Water Weapon Technology: आज दुनिया गंभीर जल संकट से जूझ रही है. ताजे पानी का प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि और बढ़ती मांग ने पानी की गुणवत्ता और उपलब्धता दोनों को खतरे में डाल दिया है. पिछले 40 वर्षों में, कृषि, उद्योग और जनसंख्या के लिए पानी की वैश्विक खपत हर साल लगभग 1% की दर से बढ़ रही है. इस दबाव का असर साफ़ दिखता है, दुनिया की 26% आबादी को आज भी स्वच्छ पीने के पानी तक पहुंच नहीं है और 46% लोग बुनियादी स्वच्छता सुविधाओं से वंचित हैं. जहां संघर्ष और युद्ध जारी हैं, वहां हालात और भी बदतर हैं.
युद्ध प्रभावी इलाकों में जल संकट
2015 के आंकड़ों के अनुसार, युद्ध-प्रभावित इलाकों में 38% लोगों को पीने के लिए सुरक्षित पानी नहीं मिल पाता और 61% लोग शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं. बच्चों पर इसका असर सबसे ज़्यादा पड़ता है, UNICEF की रिपोर्ट बताती है कि लंबे समय से युद्ध झेल रहे इलाकों में रहने वाले 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, युद्ध से कम बल्कि दस्त जैसी बीमारियों से तीन गुना ज़्यादा मौत का शिकार होते हैं. वहीं पांच साल से छोटे बच्चों की मृत्यु दर बीमारियों से 20 गुना ज़्यादा होती है, मुकाबले सीधे युद्ध से.
पानी पर बढ़ता संकट और उसके खतरनाक रूप
2023 के अंत में Pacific Institute द्वारा जारी की गई रिपोर्ट “Water Conflict Chronology” ने पानी से जुड़े संघर्षों की बढ़ती घटनाओं को उजागर किया. इसमें पानी को किसी संघर्ष का कारण, एक रणनीतिक हथियार या स्वयं एक “शिकार” के रूप में प्रस्तुत किया गया. यह चिंता इसलिए भी बढ़ती जा रही है क्योंकि जल संसाधनों पर नियंत्रण अब सिर्फ जीवन नहीं, राजनीति और युद्ध का भी केंद्र बन चुका है.
पानी को हथियार बनाने की पुरानी परंपरा
हालांकि पानी को युद्ध में हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की रणनीति नई नहीं है, 1942 में ब्रिटेन ने जर्मनी के रूह्र बांधों पर हमला किया था जिससे 1,300 नागरिक मारे गए लेकिन पिछले दो दशकों में इसकी घटनाएं बढ़ती गई हैं. Pacific Institute के मुताबिक, साल 2020 के बाद से अब तक पानी को हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने के कम से कम 28 मामले सामने आ चुके हैं जबकि 2000 से 2009 के बीच ऐसे 32 मामले दर्ज हुए थे.
पानी को हथियार बनाने के पीछे मंशा, भूमिका और भूगोल जैसे कई कारक होते हैं. विशेषज्ञ Marwa Daoudy ने इसे चार वर्गों में बांटा है राजनीतिक नियंत्रण, सैन्य रणनीति, सैन्य लक्ष्य और सहयोग की संभावना. इसका अर्थ है कि पानी का दुरुपयोग केवल युद्ध के दौरान ही नहीं, बल्कि सामान्य परिस्थितियों में भी राज्य और गैर-राज्य तत्वों द्वारा किया जा सकता है.
जलवायु परिवर्तन से जुड़ा तनाव इस स्थिति को और बदतर बना रहा है. पानी की पाइपलाइनों, बांधों और जल वितरण प्रणालियों को नुकसान पहुँचाना अब संघर्षों में सामान्य रणनीति बनती जा रही है, जिसके परिणाम लंबे समय तक समुदायों और देशों को भुगतने पड़ते हैं.
यूक्रेन
2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर किए गए हमले के बाद, Nova Kakhovka बांध सहित कई नागरिक जल संरचनाओं को निशाना बनाया गया. इस एक हमले के चलते 80 से अधिक कस्बों के करीब 3,600 लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा, और 10 लाख लोग पीने के पानी से वंचित हो गए. यह बांध दक्षिण यूक्रेन में कृषि के लिए ज़रूरी सिंचाई का मुख्य स्रोत था.
शोधकर्ता Marcus King बताते हैं कि रूस ने जानबूझकर जल संरचनाओं को नुकसान पहुंचाकर लोगों को आतंकित करने की रणनीति अपनाई. Mariupol जैसे शहरों में तो पानी की सप्लाई रोक देना एक जानबूझकर की गई सैन्य चाल थी. यह सिर्फ एक भौतिक हमला नहीं था बल्कि लोगों की ज़िंदगियों को बंधक बनाने की एक गहरी रणनीति थी. Erika Weinthal जैसे विशेषज्ञ मानते हैं कि यूक्रेन में पानी 2014 से ही निशाने पर है जब रूस ने क्रीमिया और पूर्वी यूक्रेन पर कब्जा किया था तब भी जल प्रणाली को गंभीर नुकसान पहुंचाया गया था.
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