भारत आज 26वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है. इसी दिन भारत ने पाकिस्तान पर कारगिल के युद्ध में जीत हासिल की थी. इस युद्ध से जुड़ी एक घटना है, जो काफी दिलचस्प है. जब भारतीय वायुसेना के जगुआर लड़ाकू विमान के पायलट को कारगिल के प्वाइंट 4388 पर बम गिराने का आदेश मिला था. यह मिशन भारत की रणनीतिक जीत के लिए बेहद अहम था, लेकिन उस दिन एक तकनीकी प्रणाली कॉकपिट लेज़र डेजिग्नेशन सिस्टम (CLDS) ने पूरे परिदृश्य को बदल दिया.
इस सिस्टम के जरिए पायलट ने टारगेट एरिया को लॉक किया, लेकिन गलती से टारगेट पाकिस्तान के गुलतेरी में स्थित एक सैन्य अड्डा बन गया. संयोग से उसी वक्त पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनके सेना प्रमुख उस जगह पर मौजूद थे. पायलट बम गिराने को तैयार था, लेकिन अंतिम समय पर उच्च अधिकारियों की सतर्कता ने उसे रोक लिया.
CLDS जंग के मैदान में सटीक टारगेट के लिए बेहद उपयोगी टेक्नोलॉजी है. इस सिस्टम से पहले एक जगुआर इलाके को चिन्हित करता है, फिर दूसरा विमान उसी टारगेट पर अटैक करता है. 24 जून की घटना में पहले विमान ने टारगेटिंग में गलती की जिससे मिशन की दिशा बदल गई. वायुसेना के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी एयर मार्शल ए.के. सिंह, जो उस समय अभियान में शामिल थे, उन्होंने बताया कि पायलट को फायरिंग से मना किया. यह निर्णय दोनों देशों के बीच संभावित परमाणु युद्ध को टालने वाला साबित हुआ.
पाकिस्तान और इंटरनेशनल मीडिया का क्या था रिएक्शन?
25 जून को पाकिस्तानी मीडिया में खबर छपी कि नवाज शरीफ गुलतेरी में सेना को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने नियंत्रण रेखा पर युद्ध जैसी स्थिति समाप्त करने के लिए भारत से बातचीत की अपील की थी. यह खबर भारत में खलबली मचा सकती थी लेकिन भारत सरकार और वायुसेना ने संयम बनाए रखा. इस घटना की सार्वजनिक पुष्टि नहीं हुई, लेकिन इससे स्पष्ट था कि कारगिल युद्ध सिर्फ गोलियों की लड़ाई नहीं थी, यह राजनीतिक, रणनीतिक और परमाणु संतुलन का संग्राम भी था.
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