सेहत के लिए कितना खतरनाक है डिब्बा बंद खाना, क्यों है खतरे की घंटी?

by Carbonmedia
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आजकल की भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल में डिब्बा बंद खाना हमारे लिए एक आसान और तेज ऑप्शन बन गया है. ये चीजें बेशक हमारा टाइम बचाती हैं, लेकिन हेल्थ के लिए एक बड़ी खतरे की घंटी साबित हो सकती हैं. आइए जानते हैं कि डिब्बा बंद खाना हमारी सेहत के लिए कितना खतरनाक है और क्यों.
डिब्बा बंद खाना क्यों है खतरे की घंटी?

हाई सोडियम और शुगर: डिब्बा बंद खाने में टेस्ट और प्रिजर्वेशन) के लिए सोडियम और शुगर की क्वांटिटी बहुत ज्यादा होती है. ज्यादा सॉल्ट हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट डिजीज का रिस्क बढ़ाता है. वहीं, ज्यादा शुगर से ओबेसिटी , टाइप-2 डायबिटीज और इंसुलिन रेसिस्टेंस जैसी प्रॉब्लम्स हो सकती हैं.
अनहेल्दी फैट्स: इन प्रोडक्ट्स में अक्सर ट्रांस फैट और सैचुरेटेड फैट का यूज होता है, जो हेल्थ के लिए बेहद हार्मफुल हैं. ये बैड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाते हैं और गुड कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं, जिससे हार्ट डिजीज और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.
प्रिजर्वेटिव्स और आर्टिफिशियल एडिटिव्स: डिब्बा बंद खाने को लॉन्ग टाइम तक फ्रेश रखने और कलर व टेस्ट बेहतर करने के लिए केमिकल प्रिजर्वेटिव्स, आर्टिफिशियल कलर्स और फ्लेवर मिलाए जाते हैं. ये केमिकल्स बॉडी में इनर इम्बैलेंस क्रिएट कर सकते हैं और एलर्जी , डाइजेस्टिव प्रॉब्लम्स और कुछ केसेज मामलों में कैंसर जैसी सीरियस डिजीज से भी जुड़े हो सकते हैं.
न्यूट्रिएंट्स की कमी: प्रोसेसिंग के दौरान डिब्बा बंद खाने में मौजूद कई जरूरी विटामिन्स, मिनरल्स और फाइबर कम हो जाते हैं या फिनिश हो जाते हैं. न्यूट्रिएंट्स की कमी से बॉडी में वीकनेस आती है, इम्यून सिस्टम कमजोर होता है और लॉन्ग टाइम में मालन्यूट्रिशन का खतरा बढ़ता है. वहीं, फाइबर की कमी से डाइजेस्टिव प्रॉब्लम्स जैसे कॉन्स्टिपेशन और ब्लोटिंग हो सकती हैं.
बिस्फेनॉल ए का रिस्क: कई डिब्बाबंद फूड प्रोडक्ट्स के कंटेनर की इनर लेयर पर बीपीण् नामक केमिकल का यूज होता है. स्टडीज से पता चला है कि बीपीए बॉडी में हार्मोनल इम्बैलेंस क्रिएट कर सकता है और कुछ हेल्थ प्रॉब्लम्स जैसे ओबेसिटी, डायबिटीज और रिप्रोडक्टिव प्रॉब्लम्स से जुड़ा हो सकता है.
अस्थमा और एलर्जी का रिस्क: कुछ रिसर्च बताती हैं कि डिब्बाबंद प्रोसेस्ड मीट में नाइट्राइट की क्वांटिटी ज्यादा होती है, जिससे ब्रीदिंग पाइप में स्वेलिंग हो सकती है और अस्थमा की प्रॉब्लम बढ़ सकती है.
डाइजेस्टिव प्रॉब्लम्स: डिब्बा बंद खाना हमारे डाइजेस्टिव सिस्टम पर ज्यादा प्रेशर डालता है, जिससे यह नॉर्मली वर्क करने में  असमर्थ हो सकता है. इससे पेट से रिलेटेड प्रॉब्लम्स जैसे इनडाइजेशन, गैस, और इर्रेगुलर बाउल मूवमेंट की प्रॉब्लम हो सकती है.
अर्ली एजिंग: कुछ रिसर्च बताती हैं कि अत्यधिक प्रोसेस्ड और डिब्बाबंद फूड का कंजम्पशन सेल्स और टिश्यूज को तेजी से बूढ़ा कर सकता है, जिससे बायोलॉजिकल एज या जैविक उम्र बढ़ जाती है.

ऐसे में क्या करें आप?

जितना हो सके फ्रेश और होममेड (घर का बना) खाना खाएं.
पैकेज्ड फूड के लेबल को केयरफुली पढ़ें और कम सोडियम, शुगर और अनहेल्दी फैट वाले प्रोडक्ट्स चूज करें.
फ्रूट्स, वेजिटेबल्स, पल्सेस और होल ग्रेन को अपनी डाइट का मेन पार्ट बनाएं.
अगर डिब्बा बंद खाना खाना ही पड़े, तो उसे मॉडरेशन या कम मात्रा में खाएं.
कुल मिलाकर, डिब्बा बंद खाना हमारी सुविधा के लिए तो अच्छा है, लेकिन हमारी हेल्थ के लिए यह साइलेंट किलर साबित हो सकता है. इसलिए, हमें अपनी डाइट के प्रति सचेत रहना चाहिए और नेचुरल व होल फूड्स  को प्रेफरेंस देनी चाहिए.

ये भी पढ़ें: महिलाओं के लिए खतरे की घंटी, हार्ट और लिवर में जहर घोल सकते हैं ये 5 फेमस सप्लीमेंट्स!
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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