सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या की रोकथाम को लेकर देशव्यापी दिशानिर्देश जारी किए हैं. इनका पालन सभी स्कूलों, कॉलेजों, विश्विद्यालयों, होस्टल और कोचिंग संस्थानों को करना होगा. जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा है कि जब तक सरकार अपनी तरफ से उपयुक्त नियम नहीं बना लेती, तब तक यह दिशानिर्देश जारी रहेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में 14 जुलाई 2023 को हुई छात्रा की मौत के मामले में लिया है. नीट (मेडिकल प्रवेश परीक्षा) की तैयारी कर रही छात्रा की मौत कोचिंग संस्थान की बालकनी से गिरने से हुई थी. उसके पिता ने पुलिस की जांच में कमियां गिनाते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. जजों ने स्वीकार किया कि पुलिस ने गलत तरीके से जांच की. कोर्ट ने सीबीआई से मामले की जांच के लिए कहा है.
कोर्ट ने 15 दिशानिर्देश किए जारी
इसके साथ ही कोर्ट ने पूरे देश के शिक्षण संस्थानों में लागू होने वाले 15 दिशानिर्देश जारी किए हैं :-
1. सभी शैक्षणिक संस्थान सरकार की तरफ से दिशानिर्देशों के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य नीति बनाएं. इस नीति की वार्षिक समीक्षा हो और इसे सभी के लिए सुलभ रखा जाए.
2. 100 से अधिक छात्रों वाले संस्थान अनिवार्य रूप से योग्य मनोवैज्ञानिक, मानसिक स्वास्थ्य प्रोफेशनल या काउंसिलर को नियुक्त करें, जो छात्रों की सहायता कर सके. कम छात्रों वाले संस्थान जरूरत के मुताबिक बाहरी प्रोफेशनल के पास छात्रों को भेजें.
3. छात्र और काउंसिल का अनुपात संतुलित रखा जाए. यह सुनिश्चित किया जाए कि छात्रों की संख्या के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य प्रोफेशनल संस्थान में हो. परीक्षा या दूसरे तनाव के मौकों पर छात्रों की सहायता के लिए मार्गदर्शक (mentor) नियुक्त किए जाएं.
4. बच्चों को एक साथ पढ़ने दें. उन्हें टॉपर या रिपीटर जैसे ग्रुप में न बाटें, क्योंकि इस तरह का वर्गीकरण बच्चों को बेवजह मानसिक दबाव में डालता है.
5. आपातकालीन स्थितियों के लिए लिखित प्रोटोकॉल बनाएं. ऐसी स्थिति में बच्चों को तत्काल मानसिक स्वास्थ्य प्रोफेशनल के पास भेजने की व्यवस्था हो. आत्महत्या की भावना से उबरने में सहायता करने वाला सुसाइड हेल्पलाइन नंबर शैक्षणिक संस्थान और होस्टल में स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया जाए.
6. शिक्षकों और कर्मचारियों को साल में 2 बार खराब मानसिक दशा की पहचान, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी प्राथमिक सहायता और खुद को चोट पहुंचा रहे बच्चे की मदद के लिए जरूरी कदम उठाने जैसी बातों का प्रशिक्षण दिया जाए.
7. कर्मचारियों को कमजोर आर्थिक/सामाजिक पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के प्रति संवेदनशील बनाया जाए. ऐसे छात्रों से सम्मानपूर्वक पेश आया जाए. व्यक्तिगत जीवन में किसी संकट का सामना कर रहे छात्रों से सहानुभूति भरा आचरण किया जाए.
8. बच्चों को उत्पीड़न से बचाने के लिए शिकायत की गोपनीय व्यवस्था बनाई जाए. उसमें आने वाली शिकायतों पर उचित कार्रवाई हो. छात्रों को परेशान करने, रैगिंग, यौन उत्पीड़न, धौंस जमाने या भेदभाव करने के प्रति सख्त रवैया अपनाया जाए. शिकायत करने वाले छात्र के साथ अगर कोई बदले की कार्रवाई करता है तो उसे बिल्कुल बर्दाश्त न किया जाए, बल्कि कठोरतम कदम उठाए जाए.
9. छात्रों के माता-पिता या अभिभावकों को मानसिक स्वास्थ्य के मसले पर नियमित रूप से जागरूक किया जाए. उन्हें समझाया जाए कि बच्चों पर मानसिक दबाव बनाना गलत है.
10. छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और उससे जुड़ी गतिविधियों पर शैक्षणिक संस्थान वार्षिक रिपोर्ट तैयार करे। इसे राज्य शिक्षा विभाग, यूजीसी, AICTE, सीबीएसई जैसी नियामक संस्थाओं को भेजा जाए
11. खेल और कला जैसी पढ़ाई से परे की गतिविधियों (extracurriculor activities) को बढ़ावा दिया जाए. बच्चों से पढ़ाई का दबाव कम किया जाए.
12. बच्चे तनाव और दबाव से मुक्त होकर सही करियर चुन सकें, इसके लिए उन्हें करियर काउंसिलिंग उपलब्ध करवाई जाए.
13. आवासीय शिक्षण संस्थान यह सुनिश्चित करे कि उनका परिसर उत्पीड़न, मारपीट, धमकी, ड्रग्स या दूसरी बुराइयों से मुक्त हो.
14. आवासीय संस्थानों में सुरक्षित पंखे और दूसरे उपकरण लगाए जाएं। बच्चों को छत और दूसरी असुरक्षित जगहों में जाने से रोका जाए। इससे बच्चों के अचानक आवेग में आ कर खुद को नुकसान पहुंचाने से बचाव हो सकेगा
15. कोटा, जयपुर, हैदराबाद, दिल्ली समेत कई शहरों में बड़ी संख्या में बाहर से छात्र पढ़ाई या परीक्षा की तैयारी के लिए आते हैं. वहां शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन विशेष दायित्व निभाए. छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की निगरानी की जाए. उन्हें आत्महत्या जैसी स्थिति से बचाने के लिए विशेष सजगता बरती जाए.
2 महीने के भीतर नियम बनाकर करें लागू
इसके साथ ही कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वह 2 महीने के भीतर निजी कोचिंग केंद्रों के रजिस्ट्रेशन और उनमें छात्रों की सुरक्षा से जुड़े विषयों और मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल की व्यवस्था के नियम बनाकर लागू करें.
जिले के डीएम यह सुनिश्चित करें कि कोर्ट की तरफ से जारी निर्देशों का पालन हो. इसके लिए वह निगरानी समितियों का गठन करें. केंद्र सरकार 90 दिनों के भीतर हलफनामा दाखिल कर बताए कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पालन के लिए क्या कदम उठाए गए हैं.
नेशनल टास्क फोर्स की सहायता
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की ही एक अन्य बेंच छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े विषयों और आत्महत्या की रोकथाम पर अध्ययन के लिए नेशनल टास्क फोर्स बना चुकी है. फैसले में कहा गया है कि यह दूसरी बेंच के में चल रही सुनवाई के विरुद्ध नहीं है. इस फैसले को नेशनल टास्क फोर्स की सहायता समझा जाए.
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