फिर भी कीटनाशकों की अपेक्षा 2-3 साल पुरानी लस्सी के प्रयोग से भारी भरकम खर्च करने वाले किसानों के बराबर पैदावार ले रहे हैं तो कहने ही क्या। बाहमणी वाला गांव के प्रगतिशील किसान अमन सिद्धू ने खेती में ऐसा नायाब तरीका अपनाया, जो न केवल पर्यावरण हितैषी है, बल्कि आर्थिक रूप से भी फायदेमंद साबित हो रहा है। अमन सिद्धू जैसे किसान मौजूदा कृषि संकट के बीच एक आशा की किरण हैं। उनकी सोच, मेहनत और समर्पण से यह स्पष्ट है कि टिकाऊ खेती केवल संभव ही नहीं, बल्कि लाभदायक भी है। 2-3 साल पुरानी लस्सी का प्रयोग युवा प्रगतिशील किसान 6 वर्षों से सरफेस सीडर मशीन की मदद से गेहूं और धान की खेती कर रहे हैं। वह फाजिल्का जिले में इस तकनीक को अपनाने वाले अकेले किसान हैं। वह पराली नहीं जलाते, न ही रासायनिक खाद या कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं। इसके बजाय वह देसी तरीके से तैयार की गई 2-3 साल पुरानी लस्सी का प्रयोग करते हैं, जो मिट्टी की सेहत सुधारने में मददगार है और फसलों को कीटों से भी बचाती है। खेत में नहीं डालते कोई रासायनिक खाद वह खेतों की बुवाई से पहले जमीन में डीएपी जैसी रासायनिक खाद भी नहीं डालते। उनका मानना है कि रासायनिक जहर से मिट्टी की गुणवत्ता खराब होती है और आने वाली पीढ़ियों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है। वह कहते हैं कि वह नहीं चाहते कि उनकी जमीन जहर पीए। अगली पीढ़ी के लिए जमीन को जिंदा और उपजाऊ छोड़ना है। वह केवल 200 रुपए प्रति एकड़ खर्च कर गेहूं का बीज लेते हैं। उनका दावा है कि उनकी फसल की पैदावार भी उन्हीं किसानों के बराबर होती है, जो भारी मात्रा में रासायनिक खाद और कीटनाशक प्रयोग करते हैं। इस तरह उनका खर्च कम आता है और मुनाफा ज्यादा रहता है। यूनिवर्सिटी से मिली रेन गन से फसलों की सिंचाई अमन ने यूनिवर्सिटी से रेन गन मंगवाकर एक कुशल सिंचाई प्रणाली विकसित की, जिससे एक ही जगह से पूरे खेत में पानी पहुंच जाता है। उसका मानना है कि किसान अगर चाहे तो देसी तकनीक और जैविक उपायों को अपनाकर न केवल लागत कम कर सकते हैं, बल्कि मिट्टी तथा पर्यावरण की रक्षा भी कर सकते हैं। उनके अनुसार, जैसे-जैसे आसपास के लोगों को पता चल रहा है कि वह खाद और कीटनाशक के बिना गेहूं की बिजाई करते हैं, वैसे-वैसे उनका आर्गेनिक गेहूं के इस्तेमाल के प्रति रुझान बढ़ रहा है। इसका नतीजा है कि गेहूं की बिजाई करने से पहले लोग उनके पास अपना ऑर्डर बुक करवा देते हैं तथा गेहूं की फसल तैयार होते ही अपने ऑर्डर के अनुसार गेहूं लेकर जाते हैं।

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