सावन का आज पहला सोमवार है. इस दिन कई लोग घर या मंदिर में पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इसके प्रभाव से घर में खुशहाली आती है साथ ही धन, सुख, समृद्धि का आगमन होता है. सावन में पार्थिव शिवलिंग की पूजा के कुछ नियम हैं, इनका पालन न करने वाले पुण्य की जगह पाप के भागी बनते हैं.
किसने की सबसे पहला पार्थिव शिवलिंग पूजा ?
शिवपुराण के अनुसार पार्थिव शिवलिंग की पूजा प्राचीन काल से ही प्रचलित है. कलयुग की शुरुआत में पार्थिव शिवलिंग का पूजन कूष्माण्ड ऋषि के पुत्र मंडप ने प्रारम्भ किया था. ये भी माना जाता है कि भगवान राम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले रावण पर विजय प्राप्ति के लिए पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा की थी.
पार्थिव शिवलिंग बनाने के नियम
ये शिवलिंग नदी, तालाब या घर में स्वच्छ गमले की मिट्टी से बनाते हैं. इसके अलावा किसी मिट्टी का उपयोग न करें.
पिंड निर्माण से पहले मिट्टी को अच्छे पानी से धो लें.
मिट्टी, गाय का गोबर, गुड़ , मक्खन और भस्म मिलाकर पार्थिव शिवलिंग बनाएं.
इसके निर्णाण में इस बात का ध्यान रखें कि ये 12 अंगुल यानी अंगूठे से ऊंचा नहीं होना चाहिए.
इस मिट्टी का पिंड बनाते समय कई लोग उसमें घी भी मिलाते हैं जो शुभ माना गया है. शिवलिंग बनाते समय ‘ऊँ नमो हराय’ मंत्र का जाप करें.
ध्यान रहे कि पार्थिव शिवलिंग पर चढ़ाया भोग ग्रहण नहीं किया जाता है. ये भोग शिव के गणों का होता है. इसे आप गाय को खिला सकते हैं.
पार्थिव शिवलिंग पूजा विधि
सावन में पार्थिव शिवलिंग पूजा के लिए प्रदोष काल का समय शुभ होता है.
पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह रखकर शिवलिंग बनाना चाहिए.
शिवलिंग बनाने के बाद गणेश जी, विष्णु भगवान, नवग्रह और माता पार्वती आदि का आह्वान करना चाहिए
ऊं नम: शिवाय मंत्र जाप करते हुए शिवलिंग पर जल और पंचृामत अर्पित करें.
गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाएं. शिव चालीसा का पाठ करें
आरती और पुष्पांजलि के बाद भगवान से उनके स्थान पर जाने का निवेदन करना चाहिए.
इस प्रकार पूजा के बाद शिवलिंग का आदरपूर्वक जल में विसर्जित कर देना चाहिए.
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